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कौरवों-पांडवों को अस्त्र-शस्त्र की विद्या देने वाले द्रोणाचार्य की महाभारत में कैसे हुई थी मृत्यु?

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द्रोणाचार्य को संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर में से एक माना गया। इन्होंने ही पांडवों और कौरवों को युद्ध शिक्षा का ज्ञान दिया। दुनिया के इतिहास में महाभारत सबसे भयंकर युद्ध माना गया। इस युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य शरीर से तो कौरवों के साथ थे मगर वो दिल से धर्म का साथ देने वाले पांडवों की जीत चाहते थे। द्रोणाचार्य वेद-वेदांगों में पारंगत थे और वे एक कठोर तपस्वी थे। जानते हैं कि पांडवों और कौरवों को अस्त्र शस्त्र का ज्ञान देने वाले द्रोणाचार्य की महाभारत युद्ध में मृत्यु कैसे हुई थी।

कौन थे द्रोणाचार्य

कौन थे द्रोणाचार्य

द्रोणाचार्य भरद्वाज मुनि के पुत्र थे। आश्रम में विद्या अध्ययन के अलावा उन्होंने वहीं रहकर तपस्या की। द्रोणाचार्य का विवाह शरद्वान मुनि की पुत्री और कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था। इनके पुत्र का नाम अश्वत्थामा था।

द्रोणाचार्य ने महेन्द्र पर्वत पर जाकर शस्त्रास्त्र-विद्याओं में श्रेष्ठ श्री परशुराम जी से प्रयोग, रहस्य तथा संहारविधि के सहित संपूर्ण अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था।

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महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य

महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य

महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य कौरवों की तरफ से लड़े थे। भीष्म के शरशैय्या पर लेटने के बाद कर्ण के कहने पर द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया गया। गुरु द्रोण की संहारक शक्ति बढ़ती देख कर पांडवों के खेमे में दहशत फ़ैल गयी। द्रोणाचार्य और उनके पुत्र अश्वत्थामा का रौद्र रूप देखकर पांडवों को अपनी हार नजदीक नजर आ रही थी।

श्रीकृष्ण ने लिया छल का सहारा

श्रीकृष्ण ने लिया छल का सहारा

पांडवों की ऐसी स्थिति देखने के बाद श्री कृष्ण ने भेद का सहारा लेने के लिए कहा। इस योजना के अनुसार युद्ध में ये बात फैला दी गयी की अश्वथामा मारा गया। मगर धर्मराज युधिष्ठिर झूठ बोलने के लिए राजी नहीं हुए। ऐसे में अवन्तिराज के एक हाथी जिसका नाम अश्वथामा था, उसका भीम द्वारा वध कर दिया गया। युद्धभूमि में अश्वथामा की मृत्यु की खबर आग की तरह फ़ैल गयी। गुरु द्रौणाचार्य स्वयं इस बात की पुष्टि के लिए युधिष्ठिर के पास आए। मगर जैसे ही धर्मराज ने उत्तर दिया कि अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी, श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद कर दिया। उस ध्वनि के कारण द्रोणाचार्य आखिरी के शब्द 'परंतु हाथी' नहीं सुन पाएं। उन्हें ये यकीन हो गया कि युद्ध में उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया।

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निहत्थे द्रोणाचार्य पर हुआ वार

निहत्थे द्रोणाचार्य पर हुआ वार

अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनने के बाद द्रोणाचार्य ने शस्त्र त्याग दिए और रणभूमि में ही शोक में डूब गए। इस मौके का लाभ उठाकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने निहत्थे द्रोणाचार्य का सिर काट डाला।

अश्वत्थामा को मिली इस छल की जानकारी

अश्वत्थामा को मिली इस छल की जानकारी

अश्वत्थामा को जब इस घटना के बारे में पता चला तब उसके गुस्से का कोई पारावार न रहा। दुःख और क्रोध से भरे अश्वत्थामा ने प्रण लिया कि वो पांडवों के एक भी पुत्र को जीवित नहीं छोड़ेगा। अपने पिता की छल से हुई मृत्यु का बदला लेते हुए अश्वत्थामा ने कोहराम मचा दिया। पांडव महाभारत के युद्ध में विजय जरूर हुए लेकिन अश्वत्थामा ने द्रौपदी के एक भी पुत्र को जीवित नहीं छोड़ा।

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English summary

In the Mahabharata, How Did Guru Dronacharya Die?

The Kurukshetra War, also called the Mahabharata War, is a war described in the Hindu epic poem Mahābhārata. Let's know how did Dronacharya died who was the guru of Kauravas and Pandavas.
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