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प्रेग्नेंसी के दौरान स्तनों में हफ्ते-दर-हफ्ते होने वाले परिवर्तन
प्रेग्नेंसी के दौरान महिला के शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं। शरीर का वजन बढ़ जाता है, योनि का आकार बदल जाता है, यहां तककि आपके स्तन का साइज भी बदलता रहता है। ऐसे में आपको हर महीने अपनी बॉडी के हिसाब से कपड़े लेने होते हैं और बॉडी के चेंजेस को समझना भी पड़ता है। ऐसा गर्भ में पलने वाली संतान के खुद को मां के शरीर में एडजस्ट करने के कारण होता है। स्तनों में यह बदलाव आगामी समय के लिए होता है जब आपका बेबी आपकी गोद में होगा और आपको उसे फीडिंग करानी होगी।
संतान के पैदा होने से पहले स्तनों का आकार सामान्य होता है लेकिन ये स्तन भी शिशु के भरण-पोषण के लिए स्वयं को नौ महीने पहले से ही तैयार करने लगते हैं और नौ महीने बाद इनमें से ही दूग्ध का उत्पादन होने लगता है। सबसे आम बात यह है कि हर मां को पता चलने लगता है कि उसके स्तनों का आकार बढ़ने लगा है। ये आकार एक बार ही नहीं हफ्ते-दर-हफ्ते दर बढ़ता है जिसके बारे में अचानक से नहीं बल्कि आपको हर दिन एक नया एहसास होता है। नीचे लेख में हम आपको बता रहे हैं कि प्रेग्नेंसी के दिनों में किस तरह हर सप्ताह स्तनों के आकार में परिवर्तन होता है:
सप्ताह 1 से 4
सप्ताह 1, फॉलीक्यूलर होता है और इस चरण स्पर्म, गर्भाशय में प्रवेश कर चुका होता है और अंडा बन जाता है। सबसे पहला परिवर्तन इस दौरान यह होता है कि स्तनों में दुग्ध डक्ट और एवीओलर बड्स का विकास हो जाता है। ये परिवर्तन दूसरे हफ्ते में होते हैं जब अंडा निषेचित हो जाता है। इस दौरान स्तनों में कसाव महसूस होता है और तीसरे हफ्ते तक ये काफी ज्यादा हो जाता है। चौथे हफ्ते तक आते-आते स्तनों में रक्त का संचार बहुत बढ़ जाता है। निप्पल हल्के से संवेदनशील होने लगते हैं। साथ ही दूध उत्पादन करने वाली कोशिकाएं बढ़ने लग जाती हैं।
सप्ताह 5 से 8
स्तनों की कोशिका संरचना में काफी बदलाव आने लगते हैं जिससे दुग्ध की सप्लाई होती है। प्लीसेंटल लैक्टोजन्स नामक हारमोन स्तनों में बढ़ जाते हैं। ग्लैंडुलर टिश्यू का विकास स्तनों में बढ़ जाता है और इससे स्तनों में भारीपन आने लगता है और महिला को असहज महसूस होने लगता है। ऐसा मिल्क डक्ट में सूजन आने के कारण भी होता है। इस दौरान निप्पल के आसपास पिग्मेंटेशन बढ़ जाता है और धब्बे व चक्कते जैसे नजर आने लगते हैं। पांचवे या छठवें हफ्ते में ये अक्सर देखने को मिलता है। सातवें हफ्ते के दौरान, स्तनों का वजन लगभग 650 ग्राम तक बढ़ जाता है क्योंकि शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही प्रोजेस्टोरेन की मात्रा भी कहीं ज्यादा हो जाती है। आठवें हफ्ते के दौरान मार्बिलिंग नामक प्रभाव स्तनों में नजर आता है जो स्तनों की अंदरूनी त्वचा में प्रभाव डालता है। स्तनों में रक्त की अच्छी सप्लाई के लिए नसों का विस्तार भी हो जाता है। 4 से 28 हफ्ते के दौरान निप्पल के आसपास की त्वचा मुलायम और बैक्टीरिया मुक्त होने लगती है।
सप्ताह 9 से 12
इस दौरान अरोला के आसपास की त्वचा डार्क होने लग जाती है और नौवें हफ्ते तक इसका व्यास भी बढ़ जाता है। इाके अलावा, सेकेंडरी एरोला भी विकसित हो जाता है। ये ज्यादा डार्क नहीं होता है लेकिन हल्का लाइट कलर का होता है। हो सकता है कि ये महिला को दिखाई भी न पड़े। 10वें हफ्ते में महिला को बड़े साइज की ब्रा पहननी पड़ सकती है। इससे महिला को सहजता होगी।
सप्ताह 13 से 16
13 वें और 14 वें सप्ताह में रक्त परिसंचरण बहुत बढ़ जाता है। एरोला भी धब्बेदार लग सकता है। स्तनों में कसाव ज्यादा महसूस हो सकता है। 16वें हफ्ते तक ये समस्या बहुत बढ़ जाती है। हो सकता है कि इस दौरान स्तनों से हल्का भूरा चिपचिपा कुछ द्रव निकलें। घबराएं नहीं, ये स्वाभाविक प्रक्रिया है। ये वो द्रव होता है जिसे बच्चा दुध का सेवन करने से पहले कोलोस्ट्रम के रूप में पीता है यानि हल्का पीला गाढ़ा दूध। ये उसी प्रकार के दूध का एक रूप होता है। इसे कोलोस्ट्रम कहा जाता है और इसमें बच्चे के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व शामिल होते हैं। यह आवश्यक प्रतिरोध शक्ति भी देता है रक्त वाहिकाओं के बढ़ने के कारण कभी-कभार इसमें रक्त की बूंदें दिखाई दे सकती हैं। यह सामान्य बात है लेकिन इस मामले में आपके डॉक्टर से परामर्श करना सुरक्षित विकल्प है।
सप्ताह 17 से 20
18 वें सप्ताह में स्तन में वसा जमा हो जाता है कुछ महिलाओं के लिए स्तनों पर लम्प भी नजर आ सकते हैं जोकि घबराने वाली बात नहीं है। ये सिस्ट की तरह भी लग सकते हैं अगर ऐसा हो तो आप अपने डॉक्टर से बात कर लें। इस लम्प में कुछ भी डरने जैसा नहीं होता है। 20वें हफ्ते में आपको स्तनों में स्ट्रेच मार्क नजर आ सकते हैं जोकि त्वचा में पड़ने वाले खिचांव के कारण होता है। अगर किसी को ये नहीं होते हैं तो वह बहुत ही लकी इंसान है।
सप्ताह 21 से 24
स्तन अब पहले की तुलना में बड़े आकार में हो जाते हैं। ऐसे में सही नम्बर की ब्रा पहनना बहुत जरूरी होता है वरना आपको कसाव हो सकता है। कोशिश करें कि आप पैडेड ब्रा न पहनकर कॉटन की ब्रा पहनें। साथ ही अंडरवायर ब्रा भी न पहनें, इससे रक्त के संचार में कमी होती है और बाद में समस्या हो सकती है।
सप्ताह 25 से 28
26 वें सप्ताह में, स्तन में लटकाव आ जाता है और इसमें कोलोस्ट्रम का लीकेज देखा जा सकता है। ऐसा जरूरी नहीं है कि हर गर्भवती महिला के साथ हो। कई बार कुछ महिलाओं को बहुत ज्यादा और कुछ को न के बराबर होता है। 28 वें सप्ताह तक, त्वचा की सतह के नीचे रक्त वहिकाएं दिखना शुरू हो जाती हैं और निपल्स के चारों ओर बहुत ज्यादा डार्क हो जाता है। ऐसा स्तनों में रक्त बढ़ने के कारण होता है। साथ ही इस अवस्था तक मिल्क डक्ट विस्तारित होना शुरू हो जाती हैं।
सप्ताह 29 से 32
स्तनों पर पसीना बहुत ज्यादा आने लगता है। ऐसा 30वें हफ्ते के दौरान होता है। इसका कारण यह है कि उच्च रक्त के प्रवाह के कारण मस्कस मेम्बरेंस और ब्लड़ वैसेल्स फैलने लगती हैं और इस वजह से इनमें संक्रमण को रोकने के लिए पसीना आने लगता है।
सप्ताह 33 से 36
सीबम के स्त्राव के साथ, कोलोस्ट्रम भी स्तनों के साथ आने लगता है। ऐसे में महिला को बहुत दिक्कत होती है और भारीपन सा लगता है। क्योंकि इस दौरान प्रोजेस्ट्रॉन की मात्रा भी अधिक हो जाती है। बेहतर होगा कि आप इस दौरान नर्सिंग ब्रा पहनें। ध्यान दें ये स्तनों का भारीपन सिर्फ प्रसव काल के बाद 6 महीने तक ही रहता है उसके बाद इतनी ज्यादा समस्या नहीं होती है। बच्चे के स्तनपान करने तक स्तनों में दूध का उत्पादन होता है।
सप्ताह 37 से 40
कोलोस्ट्रम का रंग गाढ़ा और हल्के पीले रंग से गहरा पीला और रंगहीन होता है। ये बदल जाता है। 38वें हफ्ते तक स्तन पूरी तरह से बढ़ जाते हैं। इनमें ऑक्स्ीटोन नामक हारमोन संकुचन को प्रेरित करते हैं जब स्तनों को हाथों से छुआ जाता है।