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पितृपक्ष में सिर्फ घर के इन लोगों को होता है श्राद्ध करने का अधिकार
कहा जाता है कि पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करके हम अपने पूर्वजों या फिर परिवार के अन्य मृत लोगों की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। इतना ही नहीं यह पितरों के ऋण से मुक्ति पाने का भी समय माना जाता है यानी श्राद्ध और पिंडदान करके हम अपने पूर्वजों के लिए भगवान से उन्हें स्वर्ग लोक में स्थान देने की कामना करते हैं ताकि वे नर्क के कष्टों से बच जाएं।
ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे घर के दिवगंत सदस्यों की आत्मा धरती पर आती है और पूरे सोलह दिनों तक यह आत्माएं धरती पर ही रहती हैं। इस बार पितृपक्ष की शुरुआत 24 सितंबर से हो चुकी है और लोगों ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना शुरू कर दिया है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि श्राद्ध करने का हक़ भी हर किसी को नहीं होता। जैसे यदि आपके तीन पुत्र हैं तो उसमें सिर्फ बड़े या छोटे को ही श्राद्ध करने का अधिकार होता है।
आज हम आपको बताएंगे कि पितृपक्ष में घर के किन सदस्यों को श्राद्ध करने का हक़ मिलता है। साथ ही हम आपको श्राद्ध की तिथियां भी बताएंगे जिससे आप यह जान सकते हैं कि किस दिन किसका श्राद्ध करना है।
ये लोग कर सकते हैं श्राद्ध
1. माता पिता का श्राद्ध करने का पहला अधिकार बड़े बेटे का होता है। यदि बड़ा बेटा न हो तो सबसे छोटा बेटा भी श्राद्ध कर सकता है।
2. यदि बेटा नहीं है तो पोता या परपोता भी श्राद्ध कर सकता है।
3. एक भाई दूसरे भाई का श्राद्ध कर सकता है।
4. अविवाहित पुरुष की मृत्यु हो जाए तो ऐसे में उसका श्राद्ध उसकी माँ या बहन कर सकती है।
5. अगर बेटा नहीं है तो बहु भी श्राद्ध कर सकती है।
6. भतीजे या उसके पुत्र को भी श्राद्ध का हक़ होता है।
7. बेटी का बेटा भी श्राद्ध कर सकता है।
8. अगर कोई स्त्री विधवा हो और उसके घर में श्राद्ध करने वाला कोई न हो तो वह स्वयं श्राद्ध कर सकती है।
हिंदू धर्म में यह श्राद्ध तिथि के अनुसार ही किया जाता है क्योंकि बिना तिथि के श्राद्ध नहीं किया जा सकता। माना जाता है कि जब सूर्य की छाया पीछे होती है श्राद्ध तभी होता है। तो आइए जानते हैं किस दिन किसका श्राद्ध करना चाहिए।
इन तिथियों के अनुसार करें श्राद्ध
24
सितंबर-
पूर्णिमा
श्राद्ध:
जिन
लोगों
की
मृत्यु
पूर्णिमा
के
दिन
हुई
होती
है
इस
दिन
ऐसे
लोगों
का
श्राद्ध
किया
जाता
है।
25
सितंबर-
प्रतिपदा
श्राद्ध:
नाना
नानी
के
श्राद्ध
के
लिए
यह
तिथि
होती
है।
26
सितंबर-
द्वितीय
श्राद्ध:
द्वितीय
तिथि
में
मरने
वालों
का
श्राद्ध
इस
दिन
होता
है।
27
सितंबर-
तृतीय
श्राद्ध:
तृतीय
तिथि
में
गुज़रने
वालों
का
श्राद्ध
इस
दिन
होता
है।
28
सितंबर-
चतुर्थी
श्राद्ध:
जिन
लोगों
की
मृत्यु
चतुर्थी
तिथि
में
हुई
हो
उनका
श्राद्ध
इस
तिथि
में
करते
हैं।
29
सितंबर-
पंचमी
श्राद्ध:
अविवाहित
लोगों
का
श्राद्ध
इस
तिथि
में
किया
जाता
है।
30
सितंबर-
षष्ठी
श्राद्ध:
षष्ठी
तिथि
में
मरने
वालों
का
श्राद्ध
इस
दिन
होता
है।
1
अक्टूबर:
सप्तमी
श्राद्ध:
इस
तिथि
में
जिन
लोगों
की
मृत्यु
हुई
हो।
2
अक्टूबर:
अष्टमी
श्राद्ध:
यह
तिथि
पिता
के
श्राद्ध
के
लिए
होती
है।
3
अक्टूबर:
नवमी
श्राद्ध:
यह
तिथि
माता
के
श्राद्ध
के
लिए
होती
है
साथ
ही
इस
तिथि
पर
शुक्ल
और
कृष्ण
पक्ष
की
नवमी
तिथि
को
मरने
वाले
लोगों
का
भी
श्राद्ध
किया
जाता
है।
4
अक्टूबर:
दशमी
श्राद्ध:
दशमी
तिथि
पर
जिन
लोगों
की
मृत्यु
हो
जाती
है
उनका
श्राद्ध
इसी
तिथि
में
होता
है।
5
अक्टूबर:
एकादशी
श्राद्ध:
एकादशी
तिथि
में
मरने
वालों
का
श्राद्ध
इस
दिन
होता
है।
6
अक्टूबर:
द्वादशी
श्राद्ध:
द्वादशी
तिथि
में
मरने
वालों
का
श्राद्ध
इस
दिन
होता
है
यह
तिथि
सन्यासियों
के
श्राद्ध
के
लिए
भी
होता
है।
7
अक्टूबर:
त्रयोदशी,
चतुर्दशी,
मघा
श्राद्ध:
चतुर्दशी
तिथि,
किसी
दुर्घटना
में
मृत
या
फिर
आत्महत्या
करने
वालों
का
श्राद्ध
इस
तिथि
में
किया
जाता
है।
इसके
अलावा
त्रयोदशी
तिथि
घर
के
बच्चों
का
भी
श्राद्ध
इसी
दिन
होता
है।
8
अक्टूबर:
सर्वपितृ
अमावस्या,
महालय
अमावस्या:
जिन
लोगों
की
मृत्यु
अमावस्या
तिथि,
पूर्णिमा
तिथि
और
चतुर्दशी
तिथि
को
हुई
हो।
अगर
आपको
अपने
किसी
परिजन
की
मृत्यु
की
तिथि
याद
नहीं
है
तो
उनका
भी
श्राद्ध
आप
इस
तिथि
में
कर
सकते
हैं।