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कुंडली में इन ग्रहों की स्थिति के कारण महिलाओं का होता है गर्भपात
अबॉर्शन या गर्भपात एक ऐसी स्थिति है जिसमें महिलाएं शारीरिक से ज्यादा मानसिक रुप से टूट जाती है। अगर आप बार बार गर्भपात जैसी समस्या से जूझ रही है तो आपको चाहिए कि डॉक्टर से कंसल्ट करने के अलावा एक बार अपनी कुंडली भी दिखाएं क्योंकि कुंडली में ग्रहों की चाल की वजह से भी महिलाएं गर्भपात का शिकार हो सकती है।
हिंदू धर्म के अनुसार कुंडली का एक मानव जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष गणना और ग्रहों की स्थिति मानव के जीवन के हर पड़ाव के बारे में बताते है। ज्योतिष शास्त्र में मनुष्यों में भी दो वर्ग नर और नारी के श्रेणीकरण पर आधारित है। मतलब ज्योतिष शास्त्र में नर और नारी का स्वास्थय अलग अलग ग्रहों की स्थिति के अनुसार कार्य करते है। शास्त्रों के अनुसार इस समय रतिक्रिया करने से होती है उतम संतान
महिलाओं की कुंडली में पांचवें और आठवें भाव को संतान पक्ष और महिलाओं के स्वास्थय से जोड़कर देखा जाता है। महिलाओं के कुंडली में चंद्रमा के साथ मिल क्रूर ग्रहों के उथल पुथल से महिलाओं को गर्भपात और मिसकैरिज जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। आइए जानते है किन ज्योतिषीय कारणों से महिलाओं को कुंडली में गर्भपात के योग बनते है।
चंद्रमा की स्थिति
स्त्रियों के ज्यादातर रोग पीड़ित चंद्रमा, लग्न, लग्नेश और लग्न के कारक के पीड़ित होने, तथा चंद्रमा पर पाप व क्रूर ग्रहों की दृष्टि, मंगल-शनि युति-दृष्टि, छठे भाव की कमजोरी से जन्म लेते हैं।
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नकरात्क प्रभाव
चंद्रमा स्त्री का प्रतिनिधि ग्रह है। किंतु जिस भी स्त्री का यही चंद्रमा पाप प्रभाव में हो, पक्ष बलहीन हो, द्वादश, अष्टम, अथवा छठे भाव में मौज़ूद हो, तो ऐसे में उसकी संवेदनशीलता का स्तर नकारात्मक रूप से प्रभावित होने लगता है।
इन स्थितियों में होता है गर्भपात
लग्न में चन्द्रमा , दूसरे भाव में शुक्र , बारहवें भाव में शनि बुध तथा पंचम भाव में राहु गए हो तो गर्भपात होगा । पंचम भाव में जिस राशि का अधिपत्य हो और वह भी पाप ग्रह से दृष्ट हो उतने गर्भपात होने की सम्भावना बनी रहेगी रहेगी । पांचवे सूर्य , ग्यारहवें शनि, दूसरे भाव में चन्द्र एवं मंगल गये हो तो गर्भ धारण के चौथे तथा पाँचवे माह में गर्भपात की प्रबल सम्भावना रहती है ।
कुंडली में क्रूर ग्रहों का प्रभाव
ज्योतिष तालिका के अनुसार यदि महिला के कुंडली में चंद्रमा क्रूर व पापी ग्रहों यथा शनि, मंगल, राहु, केतु आदि से पीड़ित हो रहा हो तो स्त्री को पीरियड्स संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे ग्रहीय संयोग मानसिक उत्ताप, चिंता, अवसाद, चिड़चिड़ाहट, क्रोध आदि लक्षण को खुलकर सामने लाते हैं। यदि स्त्री की कुण्डली में शनि और मंगल का संयोग उपस्थित होने के साथ ही उन पर क्रूर व पापी ग्रहों की दृष्टि भी पड़ रही हो, तो अवश्य ही गंभीर रक्त विकार उत्पन्न होता है।
कुंडली में आठवां स्थान
महिला की कुंडली में आठवें स्थान में सूर्य ,शनि गए होतो बंध्या ,आठवें स्थान में सूर्य और मंगल गए हो तो गर्भपात वाली , आठवें स्थान में सूर्य ,गुरु तथा शुक्र गए हो तो मृत प्रजाता ,आठवें स्थान में सूर्य ,चन्द्र तथा बुध गए हो तो काक बंध्या तथा मंगल ,शुक्र और गुरु आठवें गए हो तो गर्भ स्त्रवा महिला होगी ।
कुंडली में पांचवा स्थान
स्त्री की कुण्डली में सबसे महत्वपूर्ण बात पंचम भाव पर पाप और क्रूर ग्रहों की दृष्टि या युति से जुड़ी है। यदि पांचवें स्थान पर सूर्य, शनि, राहु, केतु अथवा मंगल के प्रभाव मौज़ूद हों, तो ऐसी स्थिति में उस स्त्री को गर्भ धारण में समस्या हो सकती है किंतु इससे भी बड़ी बाधा तब उत्पन्न होती है जबकि गर्भ धारण के बाद गर्भपात का भय कायम हो जाए। ऐसा सूर्य की युति एवं शनि, राहु, केतु की पांचवें भाव पर दृष्टि की वजह से होता है।
ग्रहों की स्थिति से होती है ये समस्या
हिस्टिरिया, उन्माद, शारीरिक अशक्तता, स्त्री को ही होने वाले रोग ल्यूकोरिया आदि ज्यादातर ग्रहीय समस्याओं की उपज हैं।