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हिन्दू मंदिरों के पीछे छुपे हैं ये मौजूदा वैज्ञानिक रहस्‍य

By Super
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भारत में रोज सुबह लोग मंदिरों में जाते हुये देखे जा सकते हैं। लोगों का मानना है कि मंदिरों में जाने से उनकी मुराद पूरी होती है। अगर विश्वास की बात करें, तो क्या आप मानते हैं कि मंदिरों में जाने से आपकी मनोकामना पूरी होती है।

इसके पीछे कोई ठोस कारण नहीं है लेकिन विश्वास कहता है कि हाँ, ऐसा होता है। यदि हम आपको कहें कि आपकी मान्यता सही है और इसका वैज्ञानिक पक्ष भी है, तो शायद आपको अच्छा लगेगा।

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हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म का शुरू से ही विज्ञान में विश्वास रहा है। और जहां तक मंदिरों का सवाल है यह बात वहाँ पर भी लागू होती है। आप जानेंगे कि हिन्दू मंदिरों के निर्माण और वास्तुकला के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य है।

इस विज्ञान के बारे में जानकार आप सच में आश्चर्यचकित रह जाएँगे। इसलिए हम आपको हिन्दू मंदिरों के पीछे मौजूद कई वैज्ञानिक तथ्य बता रहे हैं और यह भी बता रहे हैं कि लोग रोज मंदिर क्यों जाते हैं।

 सकारात्मक ऊर्जा

सकारात्मक ऊर्जा

इन मंदिरों का निर्माण ऐसी जगह पर किया गया है जहां पर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की चुम्बकीय और विधुतीय तरंगों से अधिकाधिक सकारात्मक ऊर्जा मिल सके। मुख्य मूर्ति को मंदिर के बीच या मुख्य केंद्र पर स्थापित किया जाता है जिसे कि गर्भगृह या मूलस्थानम कहा जाता है, इस प्रकार मंदिर इस गर्भगृह के चारों ओर ही बना होता है।

सकारात्मक ऊर्जा

सकारात्मक ऊर्जा

यह मूलस्थानम ऐसी जगह है जहां पर पृथ्वी की चुम्बकीय किरणें सबसे ज्यादा पड़ती है। पहले मूर्ति के नीचे तांबे की प्लेट्स भी लगाई जाती थी। ये प्लेट्स पृथ्वी की चुम्बकीय किरणों को अवशोषित कर इन्हें आस-पास के वातावरण में फैला देती हैं। इसलिए जब आप मूर्ति के पास खड़े होते हैं तो ये ऊर्जा आपके शरीर में प्रवेश करती हैं। इस प्रकार आपके शरीर में आवश्यक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

 मूर्ति से परमात्मा की झलक

मूर्ति से परमात्मा की झलक

मूर्ति का मतलब भगवान नहीं है। मूर्ति भगवान की एक प्रतिमूर्ति और देवतुल्य है। यह मनुष्यों को केन्द्रित कर परमात्मा को महसूस करने में मदद करती है। भगवान की पूजा आराधना करते समय व्यक्ति मानसिक प्रार्थना की एक अलग दुनिया में चला जाता है और अंततः उस परमात्मा को महसूस करता है। इस प्रकार यह मूर्ति मनुष्य को केन्द्रित कर परमात्मा को महसूस करने में मदद करती है

 मूर्ति की परिक्रमा

मूर्ति की परिक्रमा

पूजा के बाद हम कम से कम तीन बार मूर्ति के चारों और घूमते हैं जिसे कि परिक्रमा या प्रदक्षिणा कहा जाता है। चूंकि मूर्ति में सकारात्मक ऊर्जा भरी हुई है और जो भी इसके नजदीक आता है यह उसे ऊर्जा प्रदान करती है। इस प्रकार जब आप मूर्ति की परिक्रमा करते हैं तो मूर्ति द्वारा आपको सकारात्मक ऊर्जा प्रदान की जाती है। यह कई बीमारियों को दूर करती है और दिमाग को स्वस्थ रखती है।

 घंटी बजाना

घंटी बजाना

मंदिर की घंटियाँ सामान्य धातु की बनी होती हैं। ये कैडमियम, जस्ता, सीसा, तांबा, निकल, क्रोमियम और मैंगनीज जैसे विभिन्न धातुओं के मिश्रण से बनी होती हैं। इन धातुओं के मिश्रण में भी एक विज्ञान छिपा हुआ है। इन्हें इस तरह से मिलाया जाता है कि घंटी को बजाने पर हर धातु अपनी एक अलग आवाज निकालती है इससे आपके दायें और बाएँ दोनों दिमागों का मिलन होता है। इसलिए जब भी आप घंटी बजाते हैं तो एक तीखी और तेज ध्वनि आती है जो कि कम से कम 7 सेकंड तक रहती है। घंटी की यह गूंज शरीर के सात चिकित्सा केन्द्रों और शरीर के चक्रों को छूती है। इसलिए जब यह घंटी बजती है तो आपका दिमाग एकदम शून्य हो जाता है और आप शांत अवस्था में चले जाते हैं। इस अवस्था में आपका दिमाग एकदम ग्रहणशील और जागरूक हो जाता है।

 मिश्रित प्रसाद

मिश्रित प्रसाद

आपने देखा होगा कि मंदिरों में मूर्तियों को एक मिश्रण से धोकर उसे भक्तों में वितरित किया जाता है जिसे कि चरणामृत कहा जाता है। यह एक साधारण मिश्रण ही होता है। इसमें पवित्र तुलसी, केशर, कपूर, इलायची और लौंग मिली होती हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि इन सबमें एक अच्छा चिकित्सकीय गुण है। जब इनसे मूर्ति को धोया जाता है तो उसमें मौजूद चुम्बकीय विकिरण भी इनमें मिल जाते हैं और इनका चिकित्सकीय गुण और बढ़ा देते हैं। भक्तों को इसकी तीन चम्मच वितरित की जाती है। पानी जहां मैगनेटो थैरेपी का अच्छा स्त्रोत है वहीं लौंग दांतों की रक्षा करती है, केशर और तुलसी सर्दी जुकाम से बचाती हैं, इलायची और कपूर एक प्राकृतिक माउथ फ्रेशनर है।

शंख बजाना

शंख बजाना

हिन्दुत्व में शंख बजाने के पीछे मान्यता है कि इससे पवित्र 'ओम' की ध्वनि निकलती है जो कि पृथ्वी की पहली आवाज थी। शंख की ध्वनि किसी अच्छे काम के शंखनाद (शुरुआत) का प्रतीक है। यह एक पवित्र ध्वनि है जो कि नई ताजगी और नई आशा की प्रतीक है। मंदिर में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा के साथ मिलकर यह भक्तों पर कई अच्छे प्रभाव डालती है।

 ऊर्जा का आदान-प्रदान

ऊर्जा का आदान-प्रदान

जैसा कि जाना जाता है कि ऊर्जा ना तो पैदा की जा सकती है और ना ही खत्म की जा सकती है। यह केवल एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती है। मंदिर हमारे लिए यहीं करते हैं। ये पृथ्वी की सकारात्मक ऊर्जा को लेकर विभिन्न माध्यमों से हमारे शारी में प्रवेश कराते हैं। इसलिए आप दिन में जो ऊर्जा खो देते हैं उसकी प्राप्ति मंदिर में जाकर की जा सकती है। इसलिए मंदिर जाने के पीछे उद्देश्य भगवान को भोग लगाना नहीं है बल्कि अपनी इंद्रियों में ऊर्जा का संचार करना है। इसीलिए पूजा के बाद मंदिरों में कुछ देर बैठने की परंपरा कायम है। इस प्रकार मंदिर में जाना और पूजा आराधना करना सर्वोपरि है लेकिन यदि मंदिर जाकर आप वहाँ कुछ देर बैठते नहीं हैं तो वहाँ जाने का कोई मतलब नहीं रह जाता है।

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English summary

Amazing Science Behind Hindu Temples

The science behind the temples can leave you completely and pleasantly surprised. So, read on to find out about the science behind the Hindu temples.
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