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स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन के बाद गर्भधारण इतना नहीं है आसान, जानिए
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बाद गर्भावस्था अक्सर चिंता का विषय रहा है और इस पर काफी ध्यान दिया गया है। एक अध्ययन से पता चला है कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बाद गर्भवती होने की सफलता कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि रेडिएशन और कीमोथेरेपी और प्रत्यारोपण के दौरान मातृ आयु। तो चलिए आज इस लेख में, हम स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बाद गर्भावस्था के परिणामों पर चर्चा करेंगे-
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट क्या है?
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें स्वस्थ स्टेम कोशिकाओं को डिसफंक्शनल या खराब बोन मैरो के रोगियों को दिया जाता है। यह प्रक्रिया अस्थि मज्जा की कार्यक्षमता में सुधार करने में मदद करती है और या तो कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को मारने की अनुमति देती है या डिसफंक्शन कोशिकाओं की जगह स्वस्थ कोशिकाओं से बदल दिया जाता है।
स्टेम सेल शरीर में वे विशेष कोशिकाएं हैं जो किसी भी जीव में किसी भी प्रकार के कोशिका में विकसित होने की क्षमता रखते हैं और स्वयं को रिन्यू भी कर सकते हैं, जबकि बोन मैरो हड्डियों के सेंटर में एक सॉफ्ट टिश्यू है जो स्टेम सेल के निर्माण और भंडारण में मदद करता है।
स्टेम सेल प्रत्यारोपण हेमैटोलॉजिकल या रक्त संबंधी विकृतियों, प्रतिरक्षा-कमी सिंड्रोम या अन्य बीमारियों वाले रोगियों में जीवित रहने की दर बढ़ा सकता है।
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बाद गर्भावस्था मुश्किल क्यों है?
जिन महिलाओं ने स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया है या करने जा रही हैं, वे अक्सर प्रक्रिया के बाद अपनी प्रजनन क्षमता और गर्भवती होने की संभावनाओं के बारे में चिंतित रहती हैं।
हालांकि ट्रांसप्लांट कुछ कैंसर टाइप्स जैसे ल्यूकेमिया या लिम्फोमा के साथ लोगों में जीवित रहने की दर को बढ़ाने में मदद करता है, लेकिन रोगियों को अक्सर अक्सर प्रजनन संबंधी समस्याओं का अनुभव होता है, जैसे कि अंडाशय के प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचना आदि। प्रीट्रांसप्लांट कंडीशनिंग प्रोटोकॉल द्वारा अंडाशय को नुकसान पहुंच सकता है। इन प्रोटोकॉल में अल्काइलेटिंग एजेंटों या रेडिएशन या या दोनों का उपयोग शामिल है जो शरीर पर टॉक्सिक इफेक्ट डालते हैं।
इसके अलावा, भले ही एक महिला इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन द्वारा नेचुरली या मकैनिकली तरीकों से गर्भवती होती है, लेकिन बच्चे के कम जन्म के वजन, समय से पहले गर्भपात या अन्य गर्भावस्था जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।
क्या नुकसान को रिवर्स किया जा सकता है?
महिलाओं को स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के कारण होने वाले नुकसान उन्हें स्थायी रूप से बांझ बना सकते हैं, जबकि अन्य अपनी प्रजनन क्षमता को पुनः प्राप्त कर सकती हैं। प्रजनन क्षमता का पुनःप्राप्ति कई कारकों पर निर्भर करता है जैसेः
• प्राथमिक उपचार के समय आयु
• रेडिएशन और अल्काइलेटिंग एजेंटों के साथ साइकल की संख्या।
• अध्ययनों का कहना है कि उपचार के लिए एकल विधि के उपयोग की तुलना में दोनों विधियों का उपयोग अर्थात् एल्काइलेटिंग एजेंट और रेडिएशन, महिलाओं की प्रजनन क्षमता को अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं।
• इसके अलावा, जिन महिलाओं की उम्र 25 से कम है और जिनके पूरे शरीर में इम्युनोसप्रेसिव थेरेपी के दौरान बॉडी इरेडीएशन नहीं हुआ, ऐसी करीबन 79 प्रतिशत महिलाओं में रिकवरी की दर अधिक है। वहीं जिन महिलाओं की उम्र अधिक थी और जिनके पूरे शरीर में टोटल बॉडी में इरेडीएशन हुआ, उन्हें रिकवर होने में काफी समस्या हुई।
केस स्टडीज
यहाँ कुछ केस स्टडीज हैं जिनमें उन महिलाओं के बारे में बात करेंगे जिन्होंने स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया और वह गर्भावती भी हुई।
केस 1: 22 वर्षीय बांझ महिला स्टेज III हॉजकिन की बीमारी से ग्रस्त थी। वह कीमोथेरेपी के छह चक्रों से गुजर चुकी है, जिसके बाद स्टेम सेल प्रत्यारोपण किया गया है।
परिणामः उसने दो साल के रिप्लेसमेंट थेरेपी के बाद हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) पर विचार किया और एक स्वस्थ लड़के को योनि से प्रसव कराया।
केस 2: 28 वर्षीय बांझ महिला को स्टेज हॉजकिन की बीमारी से ग्रस्त था। स्टेम सेल प्रत्यारोपण के बाद एबीवीडी (एड्रीमाइसिन, ब्लेमाइसिन, वेलबान और डीटीआईसी) के छह चक्रों के साथ उनका इलाज हुआ है।
परिणामः उसे तीन महीने के लिए एचआरटी पर रखा गया था और छह महीने के बाद गर्भ धारण किया गया और योनि से एक बच्ची को जन्म दिया।
केस 3: एक 30 वर्षीय महिला को चरण III स्तन कार्सिनोमा का पता चला। वह कीमोथेरेपी के पांच चक्रों से गुजरी, जिसके बाद स्टेम सेल प्रत्यारोपण किया गया।
परिणाम: प्रत्यारोपण के डेढ़ साल बाद मरीज ने कंसीव किया। हालांकि, थेरेपी के कुछ संभावित प्रतिकूल प्रभावों के कारण, पहली तिमाही में गर्भावस्था का गर्भपात टेमोक्सीफेन के प्रभाव के कारण हुआ।
केस 4: 41 वर्षीय महिला को डक्टल कार्सिनोमा का पता चला था। उसका उपचार चार चक्रों कीमोथेरेपी के साथ किया गया, उसके बाद बोन मैरो प्रत्यारोपण किया गया।
परिणाम: 16 महीनों के बाद, महिला ने गर्भ धारण किया, हालांकि, गर्भधारण को टेमोक्सीफेन के प्रभाव के कारण दूसरी तिमाही में अबॉर्ट कर दिया गया था।
निष्कर्ष
जो महिलाएं फुल बॉडी इरैडीऐशन से गुजरती हैं, उन्हें हाई रिस्क ग्रुप के रूप में माना जाना चाहिए क्योंकि उन महिलाओं में गर्भावस्था की संभावना काफी कम है। साथ ही, स्टेम सेल से उपचारित महिलाओं में गर्भपात की संभावना अधिक होती है।
वहीं कई अध्ययनों से यह पता चलता है कि अलकाइलेटिंग एजेंटों की कम खुराक के साथ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति को विकसित करने से प्रजनन क्षमता को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है या आसानी से उलटा किया जा सकता है।
इस तरह से, जो महिलाएं स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बाद गर्भवती होने की इच्छा रखती हैं, वे सफलतापूर्वक ऐसा कर सकती हैं कि बिना किसी जटिलता के या mature oocyte cryopreservation पर खर्च किए बिना, यह एक ऐसी विधि है, जिसमें अंडाशय से एग्स को हार्वेस्ट, फ्रोजन व स्टोर किया जाता है ताकि बाद में उन्हें इस्तेमाल किया जा सके।