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रमजान में मधुमेह पीड़ित रोजेदार बरतें एहतियात
(आईएएनएस)| दुनियाभर में मुस्लिम रमजान के पाक महीने में रोजे रखते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने मधुमेह पीड़ित लोगों को रमजान के दौरान अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहने की सलाह दी है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि देर तक भूखे रहने की वजह से मधुमेह पीड़ितों का चयापचय बदल जाता है क्योंकि वे लंबे समय तक कुछ नहीं खाते।
फोर्टिस सी-डॉक के वरिष्ठ परामर्शदाता चिकित्सक अतुल लूथरा ने कहा, "चयापचय का बदलना देर तक भूखे रहने का नतीजा है, जो आहार और दवा समायोजन के संदर्भ में मधुमेह प्रबंध योजना को जरूरी बना देता है। रमजान के दौरान अधिकांश लोग 12 से 15 घंटों के अंतराल में दो बार भारी भोजन करते हैं।" रमज़ान के दौरान रोज़े रखने का महत्व
उन्होंने कहा कि रक्त शर्करा को तेजी से बढ़ने से रोकने के लिए सहरी और इफ्तार के बीच में कार्बोहाइड्रेट और वसा के सेवन पर नियंत्रण रखना चाहिए।
लूथरा ने कहा, "मधुमेह से ग्रस्त लोगों को ज्यादा कैलोरी वाली एवं तली हुई चीजें नहीं खानी चाहिए। इसकी बजाय उन्हें रेशे की प्रचुरता वाले खाद्य पदार्थ खाने चाहिए। सभी मरीजों को निम्न रक्त शर्करा के लक्षणों से परिचित होना चाहिए और अगर इसके लक्षण दिखते हैं तो उन्हें रोजे जारी नहीं रखने चाहिए।"
रमजान के दौरान मधुमेह पीड़ित रोजेदारों को हाइपोग्लाइसीमिया (रक्त शर्करा स्तर में अचानक गिरावट) का सामना करना पड़ सकता है, जो दौरे एवं बेहोशी या अचानक रक्त शर्करा बढ़ने का सबब बन सकती है।
दक्षिणी दिल्ली (साकेत) के मैक्स अस्पताल के मधुमेह रोग विशेषज्ञ सुजीत झा ने आईएएनएस को बताया, "इंसुलिन लेने वाले मरीजों को रोजे से परहेज करना चाहिए। एक दिन में करीब 14-15 घंटों तक कुछ भी न खाना शर्करा के निम्न स्तर को दावत दे सकता है। उन्हें पेय पदार्थ भी बराबर लेते रहना चाहिए।"