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मेहंदीपुर बालाजी: जानें इस चमत्कारी मंदिर में कैसे मिलता है भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं से छुटकारा
जयपुर की सीमा रेखा पर दौसा जिले में स्थित मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
जयपुर की सीमा रेखा पर दौसा जिले में स्थित मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
जहाँ नास्तिक भी बालाजी के चमत्कार देखकर आस्तिक बन जाते है। दो पहाडियो के बीच बालाजी का मंदिर बना हुआ है, जिसे घाटे वाले बालाजी के नाम से भी पुकारा जाता है। इस मंदिर में हनुमान जी बल रूप में विराजमान है जो अपने आप पहाड़ी के पत्थर से बने हुए है।
इस मूरत की तर्ज पर बाकी मंदिर का निर्माण किया गया है। घाटे वाले बालाजी के अलावा यहा प्रेतराज सरकार और भैरवनाथ (कौतवाल) भक्तो की पीड़ा हरते है। दुखी कष्टग्रस्त व्यक्ति को मंदिर पहुंचकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है।
बालाजी को लड्डू, प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द का प्रसाद चढाया जाता है। इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं और शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है।
1.
यह मंदिर दो पहाडिय़ों के बीच की घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी कहते हैं। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसी को ध्यान में रखते हुए बाद में यहाँ मंदिर का निर्माण किया गया था। इस मंदिर की मूर्ति करीब 1 हजार साल पुरानी है, लेकिन यह मंदिर 20 वीं शताब्दी में बनाया था।
2.
कहा जाता है कि कई सालों पहले हनुमानजी और प्रेत राजा अरावली पर्वत पर प्रकट हुए थे। जहाँ बुरी आत्माओं और काले जादू से पीड़ित रोगों से छुटकारा पाने लोग यहां आते थे। इस मन्दिर को इन पीड़ाओं से मुक्ति का एकमात्र मार्ग माना जाता है। मंदिर के पंडित इन रोगों से मुक्ति के लिए कई उपचार बताते हैं। भूत प्रेत ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। ऐसे लोग यहां पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ हो कर लौटते हैं।
3.
पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर के देवता को दिव्य शक्ति प्राप्त है जिससे मनुष्य को दुष्ट आत्माओं से मुक्ति दिलाई जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि श्री बाला जी महाराज अपने भक्तों को प्रतिकूल ग्रह दशाओं को भी ठीक करते हैं। इसके साथ भगवान श्री बालाजी न केवल अपने भक्तों के संकट हरते हैं बल्कि उन्हें रिद्धी और सिद्धी भी प्रदान करते हैं। हर साल होली पर यह बहुत सारे लोगों को बुरी आत्माओं से मुक्ति दिलाई जाती है।
4.
यह मंदिर ऐसी जगह बना हुआ है जहा प्राचीन काल में बहुत हिन्सक जंगल हुआ करता था। कथाओं के अनुसार भगवान बालाजी और श्री प्रेतराज सरकार की मूर्ति यहाँ अरावली की पहाड़ियों पर करीब एक हजार साल पहले प्रकट हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि एक महंत को सपना आया था जिसमें श्री बालाजी महाराज ने तीन दैवीय देवताओं और एक भव्य मंदिर का संकेत दिया था। उन्हें एक दिव्य आवाज भी सुनाई थी जिसमें श्री बालाजी हनुमान ने अपनी सेवा करने का आदेश दिया था। इसके बाद उन्होंने गहन साधना की जिसके बाद भगवान श्री बालाजी ने उन्हें दर्शन दिए और जंगल में वह स्थान दिखाया जहाँ तीन देवताओं का मंदिर था। और यही उन महंत ने पूजा करनी शुरू कर दी।
5.
कहा जाता है कि मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने का प्रयास किया। हर बार ये बादशाह असफ़ल रहे। वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई। थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा। इसके साथ ही हनुमान जी के सीने में एक छोटा सा छेद है जिसमें से निरंतर पानी की एक धारा बहती रहती है यह जल बालाजी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है, जिसे भक्त्जन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं।
6.
प्रसाद का लड्डू खाते ही रोगी झूमने लगता है। भूत प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर चिल्लाने लगते हैं। कभी वह अपना सिर घुमता है कभी जमीन पर लोटने लगता हैं। पीड़ित लोग यहां पर अपने आप जो करते हैं वह एक सामान्य आदमी के लिए संभव नहीं है। इस तरह की प्रक्रियाओं के बाद वह बालाजी की शरण में आ जाता है। फिर उसे हमेशा के लिए इस तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। कई गंभीर रोगियों को लोहे की जंजीर से बांधकर मंदिर में लाया जाता है। यहां आने वाले पीडित लोगों को देखकर सामान्य लोगों की रूह तक कांप जाती है। ये लोग मंदिर के सामने ऐसे चिल्ला-चिल्ला के अपने अंदर बैठी बुरी आत्माओं के बारे में बताते हैं, जिनके बारे में इनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं रहता है। भूत प्रेत ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। ऐसे लोग यहां पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं।
7.
मेडिकल साइंस और शोधकर्ता ऐसी बिमारियों के इलाज के तरीकों को नहीं मानते हैं और इसे अंधविश्वास कहते हैं। लेकिन बालाजी की पूजा करने वालों के लिए यह अध्यात्मविज्ञान की समझ से परे हैं।
8.
प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। भक्तिभाव से उनकी आरती , चालीसा , कीर्तन , भजन आदि किए जाते हैं। बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। प्रेतराज सरकार को पके चावल का भोग लगाया जाता है। भक्तजन प्रायः तीनों देवताओं को बूंदी के लड्डुओं का ही भोग लगाते हैं। मंदिर से बाहर आकर वहां जो दो लड्डू बालाजी के भोग लगाने के बाद मिले थे उन्हें खा लेते हैं। बालाजी का भोग लगाने पर पहले जो दो लड्डू निकाले थे, वे नहीं निकालते हैं और रुकते नहीं हैं, सीधे घर को प्रस्थान कर देते हैं।
9.
जी हाँ मंदिर से एक बार बाहर निकलने के बाद पलट कर पीछे नहीं देखाना चाहिये। यदि आप मंदिर से बहार आ गए तो सीधे शहर से बाहर प्रस्थान करें। ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर कोई भूत प्रेत या आत्मा आपके पीछे हैं तो वह आपके पीछे नहीं आएगी। सीधे शहर से बाहर निकल जाएँ। यह भी ध्यान रहें कि अगर आपने कोई मन्नत मांगी है और वह पूरी हो गयी है तो उसके बाद एक बार मंदिर दर्शन करने जरूर आएं।
10 . विशेषताएं
- भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे किसी साधु, संन्यासी और फकीर से कोई संपर्क न करें।
- पागल औरतों, आत्माओं और पिशाचग्रस्त किसी सहायक के साथ रहें।
- पीड़ितों के लिए मंदिर घर की तरह है।
- बच्चों को मंदिर में ना लाएं, उन्हें घर / धरशाला / होटल में छोड़ दें। क्योंकि बच्चा अगर वहां पेशाब करेगा तो मंदिर में गन्दगी होगी।
- मंदिर में लेटना और खेलना सख्त मना है।
- कोई स्वयंसेवी भक्तों से किसी भी तरह का कोई पैसा नहीं लेता है।