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Freedom Fighter: भारत की वो तवायफें, जिन्होंने देश की आजादी में लगा दी अपनी जान की बाजी

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तवायफ का नाम सुनते ही लोगों के मन में एक अजीब सी घृणा पैदा होती है। अमूमन लोग ऐसी महिलाओं से थोड़ी दूरी बनाना ही पसंद करते हैं। लेकिन जब देश साल 1857 में स्वतंत्रता की पहली लड़ाई लड़ रहा था, तब देश के कई कोने से ऐसी कई तवायफें हुईं, जिन्होंने देश को गुलामों की जंजीरों से मुक्त करवाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। जब देशवासियों के मन में आजादी पाने की लौ जागृत हुई तो पिछड़े समाज और दलित समुदायों से आने वाली औरतों के साथ-साथ बहुत सी सराय वालियां, तवायफों व नृर्तकियों ने भी देशहित में अपना योगदान दिया। अज़ीज़ुंबाई, गौहर जान, होससैनी कुछ ऐसे ही नाम हैं, जिनका भारत की स्वतंत्रता में अभूतपूर्व योगदान है। हालांकि, आज भले ही इनकी बहादुरी बस किस्सों व किदवंतियों में सिमटकर रह गई हों। तो चलिए इस बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम आपको कुछ ऐसी ही तवायफों के बारे में बता रहे हैं, जिनकी बहादुरी और देशभक्ति के जज्बा वाकई काबिल-ए-तारीफ था-

Forgotten Freedom Fighter Courtesans Of India On Independence Day 2022 in Hindi

कौन थी अज़ीज़ुंबाई

अज़ीज़ुंबाई एक भारतीय महिला क्रांतिकारी थीं, जो कानपुर के कोठे पर थीं। उनका जन्म लखनऊ में एक तवायफ के घर हुआ था। लेकिन कुछ वक्त बाद ही वह कानपुर के ऊमराव बेगम के लूरकी महल में चली गयीं। वह पेशे से भले ही नर्तकी थीं, लेकिन वास्तव में स्वतंत्रता संग्राम मे उन्होंने जासूस होने से लेकर स्वतंत्रता सैनानी की भूमिका को बड़ी ही कुशलता के साथ निभाया था। दरअसल, अज़ीज़ुंबाई के कोठे पर अक्सर अंग्रेज़ सैनिक आते थे और कई बार अपनी गुप्त रणनीतियों की भी चर्चा करते थे। अज़ीज़ुंबाई ना केवल अंग्रेज़ सैनिकों से अधिक से अधिक उनके राज उगलवाने की कोशिश करती थीं, बल्कि उन खबरों को वह भारतीय स्वाधीनता सैनानियों तक पहुंचाने का भी काम करती थीं, ताकि वह अपनी योजनाओं को बेहतर तरीके से अंजाम दे सकें।

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अज़ीज़ुंबाई ने अंग्रेज सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे। दरअसल, उस समय भारतीय सैनिकों ने कानपुर किले की घेराबंदी की योजना बनाई थी। अज़ीज़ुंबाई भी इस योजना का हिस्सा बनीं। उन्होंने अपने गहने, घुंघरू व महिला पोशाक उतारकर पुरुष पोशाक पहनी। इतना ही नहीं, घोड़े और बन्दूक के साथ उन्होंने अंग्रेज़ सैनिकों का मुकाबला किया। अज़ीज़ुंबाई ने नाना साहब और तात्या टोपे को बचाकर खुद का बलिदान दे दिया।

अज़ीज़ुंबाई भारतीय स्वतंत्रता सैनानियों की मरहम पट्टी करने से लेकर हथियारों के संग्रह और उनके वितरण में भी मदद करती थी। उन्होंने एक गन बैटरी भी तैयार की थी। इस गन बैटरी की मदद से घेराबंदी के पहले दिन प्रवेशद्वार में गोले दागे गए व गोलीबारी की गई। उन्होंने कई महिलाओं का एक ऐसा ग्रुप तैयार किया था, जो निडर होकर भारत की आजादी में अपना योगदान दे सके।

Forgotten Freedom Fighter Courtesans Of India On Independence Day 2022 in Hindi

अन्य गुमनाम नायिकाएं

• अज़ीज़ुंबाई की तरह ही अन्य भी कई तवायफें हुईं, जिन्होंने देश हित को सबसे ऊपर रखा। इन्हीं में से एक थी होससैनी। उन्होंने कभी भी अंग्रेजों को क्षति पहुंचाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा। वह बीबीघर नरसंहार के प्रमुख साजिशकर्ताओं में से एक थी। इस नरसंहार में कई अंग्रेज महिलाओं व बच्चों की हत्या कर उनका शव कुएं में फेंक दिया गया था। बीबीघर कांड ने अंग्रेजो को अंदर तक झकझोर कर रख दिया था।

• गौहर जान भी एक ऐसी ही तवायफ हुई, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करने के लिए आर्थिक रूप से मदद की थी। उन्होंने गांधीजी के अनुरोध पर राशि एकत्रित करने के लिए एक समारोह का आयोजन करवाया और जमा की हुई राशि का आधा भाग इस आंदोलन के लिए दान कर दिया। इस प्रकार उनकी गुप्त भूमिका से स्वतंत्रता संग्राम को एक बल मिला।

अज़ीज़ुंबाई, गौहर जान और होससैनी जैसी ऐसी कई तवायफे हुईं, जिन्होंने कभी पर्दे में रहकर तो कभी पर्दा हटाकर, देश की आजादी के लिए हर संभव योगदान दिया। भले ही किताबों या इतिहास के पन्नों में इनके किस्से ना मिलते हों, लेकिन फिर भी इनका योगदान अविस्मरणीय है।

English summary

Forgotten Freedom Fighter Courtesans Of India On Independence Day 2022 in Hindi

On the occasion of independence day 2022, we are talking about some courtesans of india, who played an important role of independence of the India. Read on to know more.
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