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धन दौलत नहीं, चाणक्य के मुताबिक ये चार चीजें दुनिया में है सबसे बेशकीमती
आचार्य चाणक्य ने जो नीतियां अपने समय में बनाई थी वो आज भी कारगर और सच नजर आती हैं। चाणक्य द्वारा बताए गए जीवन मंत्र का यदि व्यक्ति आज भी पालन कर ले तो उसकी जिंदगी आसान बन सकती है। वर्तमान में हर इंसान ज्यादा से ज्यादा धन कमाने और भौतिक सुविधाओं के पीछे भाग रहा है। किसी की चाहत ढेर सारा रुपया कमाना है तो कोई बड़ी पोज़िशन और रुतबा चाहता है। कुछ लोग ऐसे भी मिल जायेंगे जो इस दुनिया की भागदौड़ से दूर मोक्ष की चाहत रखते हैं।
वहीं चाणक्य ने लोगों से इस दुनिया में सिर्फ और सिर्फ चार चीजों को ही अपने जीवन में अहमियत देने की बात कही है। उनके मुताबिक ये चार चीजें दुनिया की सबसे अनमोल वस्तुएं हैं और उसके सामने किसी दूसरी चीज का मोल नहीं है। इस लेख में जानते हैं कि चाणक्य ने कौन सी चार बहुमूल्य चीजों के बारे में बताया है।
चाणक्य के इस श्लोक में आपको जवाब मिल जाएगा।
नात्रोदक समं दानं न तिथि द्वादशी समा।
न गायत्र्या: परो मंत्रो न मातुदेवतं परम्।।

दान से बड़ी कोई चीज नहीं दुनिया में
आचार्य चाणक्य के मुताबिक इस दुनिया में भोजन और जल का किया दान ही महादान है। इस संसार में इससे ज्यादा कीमती और कुछ भी नहीं है। भूखे और जरूरतमंद को भोजन कराने वाला और प्यासे को पानी पिलाने वाला व्यक्ति ही इस धरती पर पुण्य आत्मा है। यही वजह है कि उन्होंने दान को बहुमूल्य चीजों की सूची में शामिल किया।
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द्वादशी तिथि है दूसरी बहुमूल्य चीज
आचार्य चाणक्य हर क्षेत्र के ज्ञाता रहे। उन्होंने हिंदू पंचांग की बारहवी तिथि अर्थात द्वादशी तिथि को सबसे पवित्र तिथि बताया। दरअसल माना जाता है कि द्वादशी तिथि भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। इस तिथि पर पूजा पाठ, प्रभु की आराधना और उपवास रखने से विशेष लाभ मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

चाणक्य ने बताया सबसे ताकतवर मंत्र
आचार्य चाणक्य ने गायत्री मंत्र को दुनिया का सबसे शक्तिशाली मंत्र बताया है। उनके अनुसार इस मंत्र से बड़ा कोई और दूसरा मंत्र नहीं है। इसके पीछे का कारण ये है कि माता गायत्री को वेदमाता कहा जाता है और चारों वेदों की उत्पत्ति गायत्री से हुई।
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संसार में मां से बड़ा कोई दूसरा नहीं
चाणक्य ने बताया कि इस धरती पर मां का स्थान सबसे ऊंचा है और वो ही सबसे बड़ी है। देवता, गुरु और ना ही कोई तीर्थ मां से बड़ा हो सकता है। उनके मुताबिक जो इंसान अपने माता पिता की सेवा करता है उसे किसी तीर्थ पर जाने या किसी की भक्ति की जरूरत नहीं होती।