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गर्भावस्था में ना लें टेंशन, शिशु के लिए हो सकता है खतरनाक
दुनियाभर में यही मान्यता है कि गर्भावस्था में महिलाओं को तनाव नहीं लेना चाहिए। इस दौरान गर्भवती महिलाओं को ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है और उन्हें तनाव से बचना चाहिए। शारीरिक और अन्य सभी प्रारूपों से गर्भवती महिलाओं को देखभाल की ज़रूरत होती है ताकि उनके शरीर पर कोई दबाव ना पड़े।
गर्भावस्था में किसी भी तरह का तनाव गर्भ में पल रहे शिशु को प्रभावित करता है। मां के तनाव का भ्रूण पर पड़ रहे असर को जानने से पहले आपको ये समझ लेना चाहिए कि इस तनाव का कारण क्या है। कभी कभी प्रेगनेंसी की वजह से ही कई परेशानियां जैसे कि जी मितली होना, वज़न बढ़ना आदि महिलाओं में तनाव का कारण बनते हैं।
कभी गर्भावस्था के दौरान परिवार में किसी की मौत हो जाना या आर्थिक परेशानियों के चलते तनाव रहता है। इसके अलावा डिप्रेशन, रंगभेद या अनचाहे गर्भ की वजह से भी महिलाओं में तनाव पैदा होता है।
तनाव को लेकर आपको सबसे पहले इसके कारण का पता लगाना चाहिए। कारण का पता चल जाए तो डॉक्टर, पार्टनर, दोस्त और परिवार मिलकर इसका हल निकाल सकते हैं।
जितना जल्दी आप इसका हल निकाल लेंगे आपके होने वाले बच्चे के लिए उतना ही ज़्यादा अच्छा होगा।
गर्भ में शिशु पर तनाव का क्या असर पड़ता है:
फेटल हार्ट रेट बढ़ जाना
ये एक वैज्ञानिक विवरण है। जब कोई स्ट्रेस लेता है तो उसके शरीर में कई तरह के स्ट्रेस हार्मोंस स्रावित हो जाते हैं। ये हार्मोंस तब भी बनते हैं जब आपको कोई खतरा होता है। इस तरह की परिस्थिति से बचने के लिए मांसपेशियों को मज़बूत बनाना बहुत ज़रूरी है। इन हार्मोंस के बढ़ने पर दिल की धड़कन बढ़ जाती है।
गर्भवती महिलाओं के लिए ये बिल्कुल भी सही नहीं होता है। चूंकि, शिशु आपके गर्भ में पल रहा है इसलिए उसे आपसे ही सारा पोषण मिल रहा है। आपके शरीर में किसी भी नकारात्मक बदलाव का मतलब है शिशु की जान को खतरा होना। इसलिए अपने शिशु की सलामती और सुरक्षा के लिए आपको स्ट्रेस से दूर रहना चाहिए।
इंफ्लामेंट्री प्रतिक्रिया
अगर कोई गर्भवती महिला लंबे समय तक तनाव में रहती है तो उसके शिशु को इस तरह की समस्या आ सकती है। आपको ये बात समझनी चाहिए कि शिशु आपके गर्भ में पल रहा है और उसकी सभी चेतनांए विकसित हो रही हैं। ऐसे में आपको अपने स्ट्रेस को दूर करने पर काम करना चाहिए। अगर आप बहुत ज़्यादा स्ट्रेस लेंगी तो आपके शरीर का स्ट्रेस मैनेजमेंट सिस्टम ठीक तरह से काम नहीं कर पाएगा।
इसका असर आपके शिशु पर पड़ेगा। कई मामलों में देखा गया है कि ऐसी परिस्थिति में भ्रूण अतिसंवेदनशील या इंफ्लामेट्री प्रतिक्रिया भेजता है। ये इंफ्लामेट्री प्रतिक्रिया भ्रूण की संपूर्ण सेहत पर सीधा असर डालती है। नौ महीने तक शिशु को इस सबसे गुज़रना पड़ता है और प्रसव पर भी इसका गलत प्रभाव पड़ता है।
बच्चे का कम वज़न
अगर आप गर्भावस्था के दौरान ज़्यादा स्ट्रेस लेती हैं तो इससे आपको प्रसव के दौरान ज़्यादा मुश्किलें सहनी पड़ती हैं। अत्यधिक तनाव के कारण भ्रूण, मां के शरीर से आवश्यक पोषण नहीं सोख पाता है। परिणामस्वरूप, शिशु का आकार सामान्य से छोटा हो जाता है। इससे प्राकृतिक डिलीवरी होना असंभव हो जाता है और शिशु के जन्म में कई तरह की दिक्कतें आती हैं।
भ्रूण के मस्तिष्क का विकास
डॉक्टर ने साफ बताया है कि मां के तनाव का सीधा असर भ्रूण के मानसिक विकास पर पड़ता है। इसका बच्चे पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। कई बार आपको अपने बच्चे में जन्म के तुरंत बाद कोई प्रभाव दिखाई नहीं दे पाता है। कुछ दुर्लभ मामलों में शिशु के जन्म के कई सालों बाद भी किसी विकार का पता नहीं चल पाता है।
हालांकि, जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है उसके व्यवहार में बदलाव नज़र आने लगते हैं। यह अक्षमता से लेकर स्वभाव में परिवर्तन को रोकने से संबंधित हो सकता है। डॉक्टरों ने गर्भवती स्त्री और तनाव के बीच संबंध बताया है। इसकी वजह से ऐसे बच्चों में हाइपरटेंशन भी बढ़ सकता है और बच्चों को अपने आगे के जीवन में स्ट्रेस ज़्यादा रहता है।
गर्भपात का खतरा
डॉक्टरों का कहना है कि किसी भी तरह का स्ट्रेस गर्भ के लिए केमिकल खतरे पैदा करता है। स्ट्रेस के दौरान कोर्टिकोट्रोपिन नामक हार्मोन रिलीज़ होता है। रक्त वाहिकाओं में इस हार्मोन के ज़्यादा बनने पर गर्भाश्य का संकुचन होने लगता है। अगर ये संकुचन गलत समय पर हो तो गर्भवती स्त्री का गर्भपात तक हो सकता है।
अगर आप बहुत ज़्यादा स्ट्रेस लेती हैं तो आपको मालूम होना चाहिए कि इतने ज़्यादा तनाव की वजह से आपके गर्भ में पल रहे शिशु की जान को खतरा हो सकता है। बाहरी पर्यावरण चाहे जैसा भी हो, अगर आप अपने बच्चे को स्वस्थ रखना चाहती हैं तो सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि आप मानसिक और शारीरिक रूप से सेहतमंद रहें और किसी भी तरह का तनाव ना लें।