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त्याग और समर्पण का त्योहार है बकरीद
भारत में सालभर कई त्योहार मनाए जाते हैं और अगस्त का तो पूरा महीना ही त्योहारों के नाम होता है। इसमें हिंदुओं का एकादशी व्रत और शिवरात्रि का त्योहार आता है और केरल का मशहूर त्योहार ओणम मनाया जाता है। त्योहारों के लिए खास अगस्त के महीने में मुसलमानों का बकरीद का त्योहार भी मनाया जाता है। मुस्लिम धर्म के सभी लोग अपने इस खास त्योहार का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
इस्लामिक धर्म के दो सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है बकरीद और दूसरा है ईद-उल-फितर। बकर ईद को ईद-उल-अधा के नाम से भी जाना जाता है कि जिसका मतलब होता है त्याग का प्रतीक।
धु अल हिज्जाह के दसवें दिन बकरीद का त्योहार मनाया जाता है और ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार तारीखें हर साल लगभग ग्यारह दिन भिन्न होती हैं। धु अल हिज्जाह इस्लामिक कैलेंडर का बारहवां महीना होता है। इस साल बकर ईद का त्योहार 22 अगस्त को पड़ रहा है।
कैसे मनाते हैं बकर ईद
धु अल हिज्जाह के दसवें दिन सभी अनुयायी सूर्योदय के पश्चात् मस्जिद जाकर प्रार्थना करते हैं। यहां सभी लोग एक-दूसरे से गले मिलकर ईद मुबारक कहते हैं। हर समुदाय में महिलाओं को खुलकर इस त्योहार को मनाने की आज़ादी नहीं है। हर परिवार अपने सामर्थ्य के अनुसार इस दिन जानवरों की बलि चढ़ाता है। प्राचीन समय में इब्राहिम ने ईश्वर के लिए अपने पुत्र की बलि दी थी और तभी से बकरीद के दिन हलाल यानि बकरे की बलि देने की पंरपरा शुरु हो गई थी। इस दिन बकरी, भेड़, ऊंट या अन्य जानवरों की बलि दी जाती है।
प्रार्थना के बाद बकरीद की सबसे प्रमुख रीति है हलाल। इसके बाद सभी दोस्तों और रिश्तेदारों में उस जानवर का मांस बांटा जाता है। एक तिहाई हिस्सा अपने लिए रखकर एक तिहाई हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों में बांट दिया जाता है। बचा हुआ एक तिहाई हिस्सा गरीबों और ज़रूरतमंदों में बांट दिया जाता है। लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के घर जाकर उन्हें ईद के मौके पर अपने घर आने का न्यौता देते हैं। महिलाएं इस दिन नए कपड़े पहनती हैं और स्वादिष्ट पकवान बनाती हैं।
इस्लाम के इस त्योहार के बारे में कहा जाता है कि इब्राहिम नाम का एक शख्स था जिसकी एक भी संतान नहीं थी। उसने बहुत मन्नतें मांगी और उसके बाद जाकर उसके घर में एक लड़के का जन्म हुआ। उन्होंने अपने बेटे का नाम इस्माइल रखा।
एक दिन इब्राहिम ने अपने सपने में अल्लाह को देखा जिन्होंने उनसे कहा कि तुम्हें दुनिया में जो भी चीज़ सबसे ज़्यादा प्यारी है उसकी कुर्बानी दे दो। अल्लाह के हुक्म पर इब्राहिम सोच में पड़ गया। उसके लिए उसका बेटा इस्माइल ही सबसे ज़्यादा अज़ीज़ था। उसने धर्म की खातिर अपने बेटे की भी कुर्बानी देने में विलंब नहीं किया। इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और अपने बेटे की बलि के लिए जैसे ही छुरी चलाई वैसे ही एक फरिश्ते ने आकर उसके बेटे की जगह एक मेमना रख दिया और इस तरह मेमने की कुर्बानी दी गई।