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क्या आपका बच्चा भी नींद में ही रोने लगता है?
कोई भी मां बाप अपने शिशु को रोता हुआ नहीं देख सकता है। खासकर रात के समय जब शिशु नींद में रोते हैं। लेकिन आपको बता दें कि मई माह में जनरल पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि बच्चे का रोना वास्तव में अच्छा हेाता है। हालांकि कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को जोर जोर से रोते हुए नहीं देख सकते। उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं आता कि उनके बच्चे रो-रोकर थक जाएं। लेकिन अध्ययन के अनुसार रोने से बच्चे पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता बल्कि इससे उन्हें अच्छी नींद आ सकती है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, यह अध्ययन उन माता-पिता के लिए किसी वरदान की तरह होगा, जो अपने बच्चे के रात को रोने की वजह से पूरी नींद नहीं ले पाते। हालांकि अभी यह अध्ययन छोटे से समूह पर किया गया है। ये शिक्षा के स्तर पर और आय के स्तर पर काफी ऊंचे वर्ग से संबंध रखते हैं। इनका मानना है कि इस क्षेत्र में अभी और भी अध्ययन होने की आवश्यकता है। इसके साथ ही अन्य वर्ग समूह को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए।
6 से 16 माह के बच्चों को शोध में किया शामिल
शोधकर्ताओं ने ऐसे 6 से 16 माह के बच्चों को शामिल किया जिन्हें रात को सोने में दिक्कत आती थी। इन्हें तीन हिस्सों में बांटा गया। एक समूह में माता पिता ने अपने बच्चों के रोने पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं की। इसके बजाय बच्चे को सहज होने के लिए समय दिया। इस दौरान उन्होंने ना तो बच्चे को गोद लिया और ना ही कमरे की लाइट जलाई। इसके बावजूद अगर बच्चा रोता है तो अभिभावक तब तक इंतजार करते हैं जब तक कि बच्चा सो नहीं जाता।
जबकि दूसरे समूह में माता पिता से कहा गया कि अगर बच्चे को रात में सुलाने में समस्या हुई तो अगली रात से उन्हें देर से सुलाएं। तीसरे और आखिरी समूह ने नियंत्रण समूह के रूप में काम किया, जहां उन्हें किसी बच्चे को सुलाने से संबंधित किसी तरह के कोई निर्देश नहीं दिए गए थे। मतलब यह कि उन्होंने अपनी मर्जी के अनुसार बच्चे को सुलाने की कोशिश की।
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बच्चों की लार से पता किया गया स्ट्रेस लेवल
पहले दो तरीकों में अपवाद है क्योंकि बच्चे का बहुत जोर-जोर से रोना बच्चे और पैरेंट्स, दोनों के लिए तनावपूर्ण होता है। दरअसल रोने से बच्चे में स्ट्रेस हार्मोन कार्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है। शोधकर्ता बच्चे की लार से स्ट्रेस हार्मोन के स्तर का विश्लेषण करते हैं। इसके लिए रूई की फाहों की मदद लेते हैं। नमूने दिन में और सुबह के समय लिए गए थे।
बच्चों में तनाव?
तीन महीने के समय अंतराल और पहले समूह के 14 बच्चों पर हुए अध्ययन से पता चला कि जिन बच्चों को रोता हुआ छोड दिया गया ओर दूसरे समूह के 15 बच्चों को अगली रात देर से सुलाया गया, वे तीसरे समूह के बच्चे की तुलना में जल्दी सो गए। जबकि पहले समूह के बच्चे तीसरे समूह के बच्चों की तुलना में कम बार जगे।
परिणाम यह भी बताते हैं कि दोपहर के समय दो समूह के बच्चों में कार्टिसोल स्तर नियंत्रित था जबकि तीसरे समूह के बच्चों में कार्टिसोल का स्तर बढ़ा हुआ था। इसका मतलब यह हुआ कि वे कम तनाव में थे।
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अध्ययन से निकला ये निष्कर्ष
शोधकर्ताओं का मानना है कि संभवतः ये तरीके बच्चों को सुलाने और उनकी जिंदगी को सहज करने में उपयोगी साबित हों। वे रोना बंद कर दें और समय पर सो जाएं। इस प्रक्रिया के एक साल बाद माओं ने बच्चों के भावनात्मक और व्यवहार से संबंधित समस्याओं पर बात की। पता चला कि ये बच्चे काफी खुश थे। इनके स्वभाव में किसी भी तरह की नकारात्मक बातें शामिल नहीं थीं। अध्ययन में तीनों समूह में मौजूद मांओं के मूड का भी विश्लेषण किया गया। पता चला कि मांओं का मूड बेहतर हुआ। लेकिन यह बेहतरी उस समूह में ज्यादा दिखी जिन्हें नींद की समस्या नहीं थी।