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प्रेगनेंसी के दौरान कैसे आयुर्वेद करता है मदद, डिलीवरी के बाद नहीं होगी दिक्कत
गर्भावस्था किसी भी महिला के लिए एक कठिन दौर होता है और इस दौरान उसे कई तरह के उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अपनी स्थिति को आरामदायक बनाने के लिए महिला कई उपाय अपनाती हैं। यूं तो गर्भावस्था के दौरान, पारिवारिक सदस्यों की देखभाल और डॉक्टरी सलाह आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होती है। लेकिन इसके अलावा, आयुर्वेद भी ना सिर्फ महिला की प्रेग्नेंसी पीरियड की समस्याओं को दूर करता है, बल्कि पोस्ट पार्टम के दौरान भी यह बेहद लाभकारी है। तो चलिए आज हम तो वुमन हेल्थ रिसर्च फाउंडेशन की फाउंडर और योगा गुरू नेहा वशिष्ट कार्की आपको बता रही हैं कि 5000 वर्षों से भी अधिक पुराना आयुर्वेदिक ज्ञान किस प्रकार गर्भावस्था में महिला के लिए लाभकारी साबित हो सकता है-
त्रिदोष को करता है दूर
आयुर्वेद के अनुसार, गर्भावस्था की तीन तिमाही तीन अलग-अलग दोषों से संबंधित है। जहां पहली तिमाही में महिला को वात दोष की समस्या अधिक होती है, वहीं दूसरी तिमाही में पित्त दोष की प्रधानता होती है और तीसरी तिमाही में कफ दोष की प्रधानता देखने को मिलती है।
पहली तिमाही को मिलता है आराम
पहली तिमाही में वात दोष की प्रधानता के कारण महिला को गैस, एसिडिटी, मार्निंग सिकनेस, एंग्जाइटी, डिप्रेशन और हाई बीपी आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
• इस दौरान में स्किन में ड्राईनेस, रूखापन व बाल झड़ने की समस्या आदि को कम करने के लिए अपने आहार में तेल की मात्रा थोड़ी सी बढ़ा दें।
• साथ ही आपको दूध व दूध से बने खाद्य पदार्थ जैसे घी, दही, पनीर व छाछ आदि का भी सेवन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि यह सभी वात दोष को कम करते हैं और शरीर में चुस्ती व स्फूर्ति बनाए रखते हैं।
• वहीं सब्जियों में आप छोले, राजमा, चने, उड़द की दाल आदि का सेवन बिल्कुल भी ना करें, यह वात दोष को बढ़ाते हैं। आप हरी पत्तेदार सब्जियों व मौसमी फलों का सेवन करें।
• आयुर्वेद के अनुसार खान-पान के अलावा व्यायाम करना भी उतना ही आवश्यक है और इसके लिए योग सबसे सर्वोत्तम है। आप कुछ आसनों के अभ्यास के साथ-साथ प्राणायाम का प्रमुखता से अभ्यास करें।
दूसरी तिमाही की समस्या को करे दूर
दूसरी तिमाही में पित्त दोष की प्रधानता होती है, जिसके कारण महिला को पेट संबंधी परेशानियों जैसे गैस, एसिडिटी, जी मचलाना, पेट में जलन होना, शरीर का तापमान बढ़ना, घबराहट होना, फुंसियां निकलना आदि समस्याएं हो सकती हैं। इतना ही नहीं, इस दौरान महिला को बैचेनी होना व बीपी का बढ़ना आदि परेशानी भी हो सकती है।
आयुर्वेद के अनुसार, पित्त को संतुलित करने के लिए महिला को ऐसे आहार जिनकी तासीर गर्म होती है, उनका बिल्कुल भी सेवन नहीं करना चाहिए।
ज्यादा तला-भुना, मिर्च मसालेदार, बाहर का खाना आदि से भी परहेज करना चाहिए। इसके स्थान पर महिला को खीरा, ककड़ी, रेशेदार फल, अनार, चुकंदर, गाजर का जूस, नारियल का पानी आदि पित्त दोष को कम करता है। इस दौरान महिला को शीतली प्राणायाम, शीतकारी प्राणायाम, अनुलोम-विलोम प्राणायाम, मर्जरी आसन, भद्रासन आदि योगाभ्यास अवश्य करने चाहिए।
तीसरी तिमाही में यूं रखें अपना ख्याल
दूसरी तिमाही में कफ दोष की प्रधानता होती है, जिसके कारण महिला की प्रेग्नेंसी एक स्थिर रूप में चलती है। इस दौरान गर्भस्थ शिशु का साइज भी बढ़ जाता है, जिससे महिला की स्फूर्ति कम हो जाती है और उसे चलने-फिरने और काम करने में बहुत अधिक मेहनत लगती है।
• इस दौरान जब बच्चे का साइज बढ़ने लगा है और ऐसे में जब बच्चा उपर की तरफ बढ़ता है, तो वह पीछे जाकर पेट को दबाता है, जिसका सारा असर महिला के डाइजेस्टिव सिस्टम पर पड़ता है और इसलिए महिला हैवी फूड को नहीं पचा पाती। इसलिए, इस दौरान महिला को उबले चावल, कम मिर्च मसाले वाला भोजन, आटे में चोकर मिलाकर खाना चाहिए।
• इस दौरान महिलाओं को कब्ज की शिकायत भी हो सकती है। इस स्थिति में आयुर्वेद में अलग-अलग तेल से अनीमा दिया जाता है। यह पूरी तरह से सेफ है। जब कब्ज की शिकायत बहुत अधिक बढ़ जाती है, उस समय तेल का अनीमा दिया जाता है।
• नियमित व्यायाम के लिए आप इस भद्रासन, मलासन, अनुलोम-विलोम, ओम् का उच्चारण और उज्जैयी प्राणायाम इस तिमाही में लाभकारी होते हैं।