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अपनी मर्जी से न लें दर्द निवारक दवा वरना किडनी पर पड़ सकती है भारी

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(आईएएनएस)| इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने विश्व किडनी दिवस के मौके पर गुरुवार को दर्दनिवारक दवाओं को लेकर फैली भ्रांतियां दूर करने का प्रयास किया। आईएमए ने आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली नॉन-स्टेरॉइडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स यानी एनसेड्स और दर्दनिवारक दवाओं के संबंध में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने के लिए एक प्वाइंटर जारी किया। पैरासिटामोल, ऐस्पिरिन, आईबूप्रोफेन और निमेस्युलाइड जैसी दवाओं का इस्तेमाल लोग अक्सर दर्द व बुखार से राहत के लिए करते हैं।

लोगों को यह बताना बेहद जरूरी है कि वे इन दवाओं का इस्तेमाल अपनी मर्जी से बिल्कुल न करें, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें इनके अच्छे परिणामों की बजाय उनकी सेहत पर बुरा असर होगा।

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यह एक आम धारणा है कि पैरासिटामोल और ऐस्पिरिन जैसी ओटीसी दवाएं दर्द से राहत के लिए बिना डॉक्टर की सलाह के ली जा सकती हैं। पैरासिटामोल से एंटी-इन्फ्लेमेटरी प्रतिक्रियाएं कम मात्रा में दिखती हैं और ऐसे में दर्द और बुखार से राहत के लिए इनका इस्तेमाल अधिक किया जाना चाहिए। सच तो यह है कि पश्चिमी देशों में आत्महत्या के लिए इसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है।

यूएस एफडीए के निर्देशों के मुताबिक, 350 एमजी से अधिक डोज में इस दवा का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इसी तरह बच्चों में अपनी मर्जी से ऐस्पिरिन का इस्तेमााल लिवर फेलियर की वजह बन सकता है, इस स्थिति को रेज सिंड्रोम कहते हैं। आईएमए मानता है कि पैरासिटामोल और ऐस्पिरिन दोनों का इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।

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भारत सरकार अब यह प्रावधान करने जा रही है कि आयुष के डॉक्टरों को भी ओवर द काउंटर दर्दनिवारक दवाओं, जैसे पैरासिटामोल और ऐस्पिरिन मरीजों को लिखने का अधिकार होगा। मगर आईएमए का मानना है कि यह स्थिति आम लोगों की सेहत के लिए ठीक नहीं होगी, क्योंकि आयुष के डॉक्टरों को इस संबंध में पर्याप्त जानकारी नहीं होती कि किन स्थितियों में ये दवाएं इस्तेमाल नहीं की जानी चाहिए।

आईएमए की मानें तो निमेसुलाइड और ऐस्पिरिन सिर्फ उन्हीं लोगों को दिया जाना चाहिए, जिनकी उम्र 12 वर्ष से अधिक है।

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निमेसुलाइड एक ऐसी दर्दनिवारक एनाल्जेसिक दवा है जिसे बुखार, दर्द और इन्फ्लेमेशन में इस्तेमाल के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआाई) ने वर्ष 1993 में अनुमति दी थी। यह वयस्क मरीजों के लिए 15 दिनों के लिए सुरक्षित तौर पर प्रेस्क्राइब की जा सकती है।

मूलचंद हॉस्पीटल के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. रमेश होचंदानी के मुताबिक, "दर्द एक ऐसी स्थिति है जो हर व्यक्ति को कभी न कभी प्रभावित करती ही है। भारत में कंप्यूटर पर लगातार काम करने वाले 76 फीसदी लोग मांसपेशियों में दर्द से परेशान रहते हैं, 15 से 20 फीसदी लोगों को जीवन में कभी न कभी गंभीर दर्द और 25 से 30 फीसदी लोगों को क्रॉनिक दर्द का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में दुनियाभर में दर्द के प्रबंधन के सुरक्षित और प्रभावी तरीकों पर बहस होना लाजिमी है।

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उन्होंने कहा, "दर्दनिवारक दवाओं का बेहद समझदारी से इस्तेमाल होना चाहिए, क्योंकि खतरे के दायरे में आने वाले लोगों के लिए इसका एक टैबलेट भी किडनी फेलियर को बढ़ावा दे सकता है।"

एनसेड्स पर आईएमए ने दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसके अनुसार, बच्चों को ऐस्पिरिन कभी न दें, क्योंकि इससे जानलेवा लिवर फेलियर हो सकता है। बच्चे व किशोर जो चिकनपॉक्स या फ्लू जैसे लक्षणों से उबर रहे हों, उन्हें कभी ऐस्पिरिन नहीं देना चाहिए।

English summary

Guidelines on the use of painkillers

Indian Medical Association (IMA) today asked people to desist from using common painkillers like Aspirin and Paracetamol for pain and fever management saying they could cause more harm than good if taken without medical supervision.
Story first published: Saturday, March 14, 2015, 15:01 [IST]
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