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नवरात्रि 2018: जानिए सौभाग्य की देवी महागौरी की पूजा का महत्व
देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा अगर सच्चे मन से की जाए तो अवश्य ही लाभदायक फल मिलता है और सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। हर पूजा और व्रत का अपना एक अलग ही महत्व होता है ठीक उसी प्रकार पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गौरी की उपासना मुख्यत: मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए की जाती है।
रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि देवी सीता ने प्रभु श्री राम को पति के रूप में पाने की कामना करते हुए माता गौरी की पूजा अर्चना की थी। इसके अलावा देवी गौरी के दूसरे रूप पार्वती जी ने भी शिव जी को पाने के लिए यह पूजा की थी।
इतना ही नहीं माता गौरी की पूजा करने से दांपत्य जीवन की सभी बाधाएं दूर होतीं और घर में धन धान्य बढ़ता है। कहते है माता अपने इस रूप में आठ वर्ष की हैं, इसलिए नवरात्रि की अष्टमी को कन्या पूजन की परंपरा है।
आइए
जानते
है
क्या
है
महागौरी
की
कथा
और
इनका
महत्व।
जब
महागौरी
ने
भोलेनाथ
के
लिए
कठोर
तप
किया
देवी
दुर्गा
के
नौ
रूपं
में
से
आठवां
रूप
महागौरी
का
है।
शिवपुराण
के
अनुसार
जब
माता
केवल
आठ
वर्ष
की
थी
तो
उन्हें
अपने
पूर्व
जन्म
की
घटनाओं
का
आभास
हो
गया
था
और
आठ
वर्ष
की
उम्र
में
ही
उन्होंने
शिवजी
को
पति
के
रूप
में
पाने
के
लिए
तपस्या
करनी
शुरू
कर
दी
थी।
कहतें
है
माता
की
तपस्या
इतनी
कठोर
थी
की
इनका
पूरा
शरीर
काला
पड़
गया
था।
महागौरी
की
उपासना
से
भोलेनाथ
अत्यधिक
प्रसन्न
हुए
और
देवी
को
पत्नी
के
रूप
में
स्वीकार
किया।
तत्पश्चात
शिव
जी
ने
माता
के
शरीर
को
गंगा-जल
से
धोया
और
तब
देवी
विद्युत
के
समान
अत्यंत
कांतिमान
गौर
वर्ण
की
हो
गयीं
तथा
से
इनका
नाम
गौरी
पड़ा।
महागौरी
का
स्वरूप
माता
का
यह
रूप
अत्यंत
दिव्य
है।
अपने
इस
चतुर्भुजा
रूप
में
देवी
करूणामयी,
स्नेहमयी,
शांत
और
मृदुल
दिखती
हैं
इनके
एक
हाथ
में
त्रिशूल
है
तो
दूसरे
हाथ
में
डमरू
है
तो
तीसरा
हाथ
वरमुद्रा
में
हैं
और
चौथा
हाथ
एक
गृहस्थ
महिला
की
शक्ति
को
दर्शाता
हुआ
है।
माता
को
सफ़ेद
रंग
अत्यंत
प्रिय
है
इनके
समस्त
आभूषण,
वस्त्र
आदि
भी
श्वेत
हैं।
ये
सफेद
वृषभ
यानी
बैल
पर
सवार
रहती
हैं।ज्योतिष
में
इनका
संबंध
शुक्र
ग्रह
से
माना
जाता
है।
कहते
है
माता
को
संगीत
से
अत्यधिक
प्रेम
है
।
ऐसे
करें
महागौरी
की
पूजा
किसी
भी
पूजा
को
अगर
विधिपूर्वक
की
जाए
तो
उसका
मनचाहा
फल
अवश्य
ही
प्राप्त
होता
है।
ठीक
उसी
प्रकार
महागौरी
की
पूजा
करते
वक़्त
भी
कुछ
ख़ास
बातों
का
ध्यान
रखना
चाहिए।
माता
की
पूजा
गुलाबी
रंग
के
वस्त्र
में
करना
अत्यंत
शुभ
माना
जाता
है।
सबसे
पहले
गंगा
जल
से
शुद्धिकरण
करके
देवी
मां
महागौरी
की
प्रतिमा
या
तस्वीर
लकड़ी
के
चौकी
पर
स्थापित
करें।
इसके
बाद
चौकी
पर
श्रीगणेश,
वरुण,
नवग्रह,
की
स्थापना
करें।
मां
को
सफेद
या
पीले
फूल
चढ़ाएं
और
दीपक
जलाएं।
व्रत-पूजन
का
संकल्प
लें
और
माता
के
मंत्रों
का
जाप
करें।इस
दिन
माता
दुर्गा
को
नारियल
का
भोग
लगाएं
और
नारियल
का
दान
भी
करें।
साथ
ही
सुहागन
स्त्रियाँ
माता
को
लाल
चुनरी
चढ़ाएं
इससे
माता
प्रसन्न
होती
है
और
अखंडसौभाग्य
का
आशीर्वाद
प्रदान
करती
है।
इसके अलावा माता की साधना करने का विशेष समय रात को होता है।
महागौरी
की
पूजा
से
मिलती
है
सभी
रोगों
से
मुक्ति
कहते
है
देवी
दुर्गा
के
इस
स्वरूप
की
पूजा
करने
से
सभी
रोगों
से
मुक्ति
मिल
जाती
है
खास
तौर
पर
मधुमेह
और
नेत्र
संबंधित
बीमारियों
से
छुटकारा
मिल
जाता
है।
इस
मंत्र
से
होतीं
है
माता
प्रसन्न
श्वेते
वृषे
समारुढा
श्वेताम्बरधरा
शुचिः
|
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ||
महागौरी को मंगला के रूप में भी जाना जाता है कहते है भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को श्रवण मास अत्यधिक पसंद है, इसलिए श्रवण माह में मंगलवार के दिन माता गौरी की पूजा और व्रत किया जाता है।