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महावीर जयंती 2023: जानें मोक्ष पाने वाले भगवान महावीर के सिद्धांत
जैन समुदाय का सबसे प्रमुख पर्व है महावीर जयंती, जो इस साल 4 अप्रैल को मनाया जाएगा। भगवान महावीर का जन्म दिवस चैत्र माह की शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है।
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर रहे भगवान महावीर स्वामी ने दुनिया को सत्य और अहिंसा का पैगाम दिया। एक समृद्ध और राज परिवार में जन्म लेने के बावजूद वर्धमान महावीर ने सभी सुख सुविधाएं और धन संपत्ति का त्याग करके युवा अवस्था में ही दुनियाभर के लोगों को सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखाया।
महावीर जयंती पर होती है ये गतिविधियां
महावीर जयंती के दिन जैन धर्म का अनुसरण करने वाले लोगों को अलग अलग गतिविधियों में हिस्सा लेने का मौका मिलता है। ये उन्हें अपने परिवार और साथ ही भगवान महावीर के करीब लाता है। इस दिन भक्त भगवान महावीर की प्रतिमा को शुद्ध जल और खुशबूदार तेल से धोते हैं। ये क्रिया शुद्धता का प्रतीक मानी जाती है। दरअसल ये रोजाना पूजी जाने वाली धार्मिक प्रतिमाओं को धोने के व्यवहारिक उद्देश्यों को भी पूरा करता है। जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भगवान महावीर की प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है। इस दिन जैन भिक्षु महावीर जी की प्रतिमा को लेकर हर जगह घूमते हैं और उनके बताए संदेश को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
भगवान महावीर ने बताए पांच सिद्धांत
भगवान महावीर ने मोक्ष की प्राप्ति के बाद पांच सिद्धांतों के बारे में बताया। उन्होंने खुद उसका पालन किया और उनके जाने के बाद उनके अनुयायी महावीर जी के पांच सिद्धांत लोगों तक पहुंचा रहे हैं।
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पहला सिद्धांत- अहिंसा
इस सिद्धांत के मुताबिक चाहे कोई भी परिस्थिति हो जैनियों को सदैव हिंसा से दूर रहना चाहिए। किसी को भी कष्ट पहुंचाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।
दूसरा सिद्धांत- सत्य
भगवान महावीर कहते हैं कि हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान व्यक्ति सत्य की छत्रछाया में रहता है, वह मृत्यु को भी तैरकर पार कर जाता है। मनुष्य को हमेशा सत्य बोलना चाहिए।
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तीसरा सिद्धांत- अस्तेय (चोरी ना करना)
इस सिद्धांत का पालन करने वाला व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में अपने मन के मुताबिक वस्तु ग्रहण नहीं करता है। इसमें व्यक्ति संयमित रहता है और वही चीजें ग्रहण कर पाता है जो उन्हें दी जाती है।
चौथा सिद्धांत- ब्रह्मचर्य
ये सिद्धांत जैनों के पवित्रता के गुणों का प्रदर्शन करता है। इस सिद्धांत के तहत वो किसी भी तरह की कामुक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेते हैं।
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पांचवा सिद्धांत- अपरिग्रह (बस आवश्यकता जितना ही दान लेना)
ये सभी चारों सिद्धांतों को जोड़ती है। इन सिद्धांतों का पालन करने वाले लोगों की चेतना को जगाती है और सांसारिक तथा भोग की वस्तुओं का त्याग करने की शिक्षा देती है।