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दिमाग को तेज करना है तो डाइट में बढ़ा दें मछली का सेवन
बचपन में एक कविता पढ़ते थे, “मछली जल की रानी है”। सही मायनों में देखा जाए तो यह कविता काफी सार्थक है। आज की प्रतियोगी और भाग दौड़ की जिंदगी में मछली, दिमाग को तंदरुस्त और स्फूर्तिवान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मछली के इन्ही गुणों के कारण इससे ब्रेन फ़ूड यानी की “मष्तिस्क भोजन” का नाम दिया गया है। पुरातन में जाए तो पता चलता है कि पहले इस तथ्य को मान्यता प्राप्त नहीं थी। लेकिन आधुनिक अनुसंधान में मछली और दिमाग के बीच एक वैज्ञानिक संबंध का पता चलता है।
रोहू मछली के स्वास्थ्यवर्धक फायदे
मछली:-
दिमाग
के
लिए
संजीवनी
जन्म
के
समय
मनुष्य
का
दिमाग
अल्पविकसित
होता
है।
मष्तिस्क
की
लगभग
75%
कोशिकाए
गर्भावस्था
में
विकसित
होती
हैं।
शेष
25%
का
विकास
जन्म
के
एक
वर्ष
के
बाद
शुरू
होता
है।
डीएचए
युक्त
ओमेगा-3
की
लगभग
60%
वसा
मनुष्य
के
दिमाग
में
पाया
जाती
है।
अगर प्राकितिक स्त्रोत की बात करे तो, मछली ही एक जीव जिसकी वसा में ओमेगा-3 भरपूर्ण मात्रा में पाया जाता है। बच्चो के मानसिक और शारीरिक विकास के में ये वसा संजीवनी का काम करती है।
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गर्भावस्था
में
बहुत
फायदेमंद
है
मछली
:
जीवविज्ञान
में
हो
रहे
शोध
की
माने
तो,
गर्भावस्था
के
दौरान
मछली
जच्चा
और
बच्चा
दोनों
के
लिए
अमृत
होती
है।
तुलनात्मक
दृष्टि
से
देखे
तो
वो
संतान
जिनकी
माताओं
ने
गर्भावस्था
के
दौरान
भोजन
में
मछली
का
प्रयोग
किया
था,
जन्म
के
समय
दुसरे
बच्चों
से
स्वस्थ
होते
हैं।
मछ्ली
के
प्रयोग
से
गर्भवती
स्त्री
भी
आंतरिक
तौर
पर
खुद
को
स्वस्थ
महसूस
करती
है।
मछली में पाए जाने वाली वसा कई खतरनाक बीमारियों से भी बचाता है, उदाहरण के तौर पर ओमेगा-3(वसा) के प्रयोग से अल्जाइमर, अवसाद और डिमेंशिया जैसी बीमारियों से बचाव होता है।
गर्भ के समय तो मां को भोजन में मछली का प्रयोग करना ही चाहिए, बच्चे के जन्म के बाद भी ये आवाश्यक है,’कम से कम तब तक जब तक माँ को ही दुग्धपान कराना हो’। इससे बच्चा डिस्लेक्सिया और एडीएचडी जैसी बीमारियों से दूर रहता है। सरकारी आकड़ों की माने तो औसतन 100 में 5 बच्चे इन बीमारियों का शिकार होते हैं।
पोषक
तत्वों
की
कमी
ही
इसका
कारण
होती
है।
अविकसित
मष्तिस्क
होने
के
कारण
ऐसे
बच्चे
सामान्य
जीवन
नहीं
जी
पाते
और
कई
बार
मानसिक
विकलांगता
का
शिकार
भी
हो
जाते
हैं।
ऐसी
स्थिति
में
खाने
के
रूप
में
मछली
का
उपयोग
अनिवार्य
हो
जाता
है।
ओमेगा-3 में मौजूद इपीए और डीएचए कारक तकनीकी रूप से दिमाग को विकसित करते हैं। व्यावहारिक दृष्टि से देखे तो, बच्चों की ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता,पढने की क्षमता, भावनात्मक अभिव्यक्ति की कार्यप्रणाली मनुष्य के दिमाग के जिस हिस्से में कार्य करती है ये वसा उस हिस्से को विकसित करती है।
महत्वपूर्ण ये है की इस समयवधि में मछली का प्रयोग माँ के स्वस्थ का भी पूरक होता है। सप्ताह में एक मछली का प्रयोग माँ को आंतरिक तौर पर मज़बूत रखता है। विश्व का वैज्ञानिक इतिहास हो या पौराणिक इतिहास, एक प्राकृतिक श्रोत के रूप में मछली का प्रयोग आवश्यक और अतुलनीय रहा है