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जानिये, तीसरे ज्योतिर्लिंग - महाकालेश्वर की कहानी
महाराष्ट्र का उज्जैन शहर एक ख़ास ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व रखता है। महान धार्मिक शहर के कारण ये दुनियाभर के हिंदुओं के दिलों में बसता है।
महाराष्ट्र का उज्जैन शहर एक ख़ास ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व रखता है। महान धार्मिक शहर के कारण ये दुनियाभर के हिंदुओं के दिलों में बसता है।
पुराने समय में, कई राजाओं की राजधानी रहे इस शहर के कई नाम रहे हैं, इसे पहले अवंतिका, अमरावती और इंद्रप्रस्थ जैसे नामों से जाना जाता था। शहर में बहुत से मंदिरों और उनके सोने के गुंबदों के कारण उसे 'स्वर्ण श्रिन्ग' भी कहा जाता है।
यह शहर उन 7 शहरों में से एक है जहां आत्मा मुक्ति या मोक्ष पाती है। इस शहर में कई पवित्र जगह हैं। यहाँ 28 तीर्थ और 7 सागर तीर्थ हैं। कुल मिलाकर, शहर में 30 शिवलिंग हैं और उनमें सबसे महत्वपूर्ण महाकाल ज्योतिर्लिंग हैं।
महाकाल
ज्योतिर्लिंग
कब
स्थापित
हुआ
था
इसका
सही
अंदाजा
नहीं
है,
लेकिन
ऐसा
माना
जाता
है
कि
इसकी
स्थापना
तीसरी
और
चौथी
शताब्दी
ईसा
पूर्व,
उस
समय
के
साहित्यों
में
इसका
वर्णन
है।
वर्तमान
मंदिर
18वीं
शताब्दी
में
बना
था।
श्री
महाकालेश्वर
मंदिर
मंदिर
में
तीन
मंज़िलें
हैं,
हर
मंजिल
पर
शिवलिंग
हैं
जिन्हें
महाकालेश्वर,
ओंकारेश्वर
और
नागचंद्रेश्वर
कहते
हैं।
नागचंद्रेश्वर
लिंग
के
दर्शन
केवल
नाग
पंचमी
को
ही
कर
सकते
हैं।
मंदिर
के
पास
ही
एक
बड़ी
झील
है
यह
कोटी
तीर्थ
कहलाती
है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग बहुत विशाल है और चाँदी जड़ा हुआ है। गर्भ गृह की छत पर भी चाँदी चढ़ाई हुई है। माता पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय की छोटी मूर्ति भी गर्भ गृह में है।यहाँ नन्द दीप नाम से एक दीप भी प्रज्ज्वलित रहता है जो कि कभी नहीं बुझता है। नंदी की सुंदर मैटल की मूर्ति भी हॉल में लगी हुई है।
महाकाल ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कहानियां
भारत
के
अन्य
मंदिरों
की
तरह
महाकाल
ज्योतिर्लिंग
की
भी
कई
कहानियां
हैं।
आइये
देखें
इनमें
से
कुछ....
दूषण राक्षस की कहानी
उज्जैन शहर में एक ब्राह्मण रहता था उसके 4 बेटे थे। ये चारों भगवान शिव के परम भक्त थे। राक्षस दूषण को ब्रह्मा से वरदान मिला था लेकिन वो इस वरदान को दुनिया के अच्छे लोगों को सताने में काम लेता था।
वह राक्षस उज्जैन पहुंचा और ब्राह्मणों को परेशान करना शुरू कर दिया। लेकिन वे पूजा में इतने लीन थे कि उन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। लेकिन वो लगातार परेशान करता रहा और उन पर आक्रमण करता रहा।
इससे
भगवान
शिव
नाराज
हो
गए।
जब
उसने
फिर
से
उन
पर
हमला
किया
तो
धरती
फटी
और
महाकाल
के
रूप
में
भगवान
शिव
प्रकट
हुए।
भगवान
महाकाल
ने
उसे
ये
सब
करने
के
लिए
मना
किया,
लेकिन
उसने
इस
पर
कोई
ध्यान
नहीं
दिया।
इससे भगवान महाकाल रुष्ट हो गए और वहीं दूषण को एक हुंकार के साथ भष्म कर दिया। लेकिन भगवान महाकाल का गुस्सा तब भी शांत नहीं हुआ। भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु और अन्य देवता भी प्रकट हुए और उन्होंने भगवान शिव से महाकाल को शांत करने की प्रार्थना की।