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गर्भ में पल रहा शिशु कर सकता है ये सब महसूस
जिस दिन से एक स्त्री को यह पता चलता है कि वह माँ बनने वाली है उस दिन से उसे अपने गर्भ में पल रहे बच्चे से भावनात्मक लगाव हो जाता है। यह बात कि उसके अंदर एक नया जीवन पल रहा है उसे उत्साहित कर देता है। जीवन कब से शुरू होता है इस बात पर अगर हम चर्चा करें तो सभी के अलग अलग मत होते है। कोई कहता है कि माँ के गर्भ में ही जीवन शुरू हो जाता है तो कोई कहता है कि जन्म के बाद जीवन शुरू होता है।
जो भी हो पर यह एक सच है कि बच्चा अपनी माँ के गर्भ से ही सब कुछ महसूस कर सकता है और उसपर अपनी प्रतिक्रिया भी दे सकता है। हालाँकि यह गर्भधारण के तुरंत बाद नहीं होता लेकिन एक समय के बाद गर्भवती महिला अपने बच्चे की हरकतों को महसूस कर पाती है। कहतें है माँ बनने वाली महिलाओं को हमेशा खुश रहना चाहिए और उनके आस पास का माहौल भी चिंता और तनाव से दूर खुशनुमा होना चाहिए क्योंकि परेशान और दुखी रहने वाली गर्भवती महिलाओं के होने वाले बच्चों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। माना जाता है कि माँ के सांस लेने से और उसके दिल की धड़कन की निरंतर लय से बच्चे को एहसास होता है कि सब कुछ ठीक है। सांस लेने में और दिल की धड़कन में ज़रा सा भी परिवर्तन होने पर बच्चे को महसूस हो जाता है कि कोई दिक्कत है और उसका बुरा असर बच्चे पर भी पड़ता है।
सिर्फ यही नहीं माँ जो कुछ भी खाती है, पीती है यह वह जो कुछ भी सोचती है उन सब का प्रभाव होने वाले बच्चे पर पड़ता है।
बच्चे अपनी माँ के गर्भ में क्या क्या महसूस करते है आज हम इस लेख में इसी विषय पर ही चर्चा करेंगे जिसमे हम बच्चे में होने वाले सकारात्मक और नकारात्मक परिवर्तन दोनों पर नज़र डालेंगे।
1.आस पास के लोगों की प्यार की भावनाएं
2.जलन की भावना
3.बेहद खुशी की भावना
4.जब कोई परेशान करे
5.अपने आप में बहुत भरोसा
6.दुख की भावना
7.चिंतित होना
आस पास के लोगों की प्यार की भावनाएं
किसी का प्यार पाना सबसे खूबसूरत भावनाओं में से एक होता है। जब आपको कोई प्यार करने वाला होता है तो आप सभी चिंताओं से दूर खुद को सुकून में पाते है। ठीक इसी प्रकार आपका बच्चा भी आपके गर्भ में महसूस करता है। गर्भावस्था के दौरान यदि माँ खुश रहती है तो ऐसे में उसका ब्लड प्रेशर सामान्य रहता है जिसके कारण इस अवस्था में होने वाली कई परेशानियों से उसे छुटकारा मिल जाता है। साथ ही माँ एक स्वस्थ और तंदरुस्त बच्चे को जन्म देती है।
जलन की भावना
मनुष्य में जलन, ईर्ष्या और द्वेष जैसी भावनाएं आम बात है लेकिन गर्भवती महिलाओं को इस बात का ख़ास ध्यान रखना चाहिए कि गर्भावस्था में इस प्रकार के विचारों का नकारात्मक प्रभाव उनके होने वाले बच्चे पर भी पड़ता है। जलन जैसी भावना से तनाव वाले हार्मोन्स उत्पन्न होते है जिसका असर होने वाले बच्चे पर भी होता है।
इतना ही नहीं ऐसे में माँ को सोने और खाने पीने में भी दिक्क्तों का सामना करना पड़ता है जो बच्चे के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं होता ।
बेहद खुशी की भावना
जब भी हमारे साथ कुछ अच्छा होता है हम बेहद खुश हो जाते है यदि आप गर्भवती है तो याद रखिये अगर आप खुश है तो आपके गर्भ में पल रहा बच्चा भी बहुत प्रसन्न है। इससे आपका ब्लड प्रेशर और हृदत गति भी सामान्य रहती है और शरीर गर्भ में रक्त की आपूर्ति अधिक करता है जिसके कारण आपका बच्चा कई तरह की बीमारियों और इन्फेक्शन से भी दूर रहता है।
जब कोई परेशान करे
मनुष्य को क्रोध आना एक आम बात है इसमें नया कुछ भी नहीं। कभी किसी को ज़्यादा गुस्सा आता है तो कभी किसी को कम। कई बार ऐसी परिस्तिथि पैदा हो जाती है कि हम सामने वाले की गलती को माफ़ नहीं कर पाते लेकिन यह भी एक सत्य है कि यदि हम किसी के लिए भी अपने मन में बुरी भावनाएं रखेंगे तो इसमें हमारा ही नुकसान है क्योंकि बुरे का फल हमेशा बुरा ही होता है। ठीक इसी प्रकार इसका नकारात्मक प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है।
ऐसे में आपका बच्चा भी महसूस करता है कि उसके आस पास कुछ गलत हो रहा है इसलिए गर्भावस्था में बेहतर यही होता है कि आप क्रोध कम करें और अगर ऐसी परिस्तिथि उत्पन्न हो भी जाए तो सामने वाले को माफ़ करके बात वहीँ खत्म कर दें।
अपने आप में बहुत भरोसा
आत्मविश्वास से सिर्फ आपका मनोबल नहीं बढ़ता है बल्कि गर्भ में पल रहे आपके शिशु पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और वह बहुत मज़बूत बन जाता है। हालाँकि, गर्भावस्था में एक स्त्री को कई सारी परेशानियों से गुज़ारना पड़ता है जैसे उल्टी, जी मिचलाना, चक्कर आना आदि ऐसे में अच्छा महसूस करना कठिन होता है । फिर भी जहाँ तक हो सके आप कोशिश करें कि इस अवस्था में आप आत्मविश्वास से भरपूर रहे और खुश रहे। इससे केवल आपका बच्चा ही खुश नहीं रहेगा बल्कि आपकी त्वचा में खिली खिली और दमकती रहेगी।
दुख की भावना
जब किसी भरोसेमंद या किसी अपने से कोई धोखा मिलता है तो हमारा दिल टूट जाता है । यह सिर्फ शब्दों में ज़ाहिर नहीं किया जा सकता क्योंकि जब दिल टूटा है तो उसका दर्द पूरे शरीर का दर्द बन जाता है। इस दर्द का असर आपके स्वभाव में भी दिखने लगता है । आपके मूड में होने वाले बदलाव का प्रभाव आपके बच्चे पर भी पड़ता है । ऐसे में एक गर्भवती महिला के लिए ज़रूरी होता है कि वह अपने बच्चे के लिए अपनी सोच को सकारात्मक रखे और खुश रहे चाहे परिस्तिथि जो भी हो। याद रखिये ऐसे में आप अपनों के बीच ज़्यादातर समय गुज़ारे जो मुश्किल हालातों में भी हमेशा आपको सहारा दें यानी आपका समर्थन करें।
चिंतित होना
अक्सर हमने देखा है कि गर्भावस्था में महिलाओं को छोटी छोटी बातों पर चिंता होने लगती है ख़ास तौर पर उन्हें जो पहली बार माँ बनने वाली होती है। माँ बनना एक औरत के लिए बेहद ख़ास अनुभव होता है वह अपने जीवन के एक नए चरण में कदम रखने वाली होती है और उसके जीवन में कई तरह के परिवर्तन आने वाले होते है ।
अगर गर्भावस्था में एक औरत जरूरत से ज्यादा चिंता करने लगती है तो कोर्टिसोल अधिक मात्रा में उत्पन्न होने लगते है जिससे गर्भवती महिला को कई सारी शारीरिक और मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ता है जैसे डिप्रेशन, थकान, सिर दर्द उक्त रक्तचाप आदि। यदि आप को कोई भी चिंता हो रही है तो इस अवस्था में कोशिश करें कि आप चिंतामुक्त रहे क्योंकि यहाँ सवाल आपके बच्चे की सलामती का है। इसके लिए आप योग या लैवेंडर आयल से अरोमाथेरपी का सभी सहारा ले सकती है।