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वट सावित्री व्रत: इस विधि से करेंगी पूजा तो पति को मिलेगी लंबी आयु और टल जाएगी बुरी बला

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हिंदू धर्म को मानने वाली विवाहित महिलाएं वट सावित्री व्रत के दिन अपने पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति के लिए उपासना करती हैं। हर साल यह पर्व ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस साल वट सावित्री का व्रत 22 मई को रखा जाएगा। उत्तर भारत में ये व्रत काफी लोकप्रिय है। इस दिन शादीशुदा औरतें अपने पति की दीर्घ आयु के लिए व्रत उपासना करती हैं।

Vat Savitri Vrat 2020

ऐसी मान्यता है कि जो महिला सच्चे मन से इस व्रत को पूरा करती है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही उसके कमाये पुण्य के प्रभाव से पति पर आने वाली बला भी टल जाती है।

वट सावित्री व्रत की तिथि तथा शुभ मुहूर्त

वट सावित्री व्रत की तिथि तथा शुभ मुहूर्त

वट सावित्रि अमावस्या तिथि - 22 मई 2020, शुक्रवार

अमावस्या तिथि प्रारम्भ - मई 21, 2020 को रात्रि 09 बजकर 35 मिनट से

अमावस्या तिथि समाप्त - मई 22, 2020 को रात्रि 11 बजकर 08 मिनट तक

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Vat Savitri Vrat 2020: जानें कब है वट सावित्री व्रत, इस तरह से करें पूजा | वट सावित्री व्रत 2020
साल 2020 में विशेष संयोग

साल 2020 में विशेष संयोग

वट सावित्री का व्रत 22 मई, शुक्रवार के दिन किया जाएगा। ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही शनि जयंती भी मनाई जाएगी। इस दिन पूजा-उपासना तथा धर्म-कर्म के कार्यों से विशेष लाभ मिलेगा।

वट सावित्री व्रत का महत्व

वट सावित्री व्रत का महत्व

यह व्रत प्रत्येक दंपत्ति को ये संदेश देता है कि जीवन की किसी भी परिस्थिति में अपने साथी का दामन न छोड़ें। एक पतिव्रता स्त्री यमराज के चंगुल से अपने पति को छुड़ा कर वापस लाने का दम रखती है। इस कारण सुहागिन महिलाओं के लिए ये व्रत काफी मायने रखता है। इस खास दिन से महिला को अपने सास-ससुर की सेवा और पत्नी धर्म की महत्ता का ज्ञान भी होता है। इस दिन पति की सेहत और उम्र की दुआ के साथ महिलाओं को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद भी मिलता है।

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वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

व्रत रखने वाली महिलाओं को चतुर्दशी के दिन से ही तामसिक भोजन से दूरी बना लेनी चाहिए। अपने भोजन में प्याज-लहसुन का इस्तेमाल न करे।

पूजा वाले दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं और घर की साफ़ सफाई करे।

गंगाजल मिले पानी से स्नान के पश्चात् व्रत का संकल्प लें।

साफ़ सुथरे वस्त्र पहनें और सोलह श्रृंगार करें।

तैयार हो जाने के बाद सबसे पहले सूर्य देव को जल चढ़ाएं।

पूजा की सभी समग्री को बांस की टोकरी में रख लें और घर के पास के वट वृक्ष तक जाएं और अपनी पूजा करें।

उन्हें जल चढ़ाएं और फिर सोलह श्रृंगार अर्पित करें।

अब वट वृक्ष की पूजा फल, फूल तथा पकवान आदि से करें।

अब रोली के आकार के हिसाब से आप बरगद के वृक्ष की परिक्रमा 5, 7, 11 अथवा 21 बार करें।

इसके बाद वट सावित्री व्रत से जुड़ी कथा अवश्य सुनें।

दिनभर उपवास रखें और शाम को आरती के बाद फलाहार कर लें।

अगले दिन रोज की तरह सामान्य रूप से पूजा करें और व्रत खोल कर ब्राह्मणों को दान दें और फिर भोजन ग्रहण कर लें।

वट सावित्री व्रत की कथा

वट सावित्री व्रत की कथा

वट सावित्री अमावस्या के पूजा से जुड़ी कथा के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी। उन्होंने सत्यवान को अपने पति के रूप में स्वीकार किया था। सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जंगल में जाया करता था और सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करने के बाद सत्यवान के पीछे जंगल चली जाती थी।

एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार यमराज सत्यवान के प्राण लेने आ गए। सावित्री ने उन्हें पहचाना और कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें।

यम ने मना किया, मगर वह वापस नहीं लौटी। सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान के रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया।

सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने पतिव्रत धर्म से मृत पति को पुन: जीवित कराया था। इसी वजह से यह व्रत ‘वट सावित्री व्रत' के नाम से जाना जाता है। वट पूजा से जुड़ी धार्मिक मान्यता के अनुसार तभी से विवाहित महिलाएं इस दिन को वट अमावस्या के रूप में पूजती हैं।

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English summary

Vat Savitri Vrat 2020: Date, Significance, Puja Vidhi, Savitri Katha

'Vat Savitri' is a festival celebrated by married women who pray for the long life of their husbands.
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