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Women’s Equality Day 2022: बॉलीवुड की ये फिल्में महिलाओं की समानता पर खुलकर बात करती हैं, ये रही लिस्ट
फिल्में न सिर्फ हमारे मनोरंजन के लिए बनाई जाती है बल्कि सिनेमा हमारे समाज का आइना है। जो हमारे आसपास घट रही कई घटनाओं की वास्तविकता का चित्रण करती है और हमें समाज की कई हकीकतों से रुबरु करवाती हैं। पिछले कुछ समय से बॉलीवुड में महिलाओं पर केंद्रित कई फिल्में बनाई गई हैं जो हमारे समाज में कुप्रथा को उजागर करते हुए सवाल उठाकर समाज की दकियानूसी सोच पर कटाक्ष का काम करती हैं।
इन फिल्मों में न सिर्फ महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव के अलावा समानता को भी तरजीह दी गई है। यहां हम आपको ऐसी मूवीज के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने सिनेमा में पितृसत्तात्मक मानदंडों पर कटाक्ष करते हुए महिलाओं की समानता का मुद्दा उठाया हैं।
दिल धड़कने दो
'दिल धड़कने दो' फिल्म वैसे तो एक फैमिली ड्रामा है, लेकिन इस फिल्म का एक दृश्य कई दर्शकों के जेहन में छाप छोड़ने पर कामयाब रहता हैं। जहां फरहान अख्तर, जो सनी गिल का रोल प्ले करते हैं। वो आयशा (प्रियंका चोपड़ा) के पति यानी राहुल बोस को नारीवाद की सोच को लेकर शिक्षित करते हैं कि एक सशक्त नारी को करियर बनाने और अपने ढंग से जिंदगी जीने के लिए किसी भी पुरुष की अनुमति की जरुरत नहीं होती हैं। ये दृश्य पितृसत्तात्मक पर भारी प्रहार करने के साथ ये सोशल मैसेज देता हैं कि चाहें पुरुष हो या महिला सबको अपनी च्वॉइस का कॅरियर बनाने और जीवन जीने का पूरा अधिकार हैं।
थप्पड़
भारतीय समाज के कई तबको में जहां मैरिटल रेप और गंभीर घरेलू हिंसा को परिवार का 'आंतरिक मामला' माना जाता है, वहां थप्पड़ पड़ना तो एक आम सी बात है? इस फिल्म में मूवी के टाइटल को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया गया है। मूवी में यहीं थप्पड़ तापसी के लिए एक वेक-अप कॉल की तरह काम करता है, जो उसे याद दिलाता है कि उसने अपने पति की जरूरतों को पूरा करने के लिए किस तरह खुद को समर्पित कर दिया और उसकी पहचान को ही अपनी पहचान बना लिया। ये फिल्म पुरुष-महिला संबंध और लैंगिक समानता के आधार की पड़ताल करती है।
लिपस्टिक अंडर माई बुर्का
कोंकणा सेन और रत्ना पाठक शाह अभिनीत 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' बॉलीवुड की सबसे मजबूत फेमिनिस्ट मूवी में से एक हैं। 2016 में आई इस मूवीज की फीमेल कैरेक्टर फिल्म में कई रूढ़िवादी जंजीरों को तोड़ती हुई नजर आतीं हैं। इस वजह से मूवी की इन सभी पथ-प्रदर्शक महिला पात्रों को संक्षेप में समेटना मुश्किल सा हो गया था। इस फिल्म की स्टोरी में महिलाओं में सबसे कॉमन फैक्टर ये था कि वे सभी तृप्ति चाहती हैं और अपनी हसरतों को पूरा करने के लिए वो डर और शर्म से मुक्त हो जाती हैं। फिल्म में महिला किरदार को बिल्कुल वैसा ही चित्रित किया गया है जो वो खुद के लिए बनना चाहती हैं। फिल्म की लीड रोल जीवन में आनंद, स्वतंत्रता और आत्म-अभिव्यक्ति और समानता पाने के लिए कुंठा के भाव को तोड़कर उसे पाने की हसरत लिए संघर्ष करती हुई नजर आती हैं।
इंग्लिश-विंग्लिश
इंग्लिश-विंग्लिश न सिर्फ श्रीदेवी की कमबैक मूवी थी, बल्कि ये एक सोशल मैसेजिंग स्टोरी भी थी।
इस फिल्म से हमें सीख मिलती हैं कि एक महिला उम्र के किसी भी दौर में और घर की जिम्मेदारियों तले दबने के बावजूद भी कुछ कर गुजरने का जज्बा रखती हैं। वह जब चाहे कुछ भी और सब कुछ हासिल कर सकती है। वो अपना पैशन भी पूरा कर सकती है और साथ ही साथ लड्डू भी बना सकती है। इस फिल्म में शशि का किरदार निभाने वाली दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान न होने के वजह से अपने पति और बेटी से तिरस्कार मिलता हैं। जिसके बाद वो इंग्लिश भाषा सीखने की ठान लेती हैं। फिल्म के अंत में शशि फैमिली फंक्शन में अंग्रेजी में एक सार्थक भाषण देते हुए लड्डू परोसती हैं , और अपने हौसले के दम पर बताती हैं कि एक महिला कुछ भी हासिल कर सकती है।
पिंक
अमिताभ बच्चन स्टारर फिल्म ‘पिंक' महिलाओं के अधिकारों पर बनी सशक्त फिल्मों में से एक है। ये फिल्म शारीरिक शोषण की शिकार हो रही महिलाओं को बड़ा मैसेज देती है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे दकियानूसी सोच की वजह से महिलाओं के चरित्र पर आसानी से सवाल उठाए जा सकते हैं और कैसे उन्हें चरित्रहीन करार दिया जाता हैं। अगर महिला खुलकर अपनी सेक्सुअल डिजायर या पसंद के कपड़े भी पहनना चाहे तो समाज में उन्हें अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता हैं। ये फिल्म सटीक संदेश देती है कि एक महिला की न का मतलब न होता हैं, किसी पुरुष के साथ संबंध स्थापित करना उसका निजी अधिकार हैं, इससे वो चरित्रहीन नहीं बन जाती हैं।
लस्ट स्टोरिज
ये वेबसीरिज समाज के सांस्कृतिक और यौन मानदंडों पर कटाक्ष करती हुई नजर आती हैं। इसमें चार अलग-अलग कहानियों के जरिए यौन तृप्ति को लेकर महिलाओं के दृष्टिकोण को बयान किया गया है। फिल्म पितृसत्ता के कई पहलुओं की आलोचना करती है, जैसे तलाकशुदा महिलाओं की मानहानि और बच्चे पैदा करने का महिमामंडन। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कहानी महिलाओं के इर्द-गिर्द होने वाली वर्जनाओं पर केंद्रित है, जो दुस्साहसी तरीके से यौन सुख चाहती हैं।