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ईद-उल-अजहा 2020: जामा मस्जिद के शाही इमाम के मुताबिक इस तारीख को मनाई जाएगी बकरीद
ईद उल अजहा (बकरीद) मुसलमानों के मुख्य त्योहारों में से एक है। ईद-अल-फितर यानी मीठी ईद मनाने के तकरीबन दो महीने बाद बकरीद मनायी जाती है। यह पर्व इस्लाम में बहुत महत्व रखता है। बकरीद को बड़ी ईद, बकरा ईद, ईद-उल-अजहा और ईद-उल-जुहा के नाम से भी जाना जाता है। बकरीद का यह पर्व कुर्बानी के दिन के तौर पर मनाया जाता है। इस्लाम में इस खास दिन पर अल्लाह के नाम पर कुर्बानी देने की रिवायत है।
बकरीद मनाने की तारीख
रमजान का पाक महीना खत्म होने के तकरीबन 70 दिनों बाद बकरीद मनाया जाता है। इस्लामिक चंद्र कैलेंडर के बारहवें महीने जु-अल-हज्जा की पहली तारीख को चांद नजर आ जाता है, इसलिए इस महीने के दसवें दिन ईद-उल-अजहा का पर्व मनाने की परंपरा है।
वहीं जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी जानकारी दे चुके हैं कि इस साल ईद-उल-अजहा का पर्व 1 अगस्त 2020 को मनाया जाएगा।
कैसे मनाया जाता है बकरीद का पर्व?
बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करके अल्लाह की इबादत करते हैं। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इस मौके पर वो हजरत इब्राहिम की दी कुर्बानी को याद करते हैं। कुर्बानी के बाद बकरे के गोश्त के तीन हिस्से किये जाते हैं। एक हिस्सा परिवार के लिए, दूसरा हिस्सा दोस्त तथा रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा समाज के जरूरतमंद लोगों के लिए निकाला जाता है।
बकरीद के साथ जुड़ी प्रचलित कथा
पैगंबर हजरत इब्राहिम के साथ ही इस्लाम धर्म में कुर्बानी देने की परंपर शुरु हुई है। दरअसल प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक इब्राहिम अलैय सलाम को कोई संतान नहीं थी। अल्लाह से काफी मिन्नतों के बाद उन्हें एक संतान हुई और उसका नाम उन्होंने इस्माइल रखा। इब्राहिम अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे। माना जाता है कि एक रात अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। उन्होंने एक-एक कर अपने सभी प्यारे जानवरों की कुर्बानी दे दी, लेकिन सपने में एक बार फिर अल्लाह से उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का आदेश मिला।
इब्राहिम को अपना बेटा सबसे ज्यादा प्यारा था। अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए वे अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देते समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली और कुर्बानी के बाद जब आंखे खोली तो उनका बेटा जीवित था। बताया जाता है कि अल्लाह इब्राहिम की निष्ठा से बेहद खुश हुए और उनके बेटे की जगह कुर्बानी को बकरे में बदल दिया। उसी समय से बकरीद पर कुर्बानी देने की यह रिवायत चली आ रही है।