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महिलाओं अब तो जागो

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Violence Against Woman
राष्‍ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने लखनऊ में एक प्रसिद्ध महाविद्यालय में कहा था कि गर्ल्‍स कॉलेजों में आत्‍म रक्षा के गुर सिखाने की जरूरत है। आत्‍मरक्षा इसलिए क्‍योंकि लड़की जब सड़क पर निकलती है, तो उसे पता नहीं होता कि शहरों की चकाचौंध में उसके साथ कब कहां छेड़-छाड़ हो जाये।

बात अगर गांव की करें तो लड़की सन्‍नाटे रास्‍तों पर जाने से डरती है लेकिन उस डर का क्‍या करें, जो घर के अंदर पनपता है और लड़की के साथ बड़ा होता है। उस डर का क्‍या करें जो उसके पैदा होते ही उसके दिमाग में बैठ जाता है और उम्र के आधे पड़ाव को पार करने तक रहता है। जी हां हम बात कर रहे हैं घरेलू हिंसा की, जिसकी अनगिनत वारदातें हमारे देश में होती हैं, लेकिन दर्ज महज सौ-पचास होती हैं, वो भी चरम पर पहुंचने के बाद।

घरेलू हिंसा की शुरुआत होती है तब जब बच्‍ची अपने मां-बाप से खिलौना मांगती है। हमारा समाज उनको बचपन से ही उन्‍हें कमजोर बनाता है। जब लड़का छोटा होता है, तो हम उसके हाथों में बैट-बाल या स्‍पोर्टस का सामान पकड़ाते हैं, जिससे वह शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनता है। लेकिन लड़की को खेलने के लिए गुड्डा-गुडि़या या चूल्‍हा बर्तन वाले खिलौने देते हैं, जिससे वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होती चली जाती है। इसके साथ ही भावनाओं में बहती जाती है।

अब लड़कियां जैसे-जैसे बड़ी होती हैं घर की पाबंदियां और समाज की यातनाएं उन पर हावी होती चली जाती हैं। लड़का अपना अंडरगार्मेंट कहीं भी फैलाए, कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अगर लड़की अपना अंर्तवस्‍त्र कही भी फैला दे तो, इसको अश्‍लील हरकत कहा जाता है। उनके पहनने, बोलने, चलने, लड़को से बात करने पर पाबंदीयों की झड़ी लगी रहती है।

आम तौर पर लोग घरेलू हिंसा को सिर्फ घर में मार-कुटाई ही समझते हैं, बल्कि सही मायने में लड़कियों के अरमानों को दबाना, घर के अंदर परिवार के सदस्‍यों द्वारा रोज-रोज मानसिक प्रताड़ना देना, गुस्‍से में उसके द्वारा परोसा हुआ खाना फेंक देना, उसके साथ गाली-गलौज करना, उसकी मंशा के विरुद्ध जाकर उसकी पढ़ाई रोक देना, आदि भी घरेलू हिंसा के ही रूप हैं। इसके अलावा यौन उत्‍पीड़न भी एक बड़ी हिंसा है, जिसके लिए आम तौर पर दूर के रिश्‍तेदार या पड़ोस के लोग जिम्‍मेदार होते हैं। ऐसे में जब लड़की विरोध करती है, तो बदनामी का हवाला देकर उसका मुंह बंद कर दिया जाता है। इस तरह की प्रताणना घर में ही नहीं, ससुराल जाने के बाद भी मिलती हैं। हालांकि उस समय दहेज प्रताड़ना भी उसमें जुड़ जाती है।

घरेलू हिंसा की बात करते वक्‍त हरियाणा, राजस्‍थान और पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश को अलग नहीं कर सकते जहां, ऑनर किलिंग की वारदातें सबसे ज्‍यादा होती हैं। ऑनर किलिंग का बीज असल में घरेलू हिंसा ही है। क्‍योंकि कोई भी मां-बाप, भाई, चाचा कभी भी अपनी बेटी या बहन को सीधे मौत के घाट नहीं उतार देता, उससे पहले पीड़िता को मार-कुटाई, गर्म सलाखों से जलाने से लेकर मानसिक प्रताड़नाएं झेलनी पड़ती हैं।

अगर हम यह सोचें कि नोएडा की आरुषि तलवार और नागपुर की अनीता की हत्‍या या फिर ऑनर किलिंग की शिकार लड़कियों की मौत के बाद उनके हत्‍यारों को पकड़ने की मांगों को लेकर जुलूस निकालने वाले महिला संगठन इसमें कुछ करेंगे, या इस हिंसा को रोकने की जिम्‍मेदारी पुलिस की है, तो हम गलत हैं। महिला संगठन सिर्फ जागरूकता पैदा कर सकते हैं, पुलिस सिर्फ उत्‍पीड़न करने वाले को सलाखों के पीछे डाल सकती है, कोर्ट सिर्फ न्‍याय दे सकता है, इनमें से कोई भी आपके घर के अंदर नहीं आ सकता। लिहाला जरूरत है सिर्फ सोच बदलने की।

English summary

Women's Domestic Violence | Women's Day | घरेलू हिंसा | महिला दिवस

Violence and abuse affect women from all kinds of backgrounds every day. Sometimes, women are attacked by strangers, but most often they are hurt by people who are close to them.Domestic violence can happen to any girl.
Story first published: Tuesday, February 28, 2012, 16:23 [IST]
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