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जन्माष्टमी 2018: इस शुभ मुहूर्त पर करें भगवान श्री कृष्ण की पूजा
भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण देवताओं के अजेय दिव्य रूप कहलाते हैं। पवित्र हिंदू ग्रंथ गीता के आठवें अध्याय में इस बात का उल्लेख मिलता है कि श्री कृष्ण हर चीज़ में वास करते हैं और हर चीज़ उनमें वास करती है। भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि को जन्म लेने वाले श्री कृष्ण हिंदुओं के मुख्य देवताओं में से एक हैं जिनकी पूजा हर घर में होती है। भगवान के जन्मोत्सव को कृष्ण अष्टमी, कृष्ण जन्माष्टमी, भादो अष्टमी, रोहिणी अष्टमी और कृष्ण जयंती भी कहते हैं।
दक्षिण भारतीय कैलेंडर के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म श्रावण माह में हुआ था हालांकि अंतर केवल महीनों का है पर दोनों ही कैलेंडर के अनुसार जन्माष्टमी एक ही दिन पड़ती है।
जन्माष्टमी 2018
इस बार जन्माष्टमी का उत्सव 2 सितंबर को मनाया जाएगा। अष्टमी तिथि की शुरुआत सुबह 8:47 मिनट से होगी जो अगले दिन यानी 3 सितंबर को 7:19 मिनट पर समाप्त होगी। पूजा का समय रात्रि 11:57 मिनट से आरंभ होकर 2 सितंबर को 12:43 मिनट तक रहेगा। दही हांडी 3 सितंबर को होगा और पारण का समय है 3 सितंबर को 8:05 मिनट के बाद, यानी जिस समय रोहिणी नक्षत्र समाप्त हो जाएगा।
एक दिव्य बालक का जन्म: श्री कृष्ण के जन्म की कहानी
भगवान श्री कृष्ण के जन्म से लेकर पापियों पर उनकी जीत तक हमें कई तरह की सीख मिलती है। अपने भक्तों की रक्षा हेतु वे कई बार आगे आए हैं। उनके जन्म से पहले ही इस बात की भविष्यवाणी हो चुकी थी कि संसार को पापियों से मुक्त कराने के लिए द्वापर युग में एक दिव्य अवतार का जन्म कई सारी अलौकिक शक्तियों के साथ होगा।
मथुरा के राजा कंस के अत्याचारों से पूरी प्रजा दुखी थी लेकिन उसे अपनी बहन देवकी से अत्यंत प्रेम था। जब देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ तब एक भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी और वसुदेव का आठवां पुत्र ही कंस की मृत्यु का कारण बनेगा। इस बात से भयभीत कंस ने निर्णय लिया कि वह देवकी की सभी संतानों को मार डालेगा इसलिए उसने देवकी और वसुदेव को बंदी बनाकर मथुरा के कारागार में डाल दिया था।
एक एक कर कंस देवकी की सभी संतानों को मारता गया किन्तु देवकी की सातवीं संतान (बलराम) को बड़े ही रहस्मयी तरीके से रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरण कर दिया गया। जब वसुदेव और देवकी के आठवें पुत्र का जन्म हुआ जो भविष्यवाणी के अनुसार कंस का वध करने वाला था, वसुदेव ने छुपते छिपाते अपने उस बालक को गोकुल के मुखिया नन्द बाबा के घर ले जाकर उनकी पुत्री से बदल दिया। जब कंस को इस बात का पता चला कि देवकी की आठवीं संतान का जन्म हो चुका है तो वह फ़ौरन कारागार में पहुंचा और उस नवजात बच्ची को गोद में उठाकर फेंक दिया।
जैसे ही कंस ने बच्ची को फेंका वह अपने असली रूप में आ गयी। वह और कोई नहीं बल्कि माँ दुर्गा थी जिन्होंने श्री कृष्ण को सुरक्षित नन्द के घर पहुंचाने के लिए ही जन्म लिया था। माता ने कंस को बताया कि उसका अंत करने वाला इस संसार में आ गया है और वह बिल्कुल सुरक्षित है। वहीं दूसरी ओर गोकुल में नन्द और यशोदा के घर पुत्र के जन्म की ख़ुशी में उत्सव मनाया जा रहा था। उस बालक को कृष्ण नाम दिया गया और इनका जन्मोत्सव जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
जन्माष्टमी कैसे मनाते हैं?
जन्माष्टमी पर लोग व्रत रखते हैं। कुछ लोग फलों का सेवन करते हैं तो कई लोग रात्रि बारह बजे तक पानी भी नहीं पीते। भगवान के जन्म के पश्चात ही वे अन्न जल ग्रहण करते हैं। इस दिन श्री कृष्ण को दूध, दही, शहद, घी और जल से स्नान करवाया जाता है। दही हांड़ी की परंपरा होती है। इसमें लोग दही से भरी मटकी को फोड़ते हैं जैसा श्री कृष्ण अपने बचपन में माखन चुराते समय करते थे। इस प्रकार जन्माष्टमी का उत्सव बड़े ही धूमधाम से पूरे देश में मनाया जाता है।