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अपने बच्चे की दूसरों से तुलना करने की ना करें गलती
भारतीय माता-पिता को खुश कर पाना हर बच्चे के लिए बहुत मुश्किल काम है। आपने भी अपने माता-पिता को कभी ना कभी तो ये कहते सुना ही होगा कि तुम शर्मा जी के बच्चों की तरह होशियार नहीं हो या फिर उनके किसी रिश्तेदार के बेटे या बेटी की तरह क्लास में टॉप नहीं किया।
आमतौर पर अभिभावकों को अपने बच्चों से ये आम शिकायतें होती हैं। जब बच्चे अच्छा प्रदर्शन करते भी हैं तो मां-बाप उनकी हासिल की हुई उपलब्धि की प्रशंसा करने की बजाय उन्हें और ज्यादा मेहनत करने का दबाव डालते हैं।
जब
किसी
बच्चे
के
परीक्षा
में
80
प्रतिशत
अंक
आते
हैं
तो
माता-पिता
को
100
प्रतिशत
की
आशा
रहती
है
और
इस
चक्कर
में
वो
बच्चे
को
प्रोत्साहित
करना
ही
भूल
जाते
हैं।
दुर्भाग्यवश, भारतीय माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हर चीज़ में बढिया और बैस्ट प्रदर्शन करें और इस कारण बच्चों में आत्मविश्वास की कमी और तनाव पैदा होने लगता है। विशेषज्ञों की मानें तो भारत जैसे देशों में लोगों की आबादी की तुलना में अवसरों की कमी है इसलिए अभिभावकों को ये डर रहता है कि कहीं उनके बच्चे प्रतिस्पर्धा की दुनिया में पीछे ना रह जाएं।
वहीं दूसरी ओर जो माता-पिता खुद अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाते हैं वो चाहते हैं कि उनके बच्चे उनके सपनों को पूरा करें। जैसे कि अगर कोई व्यक्ति सिंगर बनना चाहता है और किसी कारणवश वो ऐसा नहीं कर पाता है तो वो चाहता है कि उसकी जगह उसका बच्चा सिंगर बनकर उनका सपना पूरा करे। अभिभावकों की ऐसी सोच के कारण बच्चों में आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान में कमी आने लगती है।
भारत में ऐसे अभिभावकों की संख्या बहुत ज्यादा है और इसी वजह से युवाओं में सबसे अधिक तनाव भी देखा जाता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि बचपन में अभिभावकों के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होता है।
जब माता-पिता रोज़-रोज़ बच्चों को उनकी पढ़ाई या करियर के लिए टोकने या ताने मारने लगते हैं तो बच्चों पर इसका बुरा असर पड़ता है। अभिभावक, बच्चों की मेहनत से ज्यादा उनके परिणाम पर ध्यान देते हैं।
इस मामले में बच्चे कुछ तो नहीं कर सकते। उन्हें बस खुद को अपने माता-पिता की तरह बनने से रोकना चाहिए। वहीं अभिभावकों को भी अपने बच्चों की असली प्रतिभा को पहचानकर उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए ना कि उन्हें ऐसी चीज़ों के लिए परेशान करना चाहिए जो उनकी रुचि से बाहर हो। आपको इस बात को समझ लेना चाहिए हर बच्चा एक समान नहीं होता और सभी बच्चों की क्षमता भी अलग-अलग होती है।