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क्‍या है ऑटोइम्‍यून रोग और क्‍यों जरूरी है इससे बचना

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थकान, जोड़ों में दर्द, स्किन रैशेज़ और पाचन संबंधित परेशानियां आदि ऑटोइम्‍यूनि विकार की निशानी हैं। कई लोगों को ऑटोइम्‍यून विकार की वजह ये इस तरह की दिक्‍कतें आती हैं।

ऑटोइम्‍यून रोग का सबसे सामान्‍य लक्षण है सूजन। इसमें दवा लेने के बावजूद भी पेट की समस्‍याओं और स्किन रैशेज़ से छुटकारा नहीं मिल पाता है।

rare autoimmune diseases

ऑटोइम्‍यून विकार में लुपस, जोग्रेन सिंड्रोम, रह्यूमेटाइड अर्थराइटिस, वस्‍कुलिटिस और एंकिलोसिंग स्‍पॉन्‍डिलाइटिस आदि शामिल हैं।

इसके अलावा टाइप 2 डायबिटीज़, सोरायसिस, मल्‍टीपल स्‍केरोसिस, बोवल सिंड्रोम आदि भी इसमें आते हैं।

महिलाएं होती हैं ज्‍यादा शिकार

डॉक्‍टरों का कहना है कि आजकल ऑटोइम्‍यून बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं और खासतौर पर महिलाएं इसका शिकार हो रही हैं।

पुरुषों की तुलना में महिलाओं के ऑटोइम्‍यून रोगों का शिकार होने की दर 2:1 है। पुरुष 2.7 प्रतिशत ऑटोइम्‍यून रोग से ग्रस्‍त होते हैं जबकि 5.4 प्रतिशम महिलाएं इससे पीडित हैं। महिलाओं में ये रोग प्रजनन की उम्र से शुरु हो जाता है।

ऑटोइम्‍यून रोगों का असर पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर ज्‍यादा पड़ता है। इसका एक कारण महिलाओं के हार्मोंस भी होते हैं। माना कि महिलाएं इस तरह के रोगों की चपेट में ज्‍यादा आती हैं लेकिन ऐसा नहीं है पुरुषों को ऑटोइम्‍यून रोग बिलकुल भी नहीं होते हैं।

डॉक्‍टर की मानें तो लुपस का खतरा पुरुषों की तुलना में महिलाओं में नौ गुना ज्‍यादा रहता है। हार्मोंस और सेक्स क्रोमोजोम से संबंधित मतभेदों के कारण, कम से कम कुछ हिस्सों में यह अंतर संभव हो सकता है। हालांकि, लुपस के बढ़ने में सेक्‍स का अलग होना कितना मायने रखता है, इस बात का पता अभी नहीं चल पाया है।

क्‍या है कारण

इम्‍यून सिस्‍टम डिस्‍ऑर्डर किसी को भी किसी भी उम्र में हो सकता है। ऐसे कई तरह के ऑटोइम्‍यून रोग हैं जिनमें इम्‍यून सिस्‍टम गलती से खुद ही शरीर के अंगों और ऊतकों पर हमला बोल देता है।

जब इम्‍यून सिस्‍टम के साथ कुछ गलत होता है और ये खुद ही अपनी स्‍वस्‍थ कोशिकाओं पर हमला करना शुरु कर देता है तो इसे ऑटोइम्‍यून रिस्‍पॉन्‍स कहा जाता है। शरीर की इम्‍युनिटी सामान्‍य कार्य करने के दौरान कैंसर में तब्‍दील होने वाले कीटाणुओं और नुकसानदायक कोशिकाओं को नष्‍ट करती है।

स्‍टडी में सामने आया है कि आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों की वजह से ऑटोइम्‍यून रोग होते हैं। ऑटोइम्‍यून रोगों के बढ़ने की वजह से ये बात साफ हो गई है कि इसके पीछे का कारण पर्यावरणीय कारकों के साथ-साथ अस्‍वस्‍थ जीवनशैली भी है। दुर्भाग्‍यवश ना केवल तनाव की वजह से ये रोग पैदा होता है बल्कि इस रोग की वजह से भी मरीज़ तनाव में आ जाता है।

हालांकि, ऑटोइम्‍यून रोग के सही और सटीक कारण के बारे में अब तक पता नहीं चल पाया है। इसके बिगड़ने को लेकर कई तरह की थ्‍योरी बताई जाती हैं। इसके कुछ कारणों में पर्यावरणीय कारक, बैक्‍टीरिया या वायरस या केमिकल या ड्रग्‍स आदि शामिल हैं। कई बार इसे आनुवांशिक भी होते देखा गया है।

इसके लक्षण

इस तरह के रोग ज्‍यादातर युवाओं को होते हैं। इसके प्रमुख लक्षणों में जोड़ों में दर्द और सूजन, उंगलियों को मोड़ने में दिक्‍कत आना और चलने में परेशानी होना शामिल है। अगर आप इसका ईलाज नहीं करते हैं तो ये और बड़ी समस्‍या का रूप ले लेती है और शरीर के बाकी अंगों में भी पहुंचने लगती है और जोड़ों तक भी पहुंच जाती है। जैसे कि स्किन रैशेज़, आंखों में जलन और बालों का झड़ना, मुंह में छाले होना आदि। ये सभी बीमारियां बढ़ने पर शरीर के अन्‍य हिस्‍सों को भी प्रभावित करने लगती हैं।

ऐसी किसी बीमारी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में सिरदर्द, बुखार, जोड़ों में दर्द, सांस लेने में दिक्‍कत, छाती में दर्द होना और वजन कम होने जैसे लक्षण नज़र आते हैं। कभी-कभी मरीज़ को थकान, चक्‍कर आना, मुंह में छाले होने और बालों के झड़ने जैसी समस्‍या भी आती है लेकिन अधिकतर लोग डॉक्‍टर से सलाह लेने की बजाय खुद ही इनका ईलाज करने लगते हैं।

डॉक्‍टरों के बीच जागरूकता फैलाने से अब इन बीमारियों का पता जल्‍दी चल जाता है। ये बीमारियों सदियों पुरानी हैं और अब इनका ईलाज करने के लिए डॉक्‍टरों को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। दवाओं और निदान के लिए अब कई तरह के टेस्‍ट उपलब्‍ध हैं।

लक्षणों को हल्‍के में ना लें

ऑटोइम्‍यून रोगों से बचा नहीं जा सकता है लेकिन अगर आप पहले ही इसकी पहचान कर ईलाज शुरु कर दें तो बेहतर होगा। दवाओं के सेवन से इस बीमारी को शरीर के अन्‍य भागों में बढ़ने से रोका जा सकता है। जैसे कि लुपस किडनी तक भी पहुंच सकता है। यहां तक कि लुपस से ग्रस्‍त महिलाओ में किडनी रोग होने का खतरा 60 प्रतिशत रहता है। इसलिए शुरुआत में ही इसके लक्षणों को पहचानना महत्‍वपूर्ण होता है।

लुपस और अन्‍य ऑटोइम्‍यून रोगों के खतरे को कम करने का सबसे अच्‍छा तरीका है नियमित व्‍यायाम और संतुलित आहार। तंबाकू और एल्‍कोहल आदि पीने से बचें। खुद को हाइड्रेट रखें और खूब सारे फल एवं सब्जियों का सेवन करें। पैकेज्‍ड ड्रिंक्‍स और प्रोसेस्‍ड फूड्स से दूर रहें।

ऑटोइम्‍यून प्रोटोकॉल डाइट

ऑटोइम्‍यून प्रोटोकॉल से इम्‍यून सिस्‍टम और गट मुकोसा को बेहतर करने में मदद मिलती है। इससे सूजन को दूर किया जा सकता है।

ऑटोइम्‍यून प्रोटोकॉल यानि की एआईपी डाइट में मांस और मछली (फैक्‍ट्री में बनने वाली नहीं), सब्जियां (टमाटर, मशरूम, शिमला मिर्च और आलू जैसी नहीं), शकरकंद, फल, नारियल का दूध, एवोकैडो, ऑलिव, नारियल तेल, शहद, मैपल सिरप, जडी बूटियां जैसे तुलसी, पुदीना और ऑरेगैनो, चाय और विनेगर जैसे कि एप्‍पल सिडर और बालसेमिक आदि को शामिल कर सकते हैं।

अनाज जैसे कि ओट्स, चावल और गेहूं एवं डेयरी, अंडे, दालें जैसे कि बींस और पीनट्स, सभी तरह की शुगरयुक्‍त चीज़ें, मक्‍खन और घी, सभी तेल (एवोकैडो, नारियल और ऑलिव ऑयल को छोड़कर) और एल्‍कोहल का सेवन नहीं करना चाहिए।

English summary

Signs You Have An Autoimmune Disease

there’s a whole spectrum of autoimmune disorders like lupus, Sjogren’s syndrome, rheumatoid arthritis, vasculitis and ankylosing spondylitis, to name a few.
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