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अकेलापन और सोशल आइसोलेशन भी है एक जानलेवा बीमारी! पढ़िए रिपोर्ट
वर्तमान समय में दिनों दिन हम सोशल मीडिया के आदी होते जा रहे हैं। इस विषय पर चल रही एक व्यापक समीक्षा के अनुसार विश्व में लाखों लोग अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे हैं और यह धीरे-धीरे महामारी का रूप लेता जा रहा है। अमेरिका में 45 साल से अधिक उम्र के 42 मिलियन लोग अकेलेपन की समस्या से जूझ रहे हैं।
भारत में आईआईटी छात्रों के एक ग्रुप ने शेयरिंग दर्द डॉट कॉम नाम से देश की पहली इमोशनल नेटवर्किंग साइट बनायी है। इस साइट पर लोगों द्वारा एक दिन में औसतन 46 हजार बार “आई एम लोनली” वाक्य से सर्च किया गया है।
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में सोशल साइकोलॉजिस्ट आशीष नंदी का कहना है कि अकेलेपन की समस्या शहरों में ज्यादा बढ़ा रही है। हम काम, सूचना, मनोरंजन, टेक्नोलॉजी में उलझते जा रहे हैं और दुनिया में अपनी सफलता का परचम लहराने के चक्कर में हम अपने घर, रिश्तों, समाज और जिम्मेदारियों से दूर होते जा रहे हैं।
वे कहते हैं कि पहले संयुक्त परिवार और पड़ोसियों के बीच भावनात्मक जुड़ाव हुआ करता था। आज शहरों में तेजी से भीड़ बढ़ रही है फिर भी शहरों में ही अधिक लोग अकेलेपन के शिकार है। तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। एकल परिवार बढ़ रहे हैं। ज्यादातर लोग कम बच्चे पैदा करते हैं। काम और शिक्षा हमें हमारे परिवार और समाज से दूर कर रहा है। नंदी कहते हैं कि हम अपनी और दूसरों की जरूरतों से मुंह मोड़ते जा रहे हैं।
न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए गए एक बयान में अमेरिका के ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जूलियन होल्ट लुन्सटाड का कहना है कि लोगों से सामाजिक रूप से जुड़ना व्यक्ति की मूलभूत जरूरतों में से एक है। यह व्यक्ति के हित और उसे जिंदा रखने दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
होल्ट लुनस्टैड कहते हैं कि कई गंभीर मामलों में देखा गया है कि घर के लोग जिन बच्चों की देखभाल में समय नहीं देते उनका विकास नहीं हो पाता है और वे अक्सर मर भी जाते हैं। वास्तव में सामाजिक अलगाव या अकेलापन एक सजा है। अमेरिका में ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं।
जब से हमने टेक्नोलॉजी को एक दूसरे के बीच कम्युनिकेशन का हथियार बना लिया है तब से रिश्तों में नजदीकी, जुड़ाव नहीं के बराबर रह गया है। डिप्रेशन की तरह अकेलापन भी हमारे स्ट्रेस हार्मोन को प्रभावित करता है और हमारे व्यवहार पर भी इसका प्रभाव पड़ता है, यहां तक की लोग आत्महत्या भी कर लेते हैं।
लुनस्टैड दो रिसर्चों की व्यापक समीक्षा करते हुए कहते हैं कि सामाजिक अलगाव एवं अकेलेपन की वजह से समय से पहले मौत होने का खतरा रहता है। पहले रिसर्च में 148 स्टडी शामिल की गई जिसमें 300,000 से ज्यादा प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इसमे पाया गया कि जो 50 प्रतिशत लोग समाज से हर तरह से जुड़े रहे उनमें समय से पहले मृत्यु का खतरा कम पाया गया। दूसरे रिसर्च में 70 स्टडी की गई जिसमें पाया गया कि नॉर्थ अमेरिका,यूरोप, एशिया और आस्ट्रेलिया में 3.4 मिलियन से ज्यादा लोग अकेले रहते हैं। वे सामाजिक अलगाव और अकेलेपन के शिकार है और उनमें मृत्यु दर ज्यादा पायी गई।
होल्ट लुनस्टैड कहते हैं कि इन दोनों स्टडी के नतीजों का इस्तेमाल करते हुए शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि समय से पहले होने वाली मौतों पर सामाजिक अलगाव या अकेलापन का उतना ही प्रभाव पड़ा है जितनी की मोटापे जैसे खतरों या फिर अन्य वजहों से हुई मौतों पर पड़ता है। इसका पक्का सबूत मौजूद है कि सामाजिक अलगाव या अकेलापन से वजह से समय से पहले मौत का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा इसकी वजह से स्वास्थ्य के लिए भी कई खतरे उत्पन्न हुए हैं।
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के 125वे वार्षिक सम्मेलन में प्रस्तुत की गई यह अपने आप में एक बड़ी स्टडी है।