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Dussehra 2022: देश के अलग-अलग राज्यों में इस तरह मनाया जाता है दशहरा, जानें इसका महत्व
दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह पर्व भारत में हर साल मनाया जाता है। नवरात्रि के अगले दिन और दीपावली से बीस दिन पहले देश में अलग-अलग स्थानों पर अलग तरह से उत्साह के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने लंका के राजा, रावण पर जीत हासिल की थी। साथ ही देवी दुर्गा ने असुर महिषासुर का वध किया था। हिंदू संस्कृति में इस दिन का बहुत महत्व है। इस दिन को विजयादशमी के रूप में भी जाना जाता है। आइए जानते हैं दशहरा का क्या महत्व हैं, और देश के अलग-अलग राज्यों में इसे किसी तरह मनाया जाता है।
दशहरा का महत्व
हर साल हिंदू कैलेंडर के अश्विन महीने के 10वें दिन दशहरा मनाया जाता है। दशहरा नाम संस्कृत के शब्द दशा यानि दस और हारा यानि हार से बना है। इस दिन भगवान राम ने 10 सिर वाले रावण को हराया था। इतना ही नहीं दशहरा 20 दिन बाद पड़ने वाले दिपावली त्योहार की तैयारी की शुरुआत का भी प्रतीक है।
अनुष्ठान और उत्सव
दशहरे के मुख्य रिचुअल में लोग भगवान राम के जीवन की कहानी का एक नाटकीय अभिनय करते हैं, जिसे रामलीला कहा जाता है। इसके अलावा इस दिन शाम को रावण की विशाल प्रतिमा बनाकर पटाखों से भर दिया जाता है और खुले मैदान में एक युवक राम का स्वरूप धर कर रावण की प्रतीमा में आग लगाते हैं। और बुराई पर अच्छाई की जीत का लोगों के बीच संदेश पहुुंचाते हैं। रावण के साथ मेघनाद और कुंभकरण के पुतले भी जलाए जाते हैं।
गुजरात में लोग इस दिन को प्रसिद्ध गरबा कर मनाते हैं। नवरात्रि और दशहरा दोनों में वो पारंपरिक पोशाक पहनते हैं और इन अवसरों का पूरा मजा लेते हैं।
आज के दिन पश्चिम बंगाल में लोग देवी दुर्गा की मूर्ति को नदी में विसर्जित करके दुर्गा पूजा उत्सव के अंतिम दिन को मनाते हैं। वे औपचारिक रूप से देवी दुर्गा को विदाई देते हैं। दुर्गा पूजा के इस अनुष्ठान को विसर्जन कहा जाता है।
दक्षिण भारत में देवी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियों को घर में लाया जाता हैं। शादीशुदा महिलाएं एक-दूसरे के घर जाती हैं और नारियल, सुपारी एक दूसरे को उपहार के रूप में देती हैं। इस दौरान वो सभी मिलकर भजन गाती हैं और देवी के तीन प्रमुख रूपों - सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा की स्तुति करती हैं।