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Jitiya Vrat Katha: महाभारत काल से जुड़ी हुई है जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा

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हर साल आश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। इस व्रत को जितिया, जिउतिया, जीमूत वाहन व्रत आदि नामों से जाना जाता है। माताएं जीवित्पुत्रिका व्रत अपनी संतान खासतौर से पुत्र की लंबी आयु और सुखमय जीवन के आशीर्वाद के लिए रखती हैं। इस व्रत के दौरान कई नियमों का पालन किया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है और इस व्रत के दिन इससे जुड़ी कथा सुनने का भी खास महत्व है।

जितिया व्रत करने की विधि

जितिया व्रत करने की विधि

छठ पर्व में जिस तरह नहाय-खाय की परंपरा होती है, उसी तरह जितिया व्रत पर भी इस विधि से व्रत किया जाता है। जितिया पर्व तीन दिनों तक चलता है। सप्तमी तिथि के दिन नहाय-खाय होता है। इसके बाद अष्टमी तिथि पर महिलाएं अपने बच्चों की सेहत, समृद्धि, खुशहाली और उन्नत जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसके अगले दिन यानी नवमी तिथि पर व्रत का पारण किया जाता है।

महाभारत काल से जुड़ा है जितिया व्रत का इतिहास

महाभारत काल से जुड़ा है जितिया व्रत का इतिहास

महाभारत युद्ध में पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित था। मन में बदले की भावना लेकर वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला और वह सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी ब्रह्मास्त्र से मार डाला।

ऐसे में भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा के गर्भ में पल रही अजन्मी संतान को दे दिया और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से गर्भ में ही दोबारा जीवित होने वाले इस बच्चे के कारण इस व्रत को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। उस समय से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जितिया व्रत रखने की परंपरा शुरू हो गई।

Jivitputrika Vrat 2020: जीवित्पुत्रिका व्रत कथा | जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha | Boldsky
जितिया व्रत की पौराणिक कथा

जितिया व्रत की पौराणिक कथा

जितिया व्रत से जुड़ी प्रचलित कथा भी है। इसके मुताबिक नर्मदा नदी के पास कंचनबटी नाम का एक नगर था। उस नगर के राजा का नाम मलयकेतु था। नर्मदा नदी के पश्चिम में बालुहटा नाम की मरुभूमि थी, जिसमें एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी और उसी पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी। दोनों पक्की सहेलियां थीं। दोनों ने कुछ महिलाओं को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और दोनों ने भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत करने का संकल्प लिया। लेकिन जिस दिन दोनों को व्रत रखना था, उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसका दाह संस्कार उसी मरुस्थल पर किया गया। सियारिन को अब भूख लगने लगी थी। मुर्दा देखकर वह खुद को रोक न सकी और उसका व्रत टूट गया। मगर चील ने संयम बनाये रखा। उसने नियम व श्रद्धा से अगले दिन व्रत का पारण किया।

अगले जन्म में दोनों सहेलियों ने ब्राह्मण परिवार में पुत्री के रूप में जन्म लिया। उनके पिता का नाम भास्कर था। चील, बड़ी बहन बनी और उसका नाम शीलवती रखा गया। शीलवती की शादी बुद्धिसेन के साथ हुई। वहीं सिया‍रन, छोटी बहन के रूप में जन्‍मी और उसका नाम कपुरावती रखा गया। उसका विवाह उस नगर के राजा मलायकेतु से हुई। अब कपुरावती कंचनबटी नगर की रानी बन गई। भगवान जीऊतवाहन के आशीर्वाद से शीलवती के सात बेटे हुए। दूसरी ओर कपुरावती के सभी बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। समय बीतने के साथ शीलवती के सातों पुत्र बड़े हो गए। वे सभी राजा के दरबार में काम करने लगे।

कपुरावती के मन में उन्‍हें देख इर्ष्या की भावना आ गयी। उसने राजा से कहकर सभी बेटों के सर काट दिए। उन्‍हें सात नए बर्तन मंगवाकर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढककर शीलवती के पास भिजवा दिया। यह देख भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सर बनाए और सभी के सिर को उसके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़क दिया। इससे उनमें जान आ गई। सातों युवक जिंदा हो गए और घर लौट आए। वहीं जो कटे सर रानी ने भेजे थे वे फल बन गए।

दूसरी ओर रानी कपुरावती, बुद्धिसेन के घर से सूचना पाने को व्याकुल थी। जब काफी देर सूचना नहीं आई तो कपुरावती स्वयं बड़ी बहन के घर गयी। वहां सबको जिंदा देखकर वह सन्न रह गयी। जब उसे होश आया तो बहन को उसने सारी बात बताई। अब उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था। भगवान जीऊतवाहन की कृपा से शीलवती को पूर्व जन्म की बातें याद आ गईं। वह कपुरावती को लेकर उसी पाकड़ के पेड़ के पास गयी और उसे सारी बातें बताईं। कपुरावती बेहोश हो गई और मर गई। जब राजा को इसकी खबर मिली तो उन्‍होंने उसी जगह पर जाकर पाकड़ के पेड़ के नीचे कपुरावती का दाह-संस्कार कर दिया।

English summary

Jivitputrika vrat: Jitiya Vrat Katha in Hindi

Jivitputrika Vrat: Must read jitiya vrat on this auspicious day.
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