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स्कंद षष्ठी 2018: करें भगवान स्कंद की पूजा मिलेगा यह फल
आज स्कंद षष्ठी के पावन दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के पुत्र श्री कार्तिकेय की पूजा की जाती है। शास्त्रों में इस पूजा को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। वैसे तो यह त्यौहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन दक्षिण भारत में इस पर्व का एक अलग ही महत्व है। यहाँ भगवान कार्तिकेय को मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इनका वाहन मोर है।
स्कंद षष्ठी को कुमार षष्ठी भी कहा जाता है। माँ दुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है। नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। कहतें है इस दिन पूजा और व्रत करने से भगवान कार्तिकेय की कृपा प्राप्त होती है और मनुष्य के सभी दुःख, रोग और दरिद्रता दूर होतें है।
स्कन्द
पुराण
को
सभी
पुराणों
में
सबसे
अधिक
विशाल
माना
जाता
है।
आइए
जानते
इस
पवित्र
दिन
की
कथा
और
पूजा
की
विधि।
स्कंद
षष्ठी
कथा
छह
मुख
वाले
भगवान
कार्तिकेय
महादेव
के
तेज़
से
उत्पन्न
हुए
थे।
माना
जाता
है
कि
छह
कृतिकाओं(सप्त
ऋषि
की
पत्नियां)
ने
स्तनपान
करा
कर
इनकी
रक्षा
की
थी
इसलिए
इन्हे
कार्तिकेय
धात्री
भी
कहतें
है।
यह
सदैव
बालक
रूप
ही
रहते
हैं।
एक
पौराणिक
कथा
के
अनुसार
जब
तारकासुर
और
अन्य
दैत्यों
के
अत्याचार
से
सभी
देवता
परेशान
हो
गए
तब
वे
ब्रह्मा
जी
के
पास
साहयता
मांगने
पहुंचे।
इस
पर
ब्रह्मा
जी
ने
कहा
कि
इन
दैत्यों
का
अंत
केवल
शिव
जी
के
पुत्र
द्वारा
ही
संभव
है
और
उन्हें
भगवान
भोलेनाथ
के
पास
जाने
की
सलाह
दी।
तब
सभी
देवता
शिव
जी
के
पास
पहुंचे
हुए
उनसे
मदद
की
गुहार
करने
लगे
परन्तु
माता
सती
के
अंत
के
बाद
महादेव
साधना
में
लीन
हो
गए
थे।
तब
देवराज
इंद्र
अन्य
सभी
देवताओं
के
साथ
भोलेनाथ
के
पास
पहुंचे
और
अपनी
समस्या
का
समाधान
करने
को
कहा।
जब
शिवजी
का
ध्यान
भंग
नहीं
हुआ
तब
ब्रह्मा
जी
ने
कामदेव
को
यह
कार्य
पूरा
करने
के
लिए
कहा।
सब
जानते
है
कि
महादेव
के
क्रोध
से
बचना
कितना
मुश्किल
है
किन्तु
फिर
भी
कामदेव
ने
यह
ज़िम्मा
उठा
लिया
क्योंकि
विपदा
बहुत
ही
बड़ी
थी।
इसके
पश्चात
कामदेव
ने
शिवजी
की
तपस्या
भंग
करने
के
लिए
तरह
तरह
के
प्रयोग
करने
शुरू
कर
दिए।
उन्होने
भोलेनाथ
पर
पुष्प
बाण
छोड़
दिया
जिससे
महादेव
की
तपस्या
भंग
हो
गई।
क्रोध
के
कारण
भगवान
ने
अपनी
तीसरी
आँख
खोल
दी
और
कामदेव
जल
कर
भस्म
हो
गए।
सभी
देवतागण
भोलेनाथ
के
जागने
से
प्रसन्न
थे
किन्तु
कामदेव
की
मृत्यु
से
दुखी
भी
थे।
कामदेव
की
पत्नी
अपने
पति
के
मृत्यु
पर
फूट
फूट
कर
रोने
लगी
और
अपने
पति
का
जीवन
वापस
मांगने
लगी।
तब
शिवजी
ने
उसे
आश्वासन
दिया
कि
द्वापर
युग
में
श्री
कृष्ण
के
पुत्र
के
रूप
में
कामदेव
फिर
से
जन्म
लेंगे।
इसके
पश्चात
भोलेनाथ
ने
सभी
देवताओं
की
समस्या
सुनी
और
कुछ
समय
बाद
माता
पार्वती
से
उनका
विवाह
संपन्न
हो
गया।
कहतें है जब कामदेव शिवजी के क्रोधाग्नि से भस्म हुए थे तब महादेव के अंश छह भागो में बंट कर गंगा नदी में गिर गए थे। तब देवी गंगा ने उन छह अंशो को जंगल में रखा और उनसे छह पुत्रों का जन्म हुआ। बाद में माता पार्वती ने एक एक कर भगवान कार्तिकेय के छह रूपों को बनाया। इन्ही भगवान ने दुष्ट राक्षस तारकासुर और अन्य राक्षसों का वध करके देवताओं का उद्धार किया और उन्हें उनके आतंक से बचाया।
स्कंद
षष्ठी
का
महत्व
आपको
बता
दें
कि
भगवान
कार्तिकेय
को
युद्ध
का
राजा
माना
जाता
है
इसी
कारणवश
देवताओं
ने
इन्हे
अपना
सेनापति
नियुक्त
किया
था।
अन्य
सभी
त्योहारों
की
तरह
स्कंद
षष्ठी
भी
अच्छी
की
बुराई
पर
जीत
का
प्रतिक
माना
जाता
है।
भगवान
स्कंद
की
आराधना
दक्षिण
भारत
में
सबसे
ज़्यादा
होती
है।
इनके
आशीर्वाद
से
मान
सम्मान,
प्रतिष्ठा
और
विजय
प्राप्त
होती
है।
इस शुभ अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। सबसे पहले इसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना करके पूजा की जाती है और साथ ही अखंड दीपक जलाए जाते हैं। वहीं, भक्तों द्वारा स्कंद षष्ठी का पाठ किया जाता है। भगवान को स्नान कराया जाता है, उसके बाद नए वस्त्र पहनाए जाते हैं फिर विधिपूर्वक की पूजा कर भोग लगाया जाता है।
भूलकर
भी
न
करें
यह
काम
हर
पूजा
की
अलग
अलग
विधि
होती
है
ठीक
उसी
प्रकार
इस
पूजा
में
भी
कुछ
बातों
का
विशेष
ध्यान
रखना
अति
आवश्यक
है।
ध्यान
रहें
कि
विशेष
कार्य
की
सिद्धि
के
लिए
इस
समय
कि
गई
पूजा-अर्चना
सबसे
फलदायी
होती
है।
इसमें
मांस,
शराब,
प्याज,
लहसुन
का
त्याग
कर
देना
चाहिए
और
ब्रह्मचर्य
का
संयम
रखना
बहुत
आवश्यक
होता
है।
स्कंद षष्ठी में इन मंत्रों का विशेष महत्व
कहतें है इन मंत्रों के साथ भगवान की पूजा फलदायक होती है।
“ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात”
“ॐ
शारवाना-भावाया
नम:
ज्ञानशक्तिधरा
स्कंदा
वल्लीईकल्याणा
सुंदरा,
देवसेना
मन:
कांता
कार्तिकेया
नामोस्तुते”