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Chanakya Niti: संतान होगी संस्कारी, चाणक्य ने बताये हैं अच्छी परवरिश के ये तीन मंत्र
हर माता पिता चाहता है कि वो अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दे। बच्चों का भविष्य बनाने में अभिभावक ही मुख्य भूमिका निभाता है। बच्चों की सही देखभाल करने को लेकर यदि आप असमंजस की स्थिति में हैं तो आचार्य चाणक्य आपकी मदद कर सकते हैं। कुशल रणनीतिकार और अर्थशास्त्री चाणक्य ने व्यक्ति के जीवन के हर पहलू पर अपने अनमोल विचार दिए हैं। इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि चाणक्य नीति में बच्चों के लालन-पालन को लेकर माता-पिता को क्या सलाह दिए गए हैं।
चाणक्य का मंत्र
पांच वर्ष लौं लालिये, दस लौं ताड़न देई, सुतहीं सोलह बरस में, मित्र सरसि गनि लेई
इस श्लोक में आचार्य ने बताया है कि अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए। उनके मुताबिक बच्चे को पांच साल की आयु तक खूब लाड़-प्यार करना चाहिए। इस उम्र तक बच्चा अबोध होता है। उसे सही और गलत के बीच का अंतर नहीं पता होता है।
पांच साल की आयु के बाद
श्लोक के मुताबिक, कौटिल्य कहते हैं कि यदि संतान की आयु पांच साल की है तो अब उसे गलती करने पर डांटना चाहिए। इस आयु में बच्चा चीजों को समझना शुरू कर देता है। इस पड़ाव में बच्चे को प्यार-दुलार के साथ गलतियों पर डांट भी पड़नी चाहिए।
दस साल की आयु के बाद
विष्णु गुप्त के अनुसार, दस से पंद्रह साल के बच्चों के साथ बर्ताव में सख्ती की जा सकती है। ये वो उम्र होती है जब वो जिद करना शुरू कर देते हैं। यदि संतान गलत बातों के लिए हट करता है तो उसे सख्ती से समझाना चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि माता पिता गलत शब्दों का इस्तेमाल न करें।
सोलह साल की आयु के बाद
बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है उसकी समझदारी भी बढ़ने लगती है। चाणक्य कहते हैं कि जब बच्चा सोलह बरस पूरे कर ले तब उसके साथ एक दोस्त जैसा व्यवहार करना चाहिए। उसे डांट-डपटकर चुप कराने के बजाय बातचीत करके उसे समझाना चाहिए।
नोट: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। बोल्डस्काई लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी और धारणा को अमल में लाने या लागू करने से पहले कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।