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Real Story: तालिबान से बचने के लिए 10 साल पुरुष बनकर छिपती रही ये अफगानी महिला, जानिए कौन है नादिया गुलाम?
तकरीबन 20 साल बाद तालिबान की वापसी से न सिर्फ अफगानिस्तान में बल्कि पूरे दुनियाभर में डर और चिंता का माहौल है। जिन लोगों ने साल 1996 से 2001 के तालिबान के दौर को देखा है, उनके दिलों में दहशत बैठी हुई है। पूरी दुनिया की नजरें फिलहाल अफगानिस्तान पर टिकी हुई हैं। कई लोगों को डर है कि फिर से अफगानिस्तान में कत्ले आम का दौर शुरु हो जाएगा और महिलाओं को अपने अधिकारों से बेदखल कर दिया जाएगा। इस डरावने दौर के बीच आज आपको एक ऐसी अफगानी मूल की महिला के बारे में बताने जा रहे है जिसने तालिबानी सत्ता में करीब 10 साल तक न सिर्फ पुरुष बनकर सरवाइव किया बल्कि बहुत नजदीक से तालिबानी हुकूमत की महिलाओं के लिए क्रूरता और जुल्म का माहौल देखा। हम बात कर रहे हैं यहां अफगानी महिला नादिरा गुलाम की, जिनकी आत्मकथा " द सीक्रेट ऑफ माई टर्बन" में अपने इस सरवाइवल की काहानी शेयर की है।
आइए जानते है कौन है नादिया गुलाम और अब वो कहां और किस हालात में हैं-
क्यों और कैसे बनना पड़ा पुरुष
1985 में काबुल में पैदा हुई, नादिया गुलाम 8 साल की थी जब एक बम के धमाके ने उनके घर को तहस नहस कर दिया, इस धमाके में उनका भाई को मर गया, इसमें माता-पिता के आजीविका का साधन खत्म हो चुका था और साथ ही पिता तनाव से घिर गए थे और मां तालिबान के कानून के वजह से काम पर नहीं जा सकती थी। दो साल तक नादिया का इलाज अलग-अलग अस्पतालों में हुआ। इस धमाके में उनका चेहरा बुरी तरह झुलस गया था। तालिबानी हुकूमत में महिलाओं को काम करने की मनाही थी। इसलिए अपने परिवार को चलाने के लिए नादिरा ने 11 साल की उम्र में अपने भाई की पहचान लेने का फैसला किया और फिर वो 10 साल तक एक पुरुष बनकर जीने लगी। इसके बाद उन्होंने अगले 10 साल तक हर वो छोटा-मोटे जैसे कुएं खोदने से लेकिन खेती तक के शारीरिक श्रम किए, जिससे वो अपने परिवार का खर्चा उठा सकें। इस दौरान कई दफे वो तालिबानियों के हाथ लगने से भी बाल-बाल बचीं।
तालिबान से पहले की जिंदगी
एक इंटरव्यू में सवाल पूछे जानें पर कि अफगानिस्तान में युद्ध की शुरुआत और तालिबानी शासन की स्थापना से पहले उनका जीवन कैसे था और क्या हो गया, इस बारे में नादिया ने बताया कि , "युद्ध से पहले, मैं दुनिया के किसी भी बच्चे की तरह एक खुशहाल सामान्य जीवन व्यतीत कर रही थी। मेरे पिता स्वास्थ्य मंत्रालय में कार्यरत थे और मेरी मां एक गृहिणी थीं। मैं स्कूल जाती थी और मेरे आसपास की महिलाएं काफी स्वतंत्र थी।" लेकिन तालिबान का शासन स्थापित होने के बाद नादिया को परिस्थितियों के कारण, बुनियादी और औपचारिक शिक्षा से वंचित रहना पड़ा।
शिक्षा को बनाया हथियार
16 साल की उम्र तक नादिया एक अनपढ़ महिला थी, लेकिन जैसे जैसे तालिबान का दबदबा कम होने लगा, वैसे-वैसे नादिया की पढ़ने की हसरतें फिर से जिंदा होने लगी। हालांकि अब ये उनके लिए बहुत संर्घष का काम था। लेकिन नादिया समझ चुकी थी कि सिर्फ शिक्षा ही एकमात्र ऐसा हथियार है जिसके सहारे वो अपना जीवन बदल सकती है। तालिबान का शासन खत्म होते ही नादिया ने अलग-अलग स्कूलों में जाकर बहुत ही मुश्किल से अपनी हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद एक एनजीओ की मदद से नादिया ने इंग्लिश सीखी। नादिया इलाज के लिए 2006 में रिफ्यूजी बनकर स्पेन पहुंची जहां उन्होंने इस अवसर को अपने अधूरे सपने पूरा करने में लगा दिया। स्पेन पहुंचकर उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की।
अब कहां है नादिया
दो दशक के बाद, नादिया गुलाम अब स्पेन के बार्सिलोना में रहती हैं, जहां उन्होंने अफगानिस्तान में अपने अनुभवों के बारे पहली पुस्तक "द सीक्रेट ऑफ़ माई टर्बन" शीर्षक से लिखी है। फिलहाल वो एक एनजीओ के साथ मिलकर काम कर रही है। इसके अलावा वो अफगान के लाजवाब व्यंजनों के बारे में ब्लॉग लिखकर अपनी संस्कृति से जुड़ी हुई है।