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बुरे वक़्त में कैसे करें अपनों और गैरों की पहचान, जानिए चाणक्य से
क्या आपने कभी अपने नौकरों पर संदेह किया है, क्या आप अपने किसी रिश्तेदार पर ज़रुरत से ज़्यादा भरोसा करते हैं, क्या आप यह जानना चाहते हैं कि आपका जीवनसाथी आपके प्रति कितना ईमानदार और सहयोगी है। हो सकता है जैसा आपको दिखता है वास्तव में वो सत्य न हो। किसी गलत इंसान पर भरोसा करने से जब विश्वास टूटता है तो फिर दोबारा किसी पर भरोसा करना बेहद मुश्किल हो जाता है।
पर यहां सवाल यह उठता है कि आखिर इस बात का पता कैसे लगाया जाए कि कौन भरोसे के लायक है और कौन नहीं। अकसर हम यह सुनते है कि समय सब कुछ बता देता है, हम समय के अनुसार यह जान सकते हैं कि कौन हमारा अपना है और कौन पराया। साथ ही कौन हमारे प्रति कितना वफादार है और कौन नहीं। जी हाँ यह बिल्कुल सत्य है समय एकमात्र ऐसी परीक्षा है जो इस बात का खुलासा करती है कि हमारे नौकर कितने अच्छे हैं, हमारे रिश्तेदार कितने मददगार है और हमारा जीवनसाथी कितना सहयोगी है।
बुरा वक्त हमें ढेर सारे दुःख देता है लेकिन हमें बहुत कुछ सीखा देता है। इस दौरान हमें अपनी गलतियों का एहसास तो होता ही है साथ ही हमें यह भी पता चल जाता है कि असलियत में कौन हमारा अपना है।
इसी बात की तह तक जाने के लिए महान राजनीतिज्ञ चाणक्य ने कुछ सरल उपाय बताये हैं। चाणक्य का मानना था कि अपने नौकर की परीक्षा तब लें जब आप आस पास न हो, अपने रिश्तेदारों को तब परखें जब आप किसी विपत्ति में हो, वहीं अपने जीवनसाथी की परीक्षा तब लें जब बुरे दौर से गुज़र रहे हों।
नौकर को परखें
जब आप घर पर नहीं होते हैं तो ऐसे में आपका नौकर बहुत ही सहज महसूस करता है। वह किसी भी किस्म का दबाव नहीं महसूस करता। यही सबसे सही समय होता है जब हम उनकी ईमानदारी की परीक्षा ले सकते हैं। हो सकता है घर पर मालिक के न होने का वह पूरा फायदा उठाये यानी मेज़ पर रखे हुए पैसे चुरा ले या फिर कोई दूसरा कीमती सामान गायब कर दे। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वह पैसों और दूसरी कीमती चीज़ों को सही जगह पर सुरक्षित रख दे और आपके लौटने पर सारी चीज़ें आपको सौंप दे और सही ढंग से रखने को कहे।
कोई भी परिस्थिति हो ऐसे में आप यह जान सकते हैं कि आखिर वह कितना वफादार है। वो व्यक्ति जिन पर आप छोटी छोटी चीज़ों को लेकर भी भरोसा नहीं करते वे बिल्कुल भी आपके विश्वास के लायक नहीं होते। अगर वो इंसान आज थोड़े से पैसों की चोरी बड़े ही आसानी से कर लेता है तो ज़रा सोचिये कि कल वो कोई बड़ी चोरी कितने आराम से कर सकता है। इसलिए इस तरह के मामलों में आपको सावधान रहने की ज़रुरत है और ऐसे लोगों को सही तरीक़े से ज़रूर परख लें तभी इन पर भरोसा करें।
विपत्ति में होती है रिश्तेदारों की पहचान
जब आप किसी आर्थिक समस्या से गुज़र रहे होते हैं तो ऐसे में ज़ाहिर सी बात है कि आपको मदद की ज़रुरत पड़ती है और आपके दिमाग में सबसे पहले आपके रिश्तेदारों का ख्याल आता है। इस तरह के बुरे वक़्त में हम यह नहीं सोच पाते कि क्या हमारे ऐसा करने से रिश्ते बिगड़ेंगे या फिर हमारे आत्म सम्मान को चोट पहुंचेगी। उस समय हमें जो ठीक लगता है हम वही करते हैं। हालांकि ऐसा करना हमारे बड़ों की नज़र में गलत होता है क्योंकि उनका मानना है कि इससे रिश्तों में खटास आती है और सही मायनों में यह सत्य है।
लेकिन चाणक्य के अनुसार परेशानी के समय ही हम अपने रिश्तेदारों को सही ढंग से परख सकते हैं। उनका मानना था कि ऐसी स्थिति में दो बातों की परख हो जाएगी एक तो आपके रिश्तेदार आपके दुःख को समझकर फ़ौरन आपकी मदद करेंगे इससे आप यह जान पाएंगे कि वे कितने भरोसे के लायक है और दूसरी बात वे कोई बहाना बनाकर टाल देंगे और मदद से इंकार कर देंगे। इससे आपको यह पता चल जाएगा कि आप गलत रिश्ता निभा रहे थे।
मतलबी और स्वार्थी लोग आपको परेशानी में देख आपसे दूरियां बनाने की कोशिश करेंगे। वहीं जो लोग सच में आपसे प्यार करते हैं और आपकी परवाह करते हैं वो किसी भी तरह से आपको मुसीबत से बाहर निकालने की कोशिश करेंगे। परिवर्तन स्थिर है। समय के साथ आपकी सारी परेशानियां भी दूर हो जाएंगी ख़ास तौर पर आर्थिक समस्या। लेकिन गलत रिश्ते को निभाना आपको ऐसी तकलीफ दे सकता है जिसका दर्द शायद आपको सारी उम्र सहना पड़े। इसलिए इससे पहले कि बहुत देर न हो जाए बेहतर होगा आप अपने रिश्तों की पहचान भली भांति कर लें ताकि आप यह जान सकें कि उनमें से कौन से रिश्ते निभाने लायक हैं और कौन से नहीं।
अतः चाणक्य के अनुसार ज़रुरत के समय हर किसी को अपने रिश्तेदारों की परख ज़रूर कर लेनी चाहिए।
बुरे वक़्त में जीवनसाथी की परख
एक कहावत के अनुसार बदकिस्मत पति का साथ उसकी पत्नी भी नहीं देती। जब एक पति अपना सब कुछ खो चुका होता है तो एक मतलबी पत्नी उसे पैसों की तंगी के कारण कोसने लगती है। अपने तानों से नैतिक रूप से अपने पति को कमज़ोर कर देती है या फिर वह सोचने लगती है कि अब उसका गुज़ारा उसके पति के साथ नहीं है।
चाणक्य के अनुसार कोई भी पतिव्रता और दृढ़ संकल्पों वाली पत्नी अपने पति का साथ बुरे वक़्त में नहीं छोड़ेगी चाहे जीवन में कितने उतार चढ़ाव आए वह हर परिस्थिति में अपने पति का सहयोग करेगी। एक कथा के अनुसार जब महान संत और कवि तुलसी दास की पत्नी ने उन्हें उनकी बेरोज़गारी पर इस कदर ताने मारे कि उन्होंने अपनी पत्नी से अलग होने का फैसला ले लिया और खुद को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर दिया। तुलसी दास जी को इस बात का एहसास हो गया था कि उनके इस बुरे दौर में उनकी पत्नी से उन्हें किसी भी प्रकार का कोई सहयोग नहीं मिलेगा केवल भगवान ही हैं जो उन्हें बिना किसी चीज़ के बदले में उन्हें प्रेम देंगे।
तुलसी दास जी के बुरे वक़्त ने उन्हें एक बहुत बड़ा सबक सीखा दिया जिससे उनके जीवन को एक नयी दिशा मिली और आज वे पूरी दुनिया में मशहूर हैं।