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कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी देखकर कांप गई थी दुश्मनों की रूह, दे दिया था शेरशाह नाम
हमारे देश में ऐसे वीरों की कमी नहीं है, जो देश की मिट्टी के लिए अपनी जान न्योछावर करने में एक पल के लिए भी नहीं झिझकते। मां भारती का एक ऐसा ही सपूत है कैप्टन विक्रम बत्रा। कारगिल युद्ध के नायक और शेरशाह के नाम से प्रसिद्ध कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरगाथा और उनके बलिदान की कहानी भुलाए नहीं भूल सकती। जब भी देश के इस नायक का नाम लिया जाता है तो हर किसी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। महज 29 साल की उम्र में अपने प्राणों की आहूति देने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल के पांच सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट्स को जीतने में मुख्य भूमिका निभाई थी और दुश्मनों को धूल चटा दी थी। तो चलिए आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम इस वीर पुत्र के बारे में विस्तारपूर्वक जानते हैं-
हिमाचल प्रदेश में हुआ था जन्म
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में 9 सितंबर 1974 को पालमपुर में गिरधारी लाल बत्रा और कमल कांता बत्रा के घर हुआ था। उनका एक जुड़वां भाई विशाल बत्रा और दो बहनें थीं। बेहद कम उम्र से ही देशभक्त विक्रम को सेना में शामिल होने की इच्छा थी। जब वह चंडीगढ़ में विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे, उसी दौरान वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुने गए और उन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। इसके बाद से ही उन्होंने सेना में जाने का पूरा मन बना लिया था।
ठुकरा दी विदेश की नौकरी
मां भारती की सेवा करने का ऐसा जज्बा कैप्टन विक्रम बत्रा के अंदर पैदा हुआ था कि उन्होंने एनसीसी के कैडेट चुने जाने के बाद सीडीएस अर्थात् संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी थी। इतना ही नहीं, जब वह परीक्षा की तैयारियों में जुटे थे, तब उन्हें हांगकांग में मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी। लेकिन उन्होंने एक पल भी नहीं सोचा और इस ऑफर को ठुकरा दिया।
इस तरह हुए सेना में शामिल
विज्ञान विषय से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने सीडीएस की परीक्षा दी, जिसमें वह पास हो गए और जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। इसके बाद दिसंबर 1997 तक उनका प्रशिक्षण हुआ। प्रशिक्षण समाप्ति के बाद उनकी 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर 13 वीं बटालियन जम्मू और कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति हुई। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। बाद में उन्हें युद्ध के मैदान में ही एक कप्तान के पद पर पदोन्नत किया गया था।
दुश्मनों से लिया जमकर लोहा
कैप्टन विक्रम बत्रा को कारगिल युद्ध के हीरो के रूप में जाना जाता है। उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने दुश्मन की नाक के नीचे से प्वाइंट 5140 पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद उन्होंने प्वाइंट 4875 पर भी कब्जा कर लिया था। वह दुश्मनों के लिए युद्ध में काल बन गए थे। उनकी वीरता को देखकर दुश्मन इतने भयभीत हो गए थे, कि उन्होंने विक्रम बत्रा को शेरशाह नाम दिया था। युद्ध के अंतिम समय कैप्टन विक्रम बत्रा ने पांच दुश्मनों से लोहा लिया और उन्हें मार गिराया। उनकी बहादुरी के लिए सरकार ने कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपंरात परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।