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भीष्म द्वादशी व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त के साथ जरूर जानें महाभारत से जुड़ा किस्सा

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पंचांग के अनुसार, माघ महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है और इससे चार दिन पहले भीष्म द्वादशी पड़ती है। इस तिथि को गोविन्द द्वादशी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन भीष्म पितामह और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने का विधान है। इस व्रत को करने से जातक को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही सौभाग्य में वृद्धि होती है और धन लाभ होता है। इस लेख में जानते हैं भीष्म अष्टमी व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, कथा और इसकी महिमा के बारे में।

भीष्म द्वादशी व्रत 2023

भीष्म द्वादशी व्रत 2023

इस साल भीष्म द्वादशी का व्रत 2 फरवरी 2023, गुरुवार को रखा जाएगा।

द्वादशी तिथि प्रारंभ: 1 फरवरी 2023 को दोपहर 2 बजकर 2 मिनट से

द्वादशी तिथि का समापन : 2 फरवरी 2023 को शाम 4 बजकर 27 मिनट पर।

भीष्म द्वादशी से जुड़ी कथा

भीष्म द्वादशी से जुड़ी कथा

इसका संबंध महाभारत के युद्ध से है। महाभारत में भीष्म पितामाह कौरवों की तरफ से लड़े थे और उनके सामने थे पांडू पुत्र अर्जुन। धनुर्विद्या के महारथी भीष्म को हरा पाना पांडवों के लिए काफी मुश्किल था। ऐसे में उन्हें जानकारी मिली कि रण में यदि कोई नारी सामने आ जाये तो पितामाह प्रहार नहीं करते हैं। यह जानने के पश्चात् पांडवों ने शिखंडी को भीष्म पितामह के समक्ष खड़ा कर दिया। भीष्म पितामह ने तीर चलाना रोक दिया। इस मौके का फायदा उठाते हुए अर्जुन ने भीष्म पितामह के शरीर पर तीरों की बारिश कर दी। इस घटना में भीष्म पितामह घायल हो गए।

हालांकि, जब भीष्म पितामह चोटिल हुए, तो उस समय सूर्य दक्षिणायन था। इस कारण भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। उन्होंने बाणों की शैया पर लेटकर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करने का फैसला किया। सूर्य जब उत्तरायण हुआ, तब भीष्म पितामह ने अष्टमी तिथि को अपने शरीर को छोड़ दिया। इसके चार दिन पहले द्वादशी तिथि को भीष्म पितामह की पूजा-उपासना की गई। इसके बाद से ही माघ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर भीष्म पितामह के पूजन की परंपरा है।

भीष्म द्वादशी का महत्व:

भीष्म द्वादशी का महत्व:

पुराणों के अनुसार भीष्म द्वादशी व्रत की विशेष महत्ता बताई गयी है। इस व्रत को करने वाले जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और समस्त पापों का नाश होता है। पूरी श्रद्धा के साथ इस दिन लक्ष्मी-नारायण की पूजा करें और साथ ही भीष्म द्वादशी कथा जरूर सुनें।

पितरों के तर्पण का है विधान

पितरों के तर्पण का है विधान

ऐसी मान्यता है कि पांडवों के ही भीष्म पितामाह के अंतिम संस्कार को पूरा किया था इसलिए भीष्म द्वादशी पर पितरों का तर्पण करने की परंपरा भी है। भीष्म पितामह की पूजा अर्चना के साथ पितरों का ध्यान करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंदों की मदद करें। उनका आशीर्वाद मिलने से घर में सुख-संपत्ति का वास होगा।

नोट: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। बोल्डस्काई लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।

Read more about: puja hindu fast festivals
English summary

Bhishma Dwadashi 2023: Date, Muhurat, Importance and Katha in Hindi

This year Bhishma Dwadashi will be celebrated on 02 February 2023 on Thursday. Check out the other details in Hindi.
Story first published: Wednesday, February 1, 2023, 20:05 [IST]
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