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क्या जानवरों से इंसानों में भी फैल सकता है लंपी वायरस ? संकेत, लक्षण और रोकथाम
लंपी त्वचा रोग (गांठदार त्वचा रोग) एक वायरल बीमारी है जो मवेशियों को प्रभावित कर रही है। इसके साथ ही ये बेहद संक्रामक है। केंद्र के अनुसार, इससे देशभर में अब तक करीब 57,000 मवेशियों की मौत हो चुकी है। वहीं अब तक 15.21 लाख से अधिक मवेशी इससे प्रभावित हैं। ये रोग मवेशियों के पूरे शरीर में फैल सकता है। भारत के आठ से अधिक राज्यों- गुजरात, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान में इस बीमारी से हजारों मवेशियों की मौत हो चुकी है। गुजरात, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली सहित कम से कम सात राज्यों ने मामले दर्ज किए हैं। ये मवेशियों की मौत के अलावा दूध उत्पादन में कमी, विकास में रुकावट, बांझपन और गर्भपात भी इससे हो जाता है।
इसके क्या कारण हैं?
लंपी त्वचा रोग (एलएसडी) मवेशियों और भैंसों का एक वायरल रोग है जो कैप्रीपॉक्स वायरस की वजह से होता है। ये खून पीने वाले कीड़ों, जैसे मक्खियों और मच्छरों की कुछ प्रजातियों, या टिक्स द्वारा स्प्रेड होता है। इसमें बुखार, और त्वचा पर गांठ बनती जाती है। और इससे मृत्यु भी हो सकती है।
क्या जोखिम बढ़ाता है?
इस बीमारी को कोई इलाज अब तक नहीं मिल पाया है। एक बार संक्रमण फैल जाता है रोकना मुश्किल है। इसके अलावा वैक्सीन की कमी से भी खतरा बढ़ सकता है।
इस बीमारी के लक्षण
जो जानवर इस बीमारी से संक्रमित होते हैं उनमें निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं-
1.शरीर पर छाले
2.वजन में कमी
3.अतिरिक्त लार
4.शरीर के कुछ अंगों जैसे आंख और नाक से स्त्राव होना
5.बुखार
6.खाने में परेशानी
क्या इस प्रसार को रोका जा सकता हैं ?
1.मूवमेंट कंट्रोल
2.टीकाकरण
3.प्रबंधन रणनीतियां
4.वध अभियान
लंपी रोग के खिलाफ टीकाकरण की अब तक कम से कम 97 लाख खुराकें दी जा चुकी हैं। वायरल बीमारी से लगभग 80,000 मवेशी ठीक हो चुके हैं। कृषि अनुसंधान निकाय आईसीएआर के दो संस्थानों द्वारा विकसित एलएसडी के लिए एक नई वैक्सीन लंपी-प्रोवैकइंड के कमर्शियल लॉन्च में अगले तीन-चार महीने लगेंगे। स्वैन के अनुसार, बकरी पॉक्स का टीका 100 प्रतिशत प्रभावी है और पहले ही 1.5 करोड़ खुराक प्रभावित राज्यों में प्रशासित किया जा चुका है।
क्या बीमारियां इंसानों को प्रभावित कर सकती हैं?
नहीं, यह रोग जूनोटिक नहीं है, जिसका मतलब है कि इंसानों में वायरल संक्रमण को कॉन्ट्रेक्टेड नहीं कर सकते क्योंकि ये जानवरों से इंसानो में स्थानांतरित नहीं होती है। इसलिए, मवेशियों से खरीदे गए उत्पादों पर इसके प्रभावों के अलावा मामले में ये वृद्धि ज्यादा चिंता का विषय नहीं हो सकती है।