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जेनेटिक होता है थैलेसीमिया, शादी से पहले जरुर कराए ये ब्लड टेस्ट
8 मई को हर साल वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जाता है। इस डे को मनाने का सबसे बड़ा लक्ष्य है लोगों को रक्त संबंधित गंभीर बीमारी थैलेसीमिया के प्रति जागरुक करना। दरअसल, यह एक जेनेटिक बीमारी है जो बच्चों को उनके माता-पिता से मिलती है। इस बीमारी के चलते बच्चों में खून की कमी होने लगती है। आइए जानते हैं क्या है थैलेसीमिया और क्या हैं इसके लक्षण व कैसे कर सकते हैं बचाव।
थैलेसीमिया रक्त संबंधित जेनेटिक बीमारी है। सामान्य तौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रेड ब्लड सेल्स यानी की आरबीसी की संख्या 45 से 50 लाख प्रति घन मिली मीटर होती है। इस बीमारी के दौरान आरबीसी तेजी से नष्ट होने लगते हैं और नए सेल्स बनते नहीं है। सामान्य तौर पर रेड ब्लड सेल्स की औसतन आयु 120 दिन होती है जो घटकर लगभग 10 से 25 दिन ही रह जाती है। इसके कारण शरीर में खून की कमी होने लगती है और धीरे-धीरे व्यक्ति अन्य बीमारियों का भी शिकार होने लगता है।
थैलेसीमिया के लक्षण
यह एक जेनेटिक बीमारी है। इसलिए जन्म के 6 महीने बाद ही बच्चों में ये लक्षण तेजी से दिखने लगते हैं। जैसे कि उनके नाखून और जीभ में पीलेपन की शिकायत। बच्चों की ग्रोथ रुक जाना, वजन ना बढ़ना, कमजोरी और कुपोषण जैसी शिकायतें दिखने लगती हैं। सांस लेने में तकलीफ, थकान रहना, पेट की सूजन, गहरा व गाढ़ा मूत्र जैसी शिकायतें इस बीमारी के लक्षण हैं।
उपचार
सामान्य तौर पर इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को विटामिन, आयरन, सप्लीमेंट्स और संतुलित आहार लेने की सलाह दी जाती है। जबकि गंभीर हालात में खून बदलने, बोनमैरो ट्रांसप्लांट और पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी का सहारा लिया जाता है।
इस बीमारी से बचने के लिए व्यक्ति को कम वसा वाली व हरी पत्तेदारी सब्जियां खानी चाहिए। इसके अलावा आयरन युक्त फूड्स का सेवन, मछली और नॉनवेज चीजों का सेवन, नियमित योग और व्यायाम करना चाहिए।
थैलेसीमिया से बचने के लिए माता-पिता को समय-समय पर ब्लड टेस्ट करवाते रहना चाहिए। इसके अलावा बच्चा होने के बाद उसका भी सही तरीके से ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए। साथ ही प्रेग्नेंसी के चार महीने के बाद भ्रूण का परीक्षण करवाना चाहिए। शादी से पहले लड़का-लड़की का ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए।
इस ब्लड टेस्ट से मालूम चलता है
यह आनुवंशिक रोग है, इसलिए यह बच्चों को तभी होता है, जब माता-पिता में इसके लक्षण हों। थैलेसीमिया माइनर इस बीमारी का शुरुआती स्टेज है। माता-पिता में से किसी एक को यदि थैलेसीमिया माइनर हो, तो बच्चे को थैलेसीमिया माइनर हो सकता है। थैलेसीमिया माइनर का पता आसानी से नहीं चलता है। इसका पता लगाने के लिए मरीज का HPLC ( High-performance liquid chromatography) टेस्ट करना जरूरी होता है।