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शहीदी दिवस 23 मार्च 1931: वो दिन जब युवा क्रांतिकारियों की फांसी पर रोया था पूरा देश
भारत के इतिहास में 23 मार्च, 1931 का दिन कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। इस दिन भी सूरज अपने नियत समय पर उदय हुआ मगर देश के लाडलों की जिंदगी लेकर अस्त हुआ।
"आदमी को मारा जा सकता है उसके विचार को नहीं। बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है।" बम फेंकने के बाद भगतसिंह द्वारा फेंके गए पर्चों में यह लिखा था। भगत सिंह के ये विचार उनके नाम के साथ ही अमर हो गए। 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेम्बली में फेंके एक बम की गूंज ब्रिटिश हुकुमत के कानों में जोरदार तरीके से पहुंची।
ब्रिटिश सरकार ने सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु पर मुकदमे का नाटक रचा। 23 मार्च, 1931 को उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। देशभर में रोष फैल जाने के डर से जेल के नियमों को तोड़कर शाम को साढ़े सात बजे इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया गया।
अपने अल्प जीवनकाल में ही इन नौजवानों ने न जाने देश के कितने नागरिकों के मन में आजादी की लौ जला दी। आज के समय में भी देश के हर व्यक्ति को भगत सिंह के ये क्रांतिकारी विचार जरुर जानने चाहिए।

1.
"मेरा धर्म देश की सेवा करना है।"
भगत सिंह

2.
"राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।"
भगत सिंह

3.
"किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।"
भगत सिंह

4.
"क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।"
भगत सिंह

5.
"निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।"
भगत सिंह

6.
"मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।"
भगत सिंह

7.
"मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ। पर मैं ज़रुरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ, और वही सच्चा बलिदान है।"
भगत सिंह

8.
"इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है , जैसाकि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे।"
भगत सिंह

9.
"...व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।"
भगत सिंह

10.
"जिंदा रहने की ख्वाहिश कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए । मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है । मैं कैद होकर या पाबंद होकर जिंदा रहना नहीं चाहता।"
भगत सिंह

11.
"मुझे दंड सुना दिया गया है और फांसी का आदेश हुआ है । इन कोठरियों में मेरे अतिरिक्त फांसी की प्रतीक्षा करने वाले बहुत -से अपराधी हैं । ये यही प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी तरह फांसी से बच जाएं, परंतु उनके बीच शायद मैं ही एक ऐसा आदमी हूं जो बड़ी बेताबी से उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब मुझे अपने आदर्श के लिए फांसी के फंदे पर धूलने का सौभाग्य प्राप्त होगा । मैं खुशी के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़कर दुनिया को दिखा दूंगा कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए कितनी वीरता से बलिदान दे सकते हैं।"
-भगत सिंह (बटुकेश्वर दत्त को लिखे गए पत्र का हिस्सा)"