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मां के श्राप से शनिदेव हुए थे लंगड़े, एक से दूसरी राशि में पहुंचते हैं देरी से
सभी ग्रह बहुत ही जल्दी जल्दी अपना राशि परिवर्तन करते हैं लेकिन एकमात्र शनिदेव ही ऐसे हैं जो बहुत ही धीमी चाल से चलते हैं यानी शनिदेव एक राशि में करीब ढाई वर्ष तक उपस्थित रहते हैं। लेकिन क्या न्याय के देवता की इस धीमी चाल का कारण जानते हैं आप? अगर नहीं तो आज हम आपको इसके पीछे का असली रहस्य बताएंगे। तो आइए जानते हैं शनिदेव की चाल से जुड़ी इस कहानी के बारे में।
जब शनिदेव की माता अपनी छाया छोड़कर चली गयी
कहते हैं शनिदेव की माता संज्ञा भोलेनाथ की बहुत बड़ी भक्त थी। जब शनिदेव अपनी माँ के गर्भ में पल रहे थे उनकी माता दिन रात शिव जी की आराधना में लगी रहती थी लेकिन वह शनि के पिता सूर्य का ताप सहन नहीं कर पायी और शनिदेव का रंग रूप काला हो गया। अपने पति के ताप से बचने के लिए संज्ञा अपनी ही छाया सवर्णा को पति सूर्यदेव और पुत्र शनिदेव के पास रहने का आदेश देकर स्वयं अपने पिता के यहां चली गयी।
सवर्णा ने दिया शनिदेव को श्राप
संज्ञा के जाने के बाद सूर्यदेव और शनिदेव इस बात को समझ नहीं पाए कि वह केवल संज्ञा की छाया है। सवर्णा और सूर्यदेव के कुल पांच पुत्र और तीन पुत्रियां हुई। कहा जाता है कि शुरुआत में सवर्णा शनिदेव का पूरा ख्याल रखती किन्तु बाद में वह एकदम बदल गयी और शनिदेव की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं देती। शनिदेव इस बात से हमेशा दुखी रहने लगे।
एक दिन जब सवर्णा अपने बच्चों को खाना खिला रही थी तब शनिदेव ने भी उससे खाना मांगा किन्तु वह उनकी बात अनसुनी कर रही थीं। तभी क्रोध में आकर शनिदेव ने अपना एक पैर उठाकर उन को मारने की कोशिश की लेकिन तभी पलट कर उसने शनिदेव को श्राप दे दिया कि उनका एक पैर फ़ौरन टूट जाए।
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लंगड़े हो गए शनिदेव
अपनी माँ के मुख से ऐसा श्राप सुनकर शनिदेव तुरंत अपने पिता सूर्यदेव के पास पहुंचे और उन्हें सारी बात बताई। यह सब सुनकर सूर्यदेव आश्चर्यचकित रह गए और सोचने लगे एक माँ होकर अपने पुत्र को ऐसा कठोर श्राप वो कैसे दे सकती हैं। तब सूर्यदेव सवर्णा के पास पहुंचे और उससे कड़ाई से सच्चाई पूछने लगे। भयभीत होकर सवर्णा ने सारी सच्चाई सूर्यदेव को बता दी कि वह संज्ञा नहीं बल्कि उसकी छाया है।
पिता ने किया समझाने का प्रयास
सूर्यदेव ने शनिदेव को समझाया कि भले ही वह उनकी माता नहीं पर माँ की छाया ही है इसलिए उसका श्राप खाली तो नहीं जाएगा किन्तु श्राप का प्रभाव इतना कठोर भी नहीं होगा कि उन्हें अपना एक पैर खोना पड़ जाए।
सूर्यदेव ने शनिदेव को बताया कि उनका पैर तो रहेगा लेकिन उनकी चाल लंगड़ी हो जाएगी। इस तरह से अपनी माँ के प्रतिरूप से मिले श्राप के कारण शनिदेव लंगड़े हो गए और उनकी चाल धीमी पड़ गयी।
एक अन्य कथा
शनिदेव की धीमी चाल को लेकर एक और कथा है जो इस प्रकार है- कहते हैं लंकापति रावण यह चाहता था कि उसका पहला पुत्र मेघनाद दीर्घायु हो। सभी ग्रह नक्षत्र रावण से डरते थे केवल शनिदेव एकमात्र ऐसे थे जिनको रावण का तनिक भी भय नहीं था।
अपने पुत्र के जन्म के समय रावण ने सभी ग्रहों को आदेश दिया था कि वे सभी अपनी शुभ स्थिति में रहे। रावण ने अपने बल का प्रयोग करके शनिदेव को भी अपनी सर्वश्रेष्ठ स्थिति में रहने के लिए मजबूर कर दिया पर शनिदेव ने मेघनाथ के जन्म के समय शुभ स्थिति में होने के बाद भी अपनी दृष्टि वक्री कर ली जिसके कारण मेघनाद अल्पायु हो गया। क्रोध में आकर रावण ने अपनी गदा से शनिदेव के पैर पर प्रहार कर दिया और वे लंगड़े हो गए।
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