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सावधान! ज्यादा देर LED लाइट्स की रोशनी में बैठने से रेटिना हो सकता है खराब, रिसर्च में दावा
घरों में दफ्तरों में हम एलआईडी की रोशनी में घंटों गुजार देते हैं। क्या आपको मालूम है की इसकी रोशनी से आंखों पर क्या असर पड़ता है। एक सर्वे में ये बात सामने आई है कि ज्यादा देर एलईडी की लाइट्स में बैठने से आंखें खराब हो सकती है।
फ्रांस की सरकारी स्वास्थ्य निगरानी संस्थान ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि एलईडी लाइट की 'नीली रोशनी' से आंखों की रेटीना को नुकसान हो सकता है और प्राकृतिक रूप से सोने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
क्यों नुकसानदेह है एलईडी
दरअसल, एलईडी से सात रंग की लाइट निकलती हैं। इसमें लाल और हरे रंग की वेब लेंथ ज्यादा होती है। इससे फोटोन की एनर्जी कम निकलती है। वहीं, नीली रोशनी वाली एलईडी की वेब लेंथ सबसे कम होती है। इस वजह से फोटोन की एनर्जी ज्यादा निकलती है। यही हमारी आंखों की रेटिना में कोशिकाओं (Retina Cells) को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं। ANSES की रिपोर्ट में कहा गया है कि शक्तिशाली LED की रोशनी 'फोटो-टॉक्सिक' होता है जो आंखों की तीक्ष्णता को भी कम कर सकता है।
अधिकतम सीमा को संशोधित करने की जरूरत
एजेंसी ने 400 पन्नों की एक रिपोर्ट में सिफारिश की है कि भले ही ऐसे स्तर घर या कार्यस्थल के वातावरण में शायद ही कभी मिले हों फिर भी तीव्र जोखिम के लिए अधिकतम सीमा को संशोधित किया जाना चाहिए।
एलईडी
लाइट्स
के
नुकसान
पर
स्टडी
की
जरुरत
रिपोर्ट की माने तो दुनियाभर में एलईडी लाइट्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने लगा है। ऑफिस, घर और पब्लिक प्लेसेज में एलईडी का खूब इस्तेमाल बढ़ा है। एलईडी लाइट्स एनर्जी एफिशंट होते हैं यानी इनके इस्तेमाल से बिजली की खपत कम होती है। लेकिन इन एलईडी लाइट्स से पुराने जमाने के पीले बल्बों की तुलना में ज्यादा नीली रोशनी निकलती है। आई स्पेशलिस्ट्स की मानें तो एलईडी लाइट्स से निकलने वाली नीली रोशनी आंखों की रेटिना के सेल्स को नुकसान पहुंचा सकती है। हालांकि कितनी देर तक इस रोशनी में रहने से नुकसान हो सकता है और कितनी इंटेसिटी की रोशनी से नुकसान हो सकता है- इन दोनों बातों की जांच के लिए बड़े पैमाने पर क्लिनिकल स्टडी करवाने की जरूरत है।
बिताते हैं 10 से 12 घंटे
हम हर दिन औसतन 10 से 12 घंटे आर्टिफिशल लाइट में बिताते हैं। ऐसे में जब सरकार और इंडस्ट्री दोनों एलईडी लाइट्स के इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं, ऐसे में जरूरी है कि एलईडी लाइट्स फोटोबायोलॉजिकल सेफ्टी स्टैंडर्ड के हिसाब से बनें।