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जानें क्या है महाशिवरात्रि का इतिहास और कहानियां
पुराणों में महाशिवरात्रि मानाने के पीछे एक कहानी है जिसके अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब देवतागण एवं असुर पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला।
देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने भयंकर विष को अपने शंख में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं।
उन्होंने
उस
विष
को
शिवजी
के
कंठ
(गले)
में
ही
रोक
कर
उसका
प्रभाव
समाप्त
कर
दिया।
विष
के
कारण
भगवान
शिव
का
कंठ
नीला
पड़
गया
और
वे
संसार
में
नीलंकठ
के
नाम
से
प्रसिद्ध
हुए।
शिव पुराण में एक अन्य कथा के अनुसार एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा।
अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया, और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा।
चूंकि
यह
फाल्गुन
के
महीने
का
14
वा
दिन
था
जिस
दिन
शिव
ने
पहली
बार
खुद
को
लिंग
रूप
में
प्रकट
किया
था।
इस
दिन
को
बहुत
ही
शुभ
और
विशेष
माना
जाता
है
और
महाशिवरात्रि
के
रूप
में
मनाया
जाता
है।
इस
दिन
शिव
की
पूजा
करने
से
उस
व्यक्ति
को
सुख
और
समृद्धि
प्राप्त
होती
है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक आदमी जो शिव का परम भक्त था, एक बार लकड़ियाँ कटाने के लिए जंगल गया, और खो गया। बहुत रात हो चुकी थी इसीलिए उसे घर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था। क्योंकि वह जंगल में काफी अंदर चला गया था इसलिए जानवरों के डर से वह एक पेड़ पर चढ़ गया।
लेकिन उसे डर था कि अगर वह सो गया तो वह पेड़ से गिर जाएगा और जानवर उसे खा जाएंगे। इसलिए जागते रहने के लिए वह रात भर शिवजी नाम लेके पत्तियां तोड़ के गिरता रहा। जब सुबह हुई तो उसने देखा कि उसने रात में हजार पत्तियां तोड़ कर शिव लिंग पर गिराई हैं, और जिस पेड़ की पत्तियां वह तोड़ रहा था वह बेल का पेड़ था।
अनजाने
में
वह
रात
भर
शिव
की
पूजा
कर
रहा
था
जिससे
खुश
हो
कर
शिव
ने
उसे
आशीर्वाद
दिया।
यह
कहानी
महाशिवरात्रि
को
उन
लोगों
को
सुनाई
जाती
है
जो
व्रत
रखते
हैं।
और
रात
शिव
जी
पर
चढ़ाया
गया
प्रसाद
खा
कर
अपना
व्रत
तोड़ते
हैं।
एक कारण यह भी है इस पूजा को करने का कि यह रात अमावस की रात होती है जिसमें चाँद नहीं दीखता है और हम ऐसे भगवान की पूजा करते हैं जिन्होंने अपनी जटाओं पर अर्धचन्द्र को सजाया है।
महाशिवरात्रि के तुरंत बाद पेड़ फूलों से भर जाते हैं जैसे सर्दियों के बाद होता है। पूरी धरती फिर से उपजाऊ हो जाती है। यही कारण है कि पूरे भारत में शिव लिंग को उत्पत्ति का प्रतीक माना जाता है। भारत के हर कोने में शिवरात्रि को अलग अलग तरीके से मनाया जाता है।
उदाहरण
के
लिए
दक्षिणी
कर्नाटक
में
सारे
बच्चे
खूब
सारी
शैतानियाँ
करते
हैं
जिससे
उन्हें
सजा
मिले
यह
नियम,
शायद
शिव
की
पौराणिक
कहानी
में
मिलती
है
जहाँ
ब्रह्मा
को
झूठ
बोलने
पर
सजा
मिलती
है।
वाराणसी
के
काशीविश्वनाथ
मंदिर
के
शिवलिंग
को
सर्वोच्च
ज्ञान
के
रूप
में
पूजा
जाता
है।
महाशिवरात्रि सिर्फ एक परम्परा ही नहीं बल्कि यह ब्रह्मांड की लौकिक परिभाषा है। यह अज्ञानता को ज्ञान की रौशनी से हटता है जिससे इंसान को ब्रह्माण्ड का ज्ञान हो। ठंड और शुष्क सर्दियों के बाद वसंत ऋतु के आने का प्रतीक है और याद दिलाता है कि यह पूरा ब्रह्मांड उसीने बनाया है।