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बच्‍चेदानी की गांठ से हो सकता है बांझपन, जाने कैसे करें इसका इलाज

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गर्भाशय से जुड़ी बीमारियां महिलाओं के गर्भाधरण करने में बाधा उत्‍पन्‍न कर सकता हैं। तीन में से एक महिला को अनियमित माहवारी की समस्‍या से जूझना पड़ता है, जिससे उन्‍हें गर्भाशय में सिस्‍ट या फाइब्रॉयड जैसी घातक बीमारी का शिकार होना पड़ता है। फाइब्रॉइड जिसे आम भाषा में बच्चेदानी की गांठ या गर्भाशय में रसौली भी कहते हैं।

इस समस्या में महिला के गर्भाशय में कोई मांसपेशी असामान्य रूप से ज्यादा विकसित हो जाती है और धीरे-धीरे गांठ बन जाती है। ये एक तरह का ट्यूमर है। महिला के गर्भाशय में पाई जाने वाली ये गांठ मटर के दाने से लेकर क्रिकेट बॉल जितनी बड़ी हो सकती है। जिसकी वजह से महिलाओं में मां बनने का सपना अधूरा रह जाता है। आइए आपको बताते हैं गर्भाशय में गांठ होने पर किन तरीकों से इसका इलाज किया जा सकता है।

बच्चेदानी में गांठ के क्या हैं लक्षण

बच्चेदानी में गांठ के क्या हैं लक्षण

गर्भाशय की मांसपेशियों का असामान्य रूप से विकास होने लगता है तो उसे फाइब्रॉएड कहा जाता है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों के बाहरी और अंदरूनी दोनों हिस्सों में हो सकता है। फाइब्रॉइड के लक्षण इस प्रकार हैं-

- मासिक-धर्म के दौरान सामान्‍य से अधिक रक्‍तस्राव

- यौन संबंध बनाते वक्‍त तेज दर्द

- यौन संबंध के समय योनि से खून निकलना

- मासिक धर्म के बाद भी रक्‍तस्राव

फाइब्रॉइड से कैसे मां बनने में आती है दिक्‍कत

फाइब्रॉइड से कैसे मां बनने में आती है दिक्‍कत

गर्भाशय में होने वाली गांठ के कारण अंडाणु और शुक्राणु का न‍िषेचन नहीं होने के कारण बांझपन की समस्‍या होती है। आनुवंशिकता, मोटापा, शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा का बढ़ना और लंबे समय तक संतान न होना इसके प्रमुख कारकों में से एक हैं।

गर्भाशय की गांठ इलाज

गर्भाशय की गांठ इलाज

फाइब्रॉइड के लिए इलाज के लिए पहले चीरा लगाया जाता था, जिसका घाव भरने में बहुत मुश्किल होती थी। लेकिन आजकल दूरबीन विधि से इसका उपचार करने में त्‍वचा पर कोई दाग नहीं रहता है। पहले ओपन सर्जरी द्वारा इसका उपचार होता था, जिससे मरीज को स्वस्थ होने में लगभग एक महीने या उससे अधिक समय लगता था। लेकिन अब लेप्रोस्कोपी की नई तकनीक के जरिये इस बीमारी का कारगर उपचार आसान हो गया है।

लेप्रोस्‍कोपिक तकनीक

लेप्रोस्‍कोपिक तकनीक

लेप्रोस्‍कोपिक तकनीक से उपचार के दौरान पेट में बड़ा चीरा लगाने के बजाय सिर्फ आधे से एक सेंटीमीटर का सुराख बनाकर दूरबीन से मॉरसिलेटर नामक यंत्र का उपयोग कर फाइब्रॉइड के छोटे-छोटे बारीक टुकड़े कर उसे बाहर निकाला जाता है। इस तरीके से उपचार के दौरान मरीज को अधिक तकलीफ नहीं होती, खून भी ज्यादा नहीं निकलता और सर्जरी के 24 घंटे बाद महिला घर जा सकती है।

ये भी है एक रास्‍ता

ये भी है एक रास्‍ता

इसके अलावा पॉलीविनाइल एल्कोहॉल के क्रिस्टल से भी फाइब्रॉयड की ऑर्टरी को ब्लॉक कर दिया जाता है, इससे ट्यूमर के लिए रक्त का प्रवाह रुक जाता है और ट्यूमर गलकर छोटे-छोटे टुकड़ों में पीरियड्स के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है, लेकिन इलाज की यह प्रक्रिया ज्यादा महंगी है।

इन बातों का ध्यान रखें

इन बातों का ध्यान रखें

परिवार में किसी को फाइब्रॉइड की समस्‍या पहले रही हो तो प्रत्‍येक 6 महीने के अंतराल पर एक बार पेल्विक अल्ट्रासाउंड जरूर कराएं, जिससे कि शुरुआती चरण में ही इसका पता चल जाए। इससे बचाव के लिए स्‍वस्थ आहार के सेवन के साथ एक्‍सरसाइज को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

English summary

Do Uterine Fibroids Affect Your Fertility and Pregnancy?

Many people often worry about uterine fibroids and pregnancy and, while there are a few additional risks, they're rare and often treatable. Here's what you should know.
Story first published: Monday, March 25, 2019, 9:59 [IST]
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