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इंसुलिन लगाते समय इन बातों का रखें ध्यान, हर उम्र के हिसाब से सही मात्रा जरूरी
डायबिटीज की बीमारी तब होती है जब हमारे शरीर में इंसुलिन का उपयोग अच्छी तरह से नही होता है, या फिर शरीर में इंसुलिन का निर्माण नहीं होता है। इसी स्थिति में अतिरिक्त इंसुलिन लेने की जरूरत होती है। दरअसल, इंसुलिन पैंक्रियास में बनने वाला ऐसा हार्मोन है जो ब्लड ग्लूकोज को संतुलित कर बॉडी को एनर्जी के रूप में ग्लूकोज का प्रयोग करने में सहायता करता है। जब हमारे शरीर में ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो इंसुलिन ग्लूकोज को लीवर में जमा करने का काम करता है। स्टोर किया हुआ ग्लूकोज तब तक नहीं निकलता तब तक हमारा ब्लड शुगर का लेवल कम नहीं होता। ऐसे में इंसुलिन मेडिकेशन के ज़्यादातर मामलों में उपचार का एक अनिवार्य हिस्सा है। यहां हम आपको विभिन्न आयु वर्ग में टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के पेशेंट को दी जाने वाली इंसुलिन की खुराक के बारे में बताने जा रहे है।
इंसुलिन की ज़रूरत कब पड़ती है?
- अगर आप टाइप 1 डायबिटीज़ से ग्रसित हैं।
- अगर आप अनियंत्रित टाइप 2 डायबिटीज़ से पीड़ित हैं।
- उचित खानपान, व्यायाम और ओरल मेडिकेशन के बावजूद शुगर कंट्रोल में नहीं हो रही।
- ऐसी गर्भवती महिलाएं जो टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज़ से ग्रसित हैं।
- आप टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज़ से ग्रसित हैं और किसी तरह का ऑपरेशन कराने जा रहे हैं।
विभिन्न आयु वर्ग के लिए इंसुलिन की खुराक
वयस्क
टाइप 1 डायबिटीज
खाने के बाद या पहले: खाने से पहले
अधिकतम मात्रा: 0.2 units/kg
दवा कितनी बार लेनी है: 2 बार
बुजुर्ग
टाइप 1 डायबिटीज
खाने के बाद या पहले: खाने से पहले
अधिकतम मात्रा: 0.2 units/kg
दवा कितनी बार लेनी है: 2 बार
बच्चे 2 से 12 वर्ष तक के
टाइप 1 डायबिटीज
खाने के बाद या पहले: खाने से पहले
अधिकतम मात्रा: 0.2 units/kg
दवा कितनी बार लेनी है: 2 बार
प्रेगनेंसी में डायबिटीज
खाने के बाद या पहले: खाने से पहले
अधिकतम मात्रा: 0.7 units/kg
दवा कितनी बार लेनी है: 1 बार
दवा लेने की अवधि: 7 महीने
क्या इंसुलिन के भी कई प्रकार होते हैं?
इंसुलिन पांच तरह का होता है। आपकी उम्र, वज़न, शुगर कंट्रोल, लाइफस्टाइल, इंजेक्शन लेने की आपकी फ्रीक्वेंसी और इंसुलिन के प्रति आपके रेस्पोंस के बेस के आधार पर ही डॉक्टर आपको सबसे बेहतर इंसुलिन की सिफ़ारिश करेगा।
रैपिड एक्टिग इंसुलिन- ये 15 मिनट में असर दिखाने लगता है। इसका प्रभाव 3 से 5 घंटों तक रहता है।
शॉर्ट एक्टिंग इंसुलिन - 30 से 60 मिनट के बीच अपना असर दिखाने लगता है। इसका प्रभाव 5 से 8 घंटों तक रहता है।
इंटरमीडिएट एक्टिंग इंसुलिन- 1 से 3 के बीच अपना असर दिखाने लगता है। इसका प्रभाव 12 से 16 घंटों तक रहता है।
लॉन्ग एक्टिंग इंसुलिन- 1 घंटे के बीच अपना असर दिखाने लगता है। इसका प्रभाव 20 से 26 घटों तक रहता है।
प्रीमिकस्ड इंसुलिन- ये दो तरह के इंसुलिन का प्रक्रार होता है।
इंसुलिन को इस्तेमाल कैसे किया जाता है?
इंसुलिन लेने का सबसे आम तरीक़ा सिरिंज का इस्तेमाल है। आप अपनी स्किन की फ़ैट लेयर पर इंसुलिन का इंजेक्शन लगा सकते हैं। आप इंसुलिन पेन और पंप भी इस्तेमाल कर सकते हैं। कार्ट्रिज और सुई के ज़रिए इंसुलिन पेन्स हॉर्मोन भेजते हैं. अपनी ज़रूरतों के मुताबिक़ आप खुराक की फ्रिक्वेंसी को तय कर सकते हैं।
इन बीमारियों से पीड़ित है तो इंसुलिन ना लें या सावधानी बरतें
- लीवर संबंधी रोग
- किडनी की समस्या
- न्यूरोपैथी
- हाइपोग्लाइसिमिया
- पोटेशियम की समस्या
ज्यादा इंसुलिन लेने से क्या होता है?
इसे नियमित रूप से लगाए जाने से वजन बढ़ता है। वहीं, पैरों में सूजन आ सकती है। और अगर आप ज्यादा डोज लेने के बाद खाना नहीं खाएंगे तो यह नुकसानदायक है। इससे शुगर का लेवल बढ़ने से हाइपोग्लेसमिया हो सकता है।