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बच्चों में बढ़ते गुस्से को कम करने से पहले जान लें इसकी असली वजह
कोरोना महामारी ने हम सभी की लाइफ को 360 डिग्री बदल दिया है। हम सभी एक न्यू नार्मल में जी रहे हैं और वास्तव में न्यू नार्मल के साथ एडजस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे इन न्यू नार्मल से बच्चे भी अछूते नहीं है। कोरोना संक्रमण के कारण दुनिया भर में सभी स्कूल बंद हैं, अनुमान है कि 1.2 बिलियन से अधिक बच्चे इन दिनों स्कूल जाकर क्लास अटेंड नहीं कर रहे हैं। नतीजतन, ई-लर्निंग अब पढ़ाई का एकमात्र स्त्रोत बनकर उभरा है। ऐसे में बच्चे ही नहीं, बल्कि शिक्षक भी पूरी तरह से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर निर्भर हैं। लेकिन बच्चों के लिए इस न्यू प्लेटफार्म के साथ पढ़ाई करना उतना भी आसान नहीं है। बहुत से बच्चों के लिए यह किसी पहाड़ पर चढ़ाई करने जैसा है। ऑनलाइन क्लासेस में बच्चों को अधिकतर कुछ समझ नहीं आता और ऐसे में वह पिछड़ते ही चले जाते हैं। जिसका असर उनके स्वभाव पर भी नजर आता है। कुछ बच्चों में कोरोना महामारी के दौरान अधिक गुस्सा करना व चिड़चिड़ेपन की शिकायत काफी बढ़ी हैं। तो चलिए आज हम इस पर विस्तावपूर्वक नजर डालते हैं-
स्क्रीन टाइम का बढ़ना
इन दिनों सिर्फ ऑनलाइन क्लासेस के अलावा बच्चे अपने अकेलेपन, उदासी व चिंताओं को दूर करने के लिए इंटरनेट, सोशल मीडिया, वीडियो गेम खेलने, टेलीविजन, संगीत आदि में अधिक समय व्यतीत करते हैं। ऐसे में जब माता-पिता उनके स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं, तो इसे वह अपने पर्सनल स्पेस का खत्म होना समझने लगते हैं। जिससे उनका गुस्सा बढ़ने लगता है। वैसे भी लंबे समय से घर में रहते हुए बच्चों में चिड़चिड़ेपन की भावना बढ़ने लगी है और ऐसे में अगर फोन या लैपटॉप उनसे छीन लिया जाए तो उनका एक बेहद ही उग्र रूप
देखने को मिलता है।
क्या करें- बच्चे को सीधा फोन, टीवी या लैपटॉप इस्तेमाल करने से मना ना करें, बल्कि आप उन्हें इसके कुछ बेहतरीन विकल्प भी दें। मसलन जो गेम वो फोन में खेलते हैं, आप उन्हें वह रियल में लाकर दें। इससे उन्हें काफी अच्छा लगेगा और समय भी कब बीत जाएगा, इसका पता भी नहीं चलेगा।
ऑनलाइन क्लासेस कर रही हैं प्रभावित
भले ही ऑनलाइन क्लासेस के लिए बच्चों को जल्दी उठकर काफी सारी तैयारी ना करनी हो, लेकिन यही क्लॉसेस अब उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगी है। सबसे पहले तो कुछ बच्चों को ऑनलाइन क्लॉस में कुछ भी समझ नहीं आता, जिससे ना केवल उनकी पढ़ाई के प्रति अरूचि पैदा होती है, बल्कि इससे उनके मन में अपने टीचर्स के प्रति भी रोष पैदा होता है। यह सच है कि ऑनलाइन क्लॉस में टीचर्स की भी अपनी लिमिटेशन हैं, लेकिन बच्चे का बालमन इसे समझने के लिए उतना परिपक्व नहीं होता। वहीं दूसरी ओर, ऑनलाइन क्लॉस में वह अपने दोस्तों के साथ बैठना, उनके साथ समय बिताना व मस्ती करना भी मिस करते हैं, जिससे भी उनके मन में नकारात्मकता बढ़ती है।
क्या करें- आपको यह समझना होगा कि बच्चे हमेशा कुछ नया सीखना चाहते हैं, लेकिन वे यह महसूस नहीं करना चाहते कि यह उन पर थोपा गया है। इसलिए, हर समय उन्हें निर्देश देने की बजाय इंटरनेट और सीखने को संतुलित करने के लिए एक शेड्यूल बनाने में उनकी मदद करें। आप उनकी नई चीजों को सीखने में मदद भी कर सकते हैं। वहीं, इंटरनेट पर निर्भरता से बचने के लिए पर्याप्त ब्रेक, नींद, पोषण और व्यायाम को प्राथमिकता दें।
हरदम सलाह
हमने अक्सर देखा है कि पैरेंट्स बच्चों को हरदम कोई ना कोई सीख देते रहते हैं लेकिन लगातार ऐसा करने से उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होने लगता है और फिर इसका विपरीत प्रभाव उनके व्यवहार व बातचीत के तरीकों पर भी पड़ता है। इतना ही नहीं, कुछ बच्चे तो इस कदर प्रभावित होते हैं कि वह हर बात पर या तो रोने लगते हैं या फिर चिल्लाने लगते हैं। ऐसे में बच्चों में बदलाव को गंभीरता से लें।
क्या करें- आपको इस बात का ख्याल रखना होगा कि बच्चे हमारी सलाह से ज्यादा हमारे कार्यों से सीखते हैं। इसलिए, बच्चों को कुछ भी कहने से पहले आप खुद पर उसे लागू करें। वहीं इन दिनों स्कूलों में भले ही रेग्युलर क्लासेस शुरू ना हुई हों, लेकिन फिर भी स्कूल के दरवाजे माता-पिता, बच्चों, शिक्षकों के लिए खुल चुके हैं। ऐसे में बच्चों की मदद के लिए स्कूल की काउंसलिंग टीम की मदद लें। साथ ही, हमें अपने शब्दों और कार्यों के प्रति भी सावधान रहना होगा जो बच्चों में महामारी के कारण होने वाले घाव से बड़ा घाव छोड़ सकते हैं।