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मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत के लिए 'लीची' नहीं है जिम्मेदार, ये है असल वजह
बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाकों में 'एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम' (acute encephalitis syndrome) यानी चमकी बुखार की वजह से अब तक करीब 130 बच्चों की मौत हो चुकी है और 300 से ज्यादा बच्चे गंभीर रूप से बीमार हैं। जब से यह मामला सामने आया है तब से ही यह कहा जा रहा है कि लीची खाने की वजह से बच्चों की मौत हो रही है। इस मामले के सामने आने से देशभर के कई राज्यों में लोग लीची खाने से घबरा रहे हैं और सब लोगों के मन में लीची को लेकर कई तरह की शंका पैदा हो गई है। लेकिन हम आपको बता दें कि इस दिमागी बुखार की वजह से हो रही बच्चों की मौत की असली वजह लीची नहीं बल्कि कुपोषण है।
जी हां, मुज्फ्फरनगर के बाल विशेषज्ञ अरुण शाहा ने इस सिंड्रोम पर की एक रिसर्च के रिपोर्ट में बताया है कि लीची खाने से नहीं बल्कि इस इलाके में 'एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम' से मरने वाले बच्चों की मुख्य वजह कुपोषण है।
इलाके में कुपोषण की है भयावह स्थिति
मुज्फ्फरनगर के वरिष्ठ बाल विशेषज्ञ डॉ अरुण साहा इस सिंड्रोम पर रिसर्च की उनके अनुसार बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाकों में कुपोषण की भयावह स्थिति का भी पता चला है। कुपोषण का शिकार होने की वजह से शरीर में आयरन की कमी हो जाती है। यह भी इस इलाके की बड़ी समस्या है जिसे अब तक नजरअंदाज किया जाता रहा है। डॉक्टरों और हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो अब तक एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम AES जिससे बच्चों की मौत हुई या फिर जिन बच्चों का इलाज चल रहा है, अगर उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि ये सभी ग्रामीण और गरीब तबके से आते हैं।
कुपोषण कैसे बढ़ाता है हाइपोग्लाइसीमिया?
डॉ अरुण साहा कहते हैं कि आम बच्चों के लीवर में ग्लूकोज सरंक्षित होता है जबकि कुपोषित बच्चों के लिवर में ग्लाइकोजीन फैक्टर संरक्षित नहीं होता है। इस ग्लाइकोजीन फैक्टर का काम शरीर में ग्लूकोज की मात्रा घटने पर इसकी क्षतिपूर्ति करना होता है। आम बच्चों में जब हाइपो ग्लाइसेमिया का अटैक आता है तो ग्लाइकोजीन फैक्टर इसकी कमी पूरी कर देता है, मगर कुपोषित बच्चों यह कमी पूरी नहीं हो पाती और जिस वजह से उनकी मौत हो जाती है।
लो ब्लड शुगर से हाइपोग्लाइसीमिया
द लैन्सेट' नाम की मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च की मानें तो लीची में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले टॉक्सिन पदार्थ होते हैं जिन्हें hypoglycin A और methylenecyclopropylglycine (MPCG) कहा जाता है। ये शरीर में फैटी ऐसिड मेटाबॉलिज़म बनने में रुकावट पैदा करते हैं। इसकी वजह से ही ब्लड-शुगर लो लेवल में चला जाता है जिसे हाइपोग्लाइसीमिया भी कहते हैं और मस्तिष्क संबंधी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं और दौरे पड़ने लगते हैं।
सड़ी गली और अधपक्की लीची की वजह से भी हो रहे बच्चें बीमार
गर्मियों में लीची का सीजन है और गरीब परिवार के कुपोषित बच्चे दिनभर भीषण गर्मी में भी लीची के बाग में जाते हैं और आधी कच्ची, आधी पकी, सड़ी-गली जैसी भी लीची मिलती है बड़ी तादाद में खा लेते हैं और शाम को घर वापस आकर बिना खाना खाए ही सो जाते हैं। पोष्टिक भोजन के अभाव और लीची में मौजूद hypoglycin A और methylenecyclopropylglycine (MPCG) की अधिक मात्रा की वजह से बच्चों में अक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम AES के गंभीर लक्षण देखने को मिल रहे हैं।
मरने वाले बच्चों में लड़कियों की संख्या ज्यादा
मुजफ्फरपुर के दो बड़े अस्पतालों में भर्ती और मरने वाले बच्चों में 60-70 फीसदी लड़कियां हैं। इस इलाके के स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो इस रोग की मूल वजह कुपोषण और गर्मियों में भूखे पेट बच्चों का सो जाना है। आंकड़ों के अनुसार इस रोग से पीड़ित होने वाले और मरने वालों में ज्यादातर बच्चियां हैं तो इसका सीधा मतलब निकलता है कि लड़कियां यहां कुषोषण का ज्यादा शिकार है। इसके अलावा
एक मानसिकता यह भी है कि लड़कियों को लोग जल्दी इलाज कराने अस्पताल नहीं ले जाते, इस वजह से इलाज में मिली देरी की वजह से भी मरने वाले बच्चों में लड़कियों की संख्या अधिक हैं।
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समय रहते इलाज है सम्भव
सही समय पर इलाज मिलने से बच्चों की मौत को रोका जा सकता हैं, अगर शुरुआत के चार घंटों में 'एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम' के लक्षण जैसे बेहोशी, तेज बुखार और लो ब्लड प्रेशर की पहचान कर ली जाएं, तो समय रहते बच्चों को Dextrose (डेक्सट्रोज, एक तरह का ग्लूकोज) देकर मरीज बच्चों को आसानी से बचाया जा सकता है। हालांकि 'एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम' के अधिकांश मामले बिहार के दूरदराज इलाकों से देखने को मिल रहे हैं। जिस वजह से अस्पताल में पहुंचने और देरी से इलाज मिलने के वजह से भी बच्चों की मौत हो रही हैं।