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जिस पेड़ के नीचे शहीद हुए थे आजाद, बाद में ब्रिटिश पुलिस ने उस पेड़ को काट दिया, वजह जान हैरान रह जाएंगे
चन्द्रशेखर आज़ाद एक ऐसी शख्सियत है, जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है, बल्कि आजाद का नाम सुनते ही मूंछों पर ताव देते हुए उनकी रौबदार तस्वीर जेहन में उभर आती है। उन्होंने इसी अंदाज में अपना जीवन जिया और देश की आजादी के नाम खुद को कुर्बान कर दिया। चन्द्रशेखर आज़ाद की मृत्यु इलाहबाद (अब प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में हुई थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पार्क के जिस पेड़ की ओट में आजाद शहीद हुए वहां उनकी पूजा होने लगी। जिसे बाद में अंग्रजों ने कटवा दिया। 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको चंद्रशेखर आजाद का संक्षिप्त परिचय देने के साथ ही उस पेड़ के बारे में बताएंगे, जिसे आजाद के शहीद होने के बाद पूजा जाने लगा और किस वजह से अंग्रेजों ने उस पेड़ को कटवा दिया।
चंद्रशेखर आजाद की संक्षिप्त जीवनी
शहीद चन्द्रशेखर 'आजाद' का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अहम स्वतंत्रता सेनानी थे। शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए थे। सन् 1922 में गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन बंद कर देने के बाद उनकी विचारधारा में परिवर्तन आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ गए और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के साथ काम करते हुए उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया था। इसके बाद वर्ष 1927 में उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया। उन्होंने भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में लाला लाजपत राय की मृत्युस का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया। उन्होंने दिल्ली पहुंचकर असेम्बली बम कांड को भी अंजाम दिया।
बलिदान का दिन
आजा़द अल्फ्रेड पार्क में अपने मित्र सुखदेव राज से चर्चा कर ही रहे थे तभी सीआई का एसएसपी नॉट बाबर वहां आ धमका। फिर उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में पुलिस भी आ गई। दोनों ओर गोलीबारी का दौर चलता रहा। लेकिन फिरंगियों से लड़ते-लड़ते जब आजाद की पिस्तौल में एक गोली ही बची तो उन्होंने अपनी कनपटी पर मार ली और वीरगति को प्राप्त हो गए। काफी देर तक कोई ब्रिटिश अफसर उनके शव के पास ही नहीं गया। फिर पैर पर गोली मारी गई। मौत की पुष्टि करने के बाद ही अफसर वहां गए। पुलिस ने बिना किसी को सूचना दिए चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। यह घटना 27 फ़रवरी 1931 के दिन घटित हुई और सदा के लिए इतिहास में दर्ज हो गई।
ब्रिटिश सरकार ने कटवा दिया पेड़
अल्फ्रेड पार्क में जिस वृक्ष के नीचे चंद्रशेखर आज़ाद ने वीरगति प्राप्त की थी, घटना के दूसरे दिन से बहुत से लोग राष्ट्रीय वीर की स्मृति में उस पेड़ की पूजा करने लगे। पेड़ के तने में बहुत सी गोलियां धंस गईं थी। श्रद्धालु लोगों ने पेड़ के तने पर सिन्दूर पोत दिया और वृक्ष के नीचे धूप-दीप जलाकर फूल चढाने लगे। शीघ्र ही वहां सैंकड़ों की तादाद में पूजा करने वाले पहुंचने लगे। आजाद के बलिदान की खबर फैलती ही समूचे इलाहाबाद में तनाव की स्थिति पैदा हो गई। लोग इतने गुस्सा गए कि शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले होने लगे। आजाद की हत्या से आक्रोशित लोग सड़कों पर उतर आए। अगले दिन आजाद की अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां चुनने के बाद युवकों का एक जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में इतनी ज्यादा भीड़ थी कि इलाहाबाद की मुख्य सड़कों पर जाम लग गया।
ऐसा लग रहा था जैसे इलाहाबाद की जनता के रूप में सारा देश ही उन्हें अंतिम विदाई देने उमड़ पड़ा हो। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे भारी संख्यां में लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। लोग उस स्थान की माटी को कपड़ों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। ब्रिटिश सरकार के लिए तो यह असहनीय था और इसलिए उसने वह पेड़ कटवा दिया, परन्तु जनता तभी से अल्फ्रेड पार्क को आज़ाद पार्क पुकारने लगी और पार्क का यही नाम प्रचलित हो गया।
अब बना दिया म्यूजियम
प्रयागराज में स्थिति इस पार्क में आजाद की कई फुट ऊंची प्रतिमा लगाई गई है। यहां हर रोज हजारों लोग आकर चंद्रशेखर आजाद की शहादत को नमन करते है। इस पार्क के अंदर एक म्यूजियम भी है, जिसमें देश की आजादी में आजाद की भूमिका से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य मौजूद है।