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कारगिल विजय दिवस: जिसे मुर्दा समझा था, आज वो मैराथन में दौड़ता है.. मिलिए कारगिल के रियल हीरो से

कारगिल युद्ध के नायक रहे मेजर डीपी सिंह ने गंभीर रूप से जख्मी होने और दाहिना पैर गंवाने के बावजूद जिंदगी से हार नहीं मानी। आज वे भारत के अग्रणी ब्लेड रनर हैं।

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कारगिल जंग के 18 साल हो गए, आज ही के दिन 1999 को ही भारतीय सेना ने कारगिल में तिरंगा फहराया था। इस दिन को कारगिल में शहीद हुए हजारों बहादुरों के याद में मनाया जाता है। इस मौके पर आज हम आपको कारगिल के ऐसे रियल लाइफ हीरो से मिला रहे है, जिन्‍होंने न सिर्फ जंग के दौरान सीमा पर दुश्‍मनों को खदेड़ा बल्कि माैत की जंग में मौत को हराकर एक रियल लाइफ हीरो बनकर उभरे, इनका नाम है मेजर देवेंद्र पाल सिंह।

उस समय 26 साल की उम्र में इस योद्धा को कारगिल युद्ध के दौरान डॉक्‍टर ने मृत घोषित कर दिया गया था। लेकिन इन्‍होंने जिंदगी की डोर थामे रखी। गंभीर रूप से जख्मी होने और दाहिना पैर गंवाने के बावजूद जिंदगी से हार नहीं मानी। आज वे भारत के अग्रणी ब्लेड रनर (कृत्रिम पैरों की मदद से दौड़ने वाले धावक) हैं।

नहीं मानी हार

नहीं मानी हार

मेजर सिंह का कहना है कि बचपन से अब तक उन्हें जब-जब तिरस्कार का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके हौसले और मुश्किलों से हार न मानने का जज्बा मजबूत होता चला गया।

मेजर सिंह ने कहा कि कई बार ऐसे मौके आए, जब दौड़ते वक्त पीड़ा हुई। शरीर में इतने जख्म थे कि दौड़ते से उनसे अकसर खून रिसने लगता था लेकिन मैंने हार नहीं मानी और पहले केवल चला, फिर तेज चला और फिर दौड़ने लगा।

सरकार से ब्लेड प्रोस्थेसिस की उम्‍मीद

सरकार से ब्लेड प्रोस्थेसिस की उम्‍मीद

लगातार तीन बार मैराथन दौड़ चुके मेजर सिंह ने कहा कि उन्हें सेना ने कृत्रिम पैर दिलाए, जिन्हें हम ‘ब्लेड प्रोस्थेसिस' कहते हैं। इस कृत्रिम पैर का निर्माण भारत में नहीं होता और ये पश्चिमी देशों से मंगाने पड़ते हैं। ऐसे एक पैर की कीमत ऐसे एक पैर की कीमत साढ़े 4 लाख रुपए है।

उन्होंने कहा कि इन पैरों की इतनी अधिक कीमत देखते हुए सरकार को इस तरह की प्रौद्योगिकी और डिजाइन वाले पैर भारत में बनाने पर गौर करना चाहिए। इस संबंध में उन्होंने सरकार का दरवाजा भी खटखटाया है।

दर्ज कराएं रिकॉर्ड

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दो बार लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज करा चुके मेजर सिंह को विकलांग, शारीरिक रूप से अक्षम या अशक्त कहे जाने पर सख्त आपत्ति है। वे खुद को और अपने जैसे अन्य लोगों को ‘चैलेन्जर' (चुनौती देने वाला ) कहलाना पसंद करते हैं।

दि चैलेंजिंग वंस

दि चैलेंजिंग वंस

मेजर सिंह ऐसे लोगों के लिए एक संस्था चला रहे हैं- ‘दि चैलेंजिंग वंस' और किसी वजह से पैर गंवा देने वाले लोगों को कृत्रिम अंगों के जरिए धावक बनने की प्रेरणा दे रहे हैं। वे जीवन की कठिन से कठिन परिस्थिति से जूझने को तैयार हैं और उसे चुनौती के रूप में लेते हैं।

English summary

Vijay Divas Special : This Kargil Hero Defied Death and Amputation to Run Marathons & Make His Country Proud

DP Singh was pronounced dead when he was brought to the hospital after he came under heavy fire during Kargil war. A year later, he started a new life as India's blade runner.
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