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जानिये, क्या है सीता नवमी का महत्व और कैसे करें पूजा
माना जाता है कि पृथ्वी पर माता सीता के जन्म को सीता नवमी के रूप में मनाया जाता है। पृथ्वी पर माता सीता का जन्म भगवान राम के जन्म के पूरे एक महीने बाद हुआ था।
वैशाख में शुक्लक्ष्य के नौवें दिन को सीता नवमी के रूप में मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, सीता नवमी की तिथि 4 मई 2017 है। माना जाता है कि पृथ्वी पर माता सीता के जन्म को सीता नवमी के रूप में मनाया जाता है।
पृथ्वी पर माता सीता का जन्म भगवान राम के जन्म के पूरे एक महीने बाद हुआ था। भगवान राम, चैत्र के महीने में शुक्ल पक्ष के नौवें दिन पैदा हुए थे। इस दिन को राम नवमी के रूप में मनाया जाता है।
भगवान
राम
भगवान
विष्णु
के
अवतार
रूप
हैं
तथा
इनका
जन्म
दुनिया
को
नैतिक
मूल्यों
व
धर्म
को
सिखाने
हेतु
हुआ
था।
भगवान
राम
को
पुरूषत्व
के
प्रतीक
के
रूप
में
देखा
जाता
है
तथा
उन्होंने
अपने
जीवन
में
एक
आदर्श
व्यक्ति
के
चरित्र
को
चित्रिती
किया।
इसलिए
इन्हें
'मरीयाद
पुरुषोत्तम'
के
नाम
से
भी
संबोधित
किया
जाता
है।
वहीं माता सीता को स्त्रीत्व के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। माता सीता भगवान राम के लिए एक उत्तम प्रतिरूप हैं।
माता
सीता
को
देवी
महा
लक्ष्मी
का
अवतार
रूप
माना
जाता
है।
माता
सीता
बलिदान,
साहस,
शुद्धता,
समर्पण
व
सच्चाई
की
प्रतिमा
हैं।
सम्मान
और
समर्पण
के
जीवन
को
पाने
के
लिए
भक्तों
को
माता
सीता
के
दिखाए
गए
मार्ग
पर
चलना
चाहिए।
माता
सीता
की
जन्म
कथा
माता
सीता
राजा
जनक
और
रानी
सुनायना
की
बेटी
थी,
जोकि
मिथिला
राज्य
के
शासक
थे।
मिथिला
राज्य
सूखे
से
ग्रस्त
था
और
इसके
निवारण
के
रूप
में
राजा
जनक
ने
यज्ञ
करने
का
फैसला
किया।
इस
यज्ञ
से
वे
देवताओं
को
प्रसन्न
करना
चाहते
थे।
यज्ञ
के
लिए
जमीन
की
जुताई
आरंभ
की
गई।
जुताई
करते
वक्त
राजा
जनक
का
हल
जमीन
में
फंस
गया।
जमीन
को
खोदने
पर
उन्हें
एक
सन्दूकषी
मिली
जिसके
अंदर
एक
छोटी
बच्ची
थी।
बच्ची
को
देखकर
सभी
आश्चर्यचकित
हो
गए।
राजा
जनक
और
सुनायना
ने
बच्ची
को
अपनी
बेटी
के
रूप
में
पालने
का
फैसला
किया।
बच्ची
के
रोने
पर
वर्षा
होने
लगी
और
मिथिला
का
सूखा
प्रदेशा
हरा-भरा
हो
गया।
क्योंकि देवी सीता भूमि में मिली थी, उन्हें 'भूमि देवी' की बेटी माना जाता है। इसी वजह से, सीता भूमिजा के रूप में भी जानी जाती है। क्योंकि वह राजा जनक की पुत्री थी वह जानकी के नाम से भी जानी जाती है। मिथिला की राजकुमारी के रूप में, उन्हें मैथिली नाम भी दिया गया था। सीता नाम का शाब्दिक अर्थ हल है, और इसी यंत्र के इस्तेमाल से उन्हें पृथ्वी से खोजा गया।
सीता नवमी
भगवान राम और देवी सीता के भक्तों के लिए सीता नवमी का जन्म बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि माता सीता देवी लक्ष्मी का अवतार रूप है, उनकी पूजा देवी लक्ष्मी के भक्तों द्वारा भी की जाती है।
माता सीता पवित्रता, शुद्धता और उर्वरता का प्रतीक हैं। हिंदु धर्म के लोग उन्हें प्रत्येक जीव की मां मानते हैं। आशीर्वाद के रूप में माता सीता अपने भक्तों को धन, स्वास्थ्य, बुद्धि और समृद्धि प्रदान करती हैंं।
महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु के लिए माता सीता की पूजा करते हैं। नवविवाहित जोड़े स्वस्थ संतान की प्राप्ति के लिए देवी से प्रार्थना करते हैं। यदि आप भगवान राम के भक्त हैं तो माता सीता की पूजा आर्चना आपको अपने इष्ट देवता के और करीब ले जाएगी। माता सीता की पूजा करने पर भगवान हनुमान सदा आपकी रक्षा करेंगे।
सीता
नवमी
का
उत्सव
सीता
नवमी
को
बहुत
ही
भक्ति,
प्रेम
और
उत्साह
के
साथ
मनाया
जाता
है।
इस
दिन
माता
सीता
के
साथ
भगवान
राम,
उनके
भाई
लक्ष्मण
और
भगवान
हनुमान
की
भी
पूजा
की
जाती
है।
उत्तर
प्रदेश
में
अयोध्या,
बिहार
में
सीता
समहथ
स्थाल,
आंध्र
प्रदेश
के
भद्रचलम
तथा
तमिलनाडु
के
रामेश्वरम
में
सीता
नवमी
को
बहुत
ही
धुमधाम
से
मनाया
जाता
है।
भगवान राम और माता सीता को समर्पित मंदिरों में आरती तथा महा अभिषेक किया जाता है। इसके अलावा, भगवान राम, माता सीता, भगवान हनुमान और लक्ष्मण की मूर्तियों के साथ रथ यात्रा निकाली जाती है।
इस दिन रामायण का पाठ पढा जाता है। घरों और मंदिरों में सत्संग किये जाते हैं। भजन और कीर्तन भी इसी दिन का हिस्सा हैं।
सीता
नवमी
व्रत
और
पूजा
कैसे
करें
पूजा
आरंभ
करने
के
लिए
सबसे
पहले
चार
स्तंभों
पर
एक
मंडप
बनाएं।
मंडप
में
भगवान
राम,
माता
सीता,
भगवान
हनुमान,
राजा
जनक
और
माता
सुनायना
की
मूर्तियों
को
स्थापित
करें।
मंडप
में
एक
हल
की
प्रतिमा
और
थोडी
मिट्टी
भी
रखें।
पूजा
में
तिल
के
बीज,
जौ
और
चावल
का
उपयोग
किया
जाता
है।
देवी
सीता
की
जीवनकथा
को
पूरी
भक्ति
और
प्रेम
से
पढ़ें।
इस दिन कुछ महिलाएं व्रत भी रखती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं तो अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। नवविवाहित जोड़े खुशहाल जीवन के लिए भगवान राम और देवी सीता की पूजा करते हैं।
व्रत को सफल रूप से निभाने वालों को देवी समर्पण, बलिदान और विनम्रता जैसे गुणों को प्रदान करती हैं। कुछ महिलाएं शिशु की प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को करती हैं।