Just In
- 1 hr ago Pickle in Diabetes : डायबिटीज में आम का अचार खा सकते है या नहीं? इस सवाल का जवाब जानें
- 1 hr ago गर्मी में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक हर किसी को पसंद आएगी मैंगो स्टफ्ड मलाई कुल्फी, यह रही रेसिपी
- 14 hrs ago Blackheads Removal Tips: नहीं निकल रहे हैं ठुड्डी पर धंसे हुए ब्लैकहेड्स? 5 मिनट में ये नुस्खें करेंगे काम
- 15 hrs ago आम पन्ना से 10 गुना ज्यादा ठंडक देता है इमली का अमलाना, लू से बचने का है देसी फार्मूला
Don't Miss
- Finance Indian Railway ने शुरू की स्पेशल ट्रेन, जानिए कब तक मिलेगी इसकि सुविधा
- News Lok Sabha Chunav: बिहार में सबसे कम मतदान! मतदाताओं के वोट नहीं देने के पीछे ये प्रमुख कारण
- Movies OMG! Rajkummar Rao ने किया चौंकाने वाला खुलासा, हैंडसम दिखने के लिए चेहरे पर करवा चुके हैं छेड़छाड़
- Education UPMSP Result 2024: यूपी बोर्ड 10वीं, 12वीं रिजल्ट आज होंगे जारी, कैसे करें स्कोरकार्ड डाउनलोड
- Technology OpenAI को मिला भारत से पहला कर्मचारी, जानिए किसे मिली ये अहम जिम्मेदारी
- Automobiles इलेक्ट्रिक वाहन मालिकों को Google की सौगात, अब EV चार्ज करना होगा और आसान, जानें क्या है नया फीचर?
- Travel हनुमान जयंती : वो जगहें जहां मिलते हैं हनुमान जी के पैरों के निशान
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
महिलाओं अब तो जागो
बात अगर गांव की करें तो लड़की सन्नाटे रास्तों पर जाने से डरती है लेकिन उस डर का क्या करें, जो घर के अंदर पनपता है और लड़की के साथ बड़ा होता है। उस डर का क्या करें जो उसके पैदा होते ही उसके दिमाग में बैठ जाता है और उम्र के आधे पड़ाव को पार करने तक रहता है। जी हां हम बात कर रहे हैं घरेलू हिंसा की, जिसकी अनगिनत वारदातें हमारे देश में होती हैं, लेकिन दर्ज महज सौ-पचास होती हैं, वो भी चरम पर पहुंचने के बाद।
घरेलू हिंसा की शुरुआत होती है तब जब बच्ची अपने मां-बाप से खिलौना मांगती है। हमारा समाज उनको बचपन से ही उन्हें कमजोर बनाता है। जब लड़का छोटा होता है, तो हम उसके हाथों में बैट-बाल या स्पोर्टस का सामान पकड़ाते हैं, जिससे वह शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनता है। लेकिन लड़की को खेलने के लिए गुड्डा-गुडि़या या चूल्हा बर्तन वाले खिलौने देते हैं, जिससे वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होती चली जाती है। इसके साथ ही भावनाओं में बहती जाती है।
अब लड़कियां जैसे-जैसे बड़ी होती हैं घर की पाबंदियां और समाज की यातनाएं उन पर हावी होती चली जाती हैं। लड़का अपना अंडरगार्मेंट कहीं भी फैलाए, कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अगर लड़की अपना अंर्तवस्त्र कही भी फैला दे तो, इसको अश्लील हरकत कहा जाता है। उनके पहनने, बोलने, चलने, लड़को से बात करने पर पाबंदीयों की झड़ी लगी रहती है।
आम तौर पर लोग घरेलू हिंसा को सिर्फ घर में मार-कुटाई ही समझते हैं, बल्कि सही मायने में लड़कियों के अरमानों को दबाना, घर के अंदर परिवार के सदस्यों द्वारा रोज-रोज मानसिक प्रताड़ना देना, गुस्से में उसके द्वारा परोसा हुआ खाना फेंक देना, उसके साथ गाली-गलौज करना, उसकी मंशा के विरुद्ध जाकर उसकी पढ़ाई रोक देना, आदि भी घरेलू हिंसा के ही रूप हैं। इसके अलावा यौन उत्पीड़न भी एक बड़ी हिंसा है, जिसके लिए आम तौर पर दूर के रिश्तेदार या पड़ोस के लोग जिम्मेदार होते हैं। ऐसे में जब लड़की विरोध करती है, तो बदनामी का हवाला देकर उसका मुंह बंद कर दिया जाता है। इस तरह की प्रताणना घर में ही नहीं, ससुराल जाने के बाद भी मिलती हैं। हालांकि उस समय दहेज प्रताड़ना भी उसमें जुड़ जाती है।
घरेलू हिंसा की बात करते वक्त हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग नहीं कर सकते जहां, ऑनर किलिंग की वारदातें सबसे ज्यादा होती हैं। ऑनर किलिंग का बीज असल में घरेलू हिंसा ही है। क्योंकि कोई भी मां-बाप, भाई, चाचा कभी भी अपनी बेटी या बहन को सीधे मौत के घाट नहीं उतार देता, उससे पहले पीड़िता को मार-कुटाई, गर्म सलाखों से जलाने से लेकर मानसिक प्रताड़नाएं झेलनी पड़ती हैं।
अगर हम यह सोचें कि नोएडा की आरुषि तलवार और नागपुर की अनीता की हत्या या फिर ऑनर किलिंग की शिकार लड़कियों की मौत के बाद उनके हत्यारों को पकड़ने की मांगों को लेकर जुलूस निकालने वाले महिला संगठन इसमें कुछ करेंगे, या इस हिंसा को रोकने की जिम्मेदारी पुलिस की है, तो हम गलत हैं। महिला संगठन सिर्फ जागरूकता पैदा कर सकते हैं, पुलिस सिर्फ उत्पीड़न करने वाले को सलाखों के पीछे डाल सकती है, कोर्ट सिर्फ न्याय दे सकता है, इनमें से कोई भी आपके घर के अंदर नहीं आ सकता। लिहाला जरूरत है सिर्फ सोच बदलने की।