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क्यूं मनाते हैं हम मकर संक्रान्ति
साल का पहला त्योहार आ चुका है। इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाएगा। मुझे त्योहार अच्छे लगते हैं तथा मुझे यह त्योहार भी अच्छा लगता है परंतु बहुत से लोग इस त्योहार को मनाने का कारण नहीं जानते। आज हम आपको बताएँगे कि यह त्योहार क्यों मनाया जाता है तथा पूरे देश में यह त्योहार कैसे मनाया जाता है। पढ़ें:
मकर संक्रांति हिन्दुओं के पवित्र त्योहारों में से एक है तथा भारत के लगभग सभी भागों में यह जनवरी के तीसरे सप्ताह में मनाया जाता है। यह फसल का त्योहार है तथा इसे विभिन्न सांस्कृतिक रूपों में बहुत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति एक ऐसा त्योहार है जो प्रतिवर्ष एक ही तारीख 14 जनवरी को मनाया जाता है परन्तु कभी कभी यह 13 जनवरी या 15 जनवरी को भी मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का त्योहार संक्रमणकालीन चरण माना जाता है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति स्वयं को आत्मप्रकाशित करने का प्रतीक है तथा इसे कृतज्ञता प्रकट करने के दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
देश-विदेश में मशहूर है गया का तिलकुट
मकर संक्रांति मनाने के पीछे कई ज्योतिष संबंधी तथा पौराणिक महत्व है:
ज्योतिष
संबंधी
महत्व:
मकर
संक्रांति
त्योहार
का
महत्व
इसके
नाम
में
ही
छुपा
हुआ
है।
मकर
का
अर्थ
है
मकर
राशि
और
संक्रांति
का
अर्थ
है
संक्रमण।
इस
दिन
सूर्य
एक
राशि
से
दूसरी
राशि
में
प्रवेश
करता
है।
बारह
महीने
बारह
राशियों
के
लिए
हैं।
सूर्य
के
सभी
संक्रमणों
में
से
यह
संक्रमण
जब
सूर्य
धनु
राशि
से
मकर
राशि
में
में
प्रवेश
करते
हैं,
सबसे
अधिक
महत्वपूर्ण
माना
जाता
है।
इस
दिन
को
पवित्र
माना
जाता
है
तथा
इस
दिन
से
छह
महीने
के
उत्तरायण
का
प्रारंभ
होता
है।
ऐसा भी माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन से दिन थोड़े गर्म और थोड़े बड़े होने लगते हैं तथा फिर धीरे धीरे ठण्ड कम होने लगती है।
पौराणिक महत्व:
1. पुरानों के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के घर आते हैं जो मकर राशि के घर धनु का स्वामी है।
2. पिता और पुत्र दोनों में कभी नहीं बनती परन्तु फिर भी मतभेदों के बावजूद पिता सूर्य पुत्र शनि के घर जाते हैं और वहां एक महीना रहते हैं।
3. मकर संक्रांति के दिन से देवताओं के दिन प्रारंभ होते हैं। राजस्थान में एक शब्द “मलमास” का प्रयोग किया जाता है, एक ऐसा महीना जब कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते। मकर संक्रांति का दिन मलमास की समाप्ति का प्रतीक है।
4. मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने नकारात्मक शक्तियों “असुरों” को खत्म किया था। भगवान विष्णु ने असुरों के सिरों को मंदार पर्वत के नीचे दफनाया था। यह दिन नकारात्मक शक्तियों की समाप्ति और नए नैतिक जीवन के प्रारंभ का दिन है।
5. महाभारत में भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था तथा उन्होंने मकर संक्रांति के दिन प्राण त्यागने का निर्णय किया। वे मकर संक्रांति के दिन तक बाणों शैय्या पर लेटे रहे तथा उनकी आत्मा ने इसी दिन उनके शरीर को छोड़ा था। ऐसा माना जाता है कि वे लोग जिनकी मृत्यु उत्तरायण के दौरान होती है उन्हें मुक्ति मिलती है अर्थात वे स्थानान्तरगमन के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।